सिनेटॉकीज कार्यक्रम में दिखाई गयी प्राचीन ‘प्राकृत भाषा’ पर आधारित रिसर्च डॉक्युमेंट्री फिल्म

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मुम्बई –  संस्कार भारती कोकण प्रान्त ‘सिने सृष्टि भारतीय दृष्टि’ के तत्वावधान में प्रति माह के अंतिम शनिवार को आयोजित किए जा रहे सिने जगत से जुड़े कार्यक्रमों की श्रृंखला के अंतर्गत कल आठवां सप्ताह थाजिसमें डॉ. अरिहन्त कुमार जैन द्वारा निर्देशित ‘प्राकृत भाषा – एक प्राचीन समृद्ध परम्परा’ नामक एक रिसर्च डॉक्यूमेंट्री फिल्म  की स्क्रीनिंग की गयी । यह कार्यक्रम 25 फरवरी 2023 को शाम 6 बजे कला क्षेत्र स्टूडियोआराम नगर पार्ट 2.कॉटेज नंबर 210. वर्सोवा, (अंधेरी वेस्ट)मुंबई  में आयोजित किया गया।

सर्वप्रथम कार्यक्रम का प्रारम्भ संस्कार भारती के वरिष्ठ सदस्य श्री श्रीहरि कुलकर्णी जीश्री अरुण शेखर जी एवं मुख्य अतिथि डॉ अरिहन्त जैन जी ने भारतीय परंपरानुसार दीप प्रज्वलन से किया । तत्पश्चात सुश्री कल्याणी कुमारी ने सभी का स्वागत करते हुए सभी महानुभावों का परिचय दिया एवं कार्यक्रम की संक्षिप्त जानकारी दी । श्री अरुण शेखर जी ने डॉ. अरिहन्त जी का परिचय देते हुएसंस्कार भारती के कार्यक्षेत्र पर प्रकाश डाला  और वर्तमान समाज के उत्थान मे भारतीय सिनेमा की क्या उपयोगिता हो सकती हैउस पर अपने विचार रखे । इसके  साथ ही संस्कार भारती कोकण प्रान्त सिने टॉकीज २०२२ को कालीना महाविद्यालय में हुए त्रिदिवसीय कार्यक्रम की झलकियां भी दिखाई गईं।

इसके पश्चात् रिसर्च डॉक्युमेंट्री फिल्म “प्राकृत भाषा- एक प्राचीन समृद्ध परंपरा” को प्रदर्शित किया गयाजो कि कर्नाटक स्थित श्रवणबेलगोला के ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्त्व एवं प्राकृत भाषा पर आधारित है । श्रवणबेलगोला वह स्थान है जहाँ 1000 वर्षों से भी अधिक समय से भगवान गोम्मटेश्वर बाहुबली की 57 फीट ऊँची दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा स्थित है । यह जैन श्रमण परंपरा एवं संस्कृति का अप्रतिम तीर्थ हैजिसकी यशोगाथा यहाँ पाए गए शताधिक प्राचीन प्राकृत शिलालेखों में अंकित है।

श्रवणबेलगोला के जगद्गुरु कर्मयोगी स्वस्तिश्री चरुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी की प्रेरणा से वहाँ स्थित राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन और अनुसंधान संस्थान‘ के द्वारा प्राचीन शिलालेखोंहस्तलिखित पाण्डुलिपियों आदि का संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य चल रहा है । कार्यक्रम में उपस्थित फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े जाने-माने विशेषज्ञों ने फिल्म के विषयस्क्रिप्टफिल्मांकननिर्देशन और प्रस्तुति को एक स्वर में सराहा एवं डॉ. अरिहन्त को इस हेतु बधाई दी । यह फिल्म हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में भी प्रदर्शित हो चुकी है।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में प्रश्नोत्तरी चर्चा सत्र प्रारंभ हुआ जिसमे फिल्म के विषय से संबन्धित प्रश्न पूछे गएजिनका डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक डॉ. अरिहन्त जी ने सारगर्भित समाधान किया। उन्होंने बताया कि प्राकृत भाषा सर्वप्राचीन भाषा हैजो कि अनेक शताब्दियों तक जनभाषा रही है और अनेक भारतीय भाषाओं की जननी है। यह भाषा जिस भी प्रांत में गयीउस जगह के अनुरूप ढल गईऔर इसके भी कई प्रकार हो गए। उन्होंने बताया कि कलिंग नरेश सम्राट खारवेल एवं सम्राट अशोक के समय इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त था और यही कारण है कि अशोक के जितने भी शिलालेख हैंवो प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में हैं।

साथ ही उन्होंने उड़ीसा स्थित खारवेल के सर्वप्राचीन हाथीगुंफा प्राकृत शिलालेख का प्रमाण देते हुए बताया कि उसमें यह लिखा है कि प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा ।  साथ ही प्राकृत के विपुल साहित्य पर भी चर्चा की और बताया कि ऐसा कोई भी विषय अछूता नहीं हैजिसका सृजन प्राकृत साहित्य में न हुआ हो ।  कई लोगों के लिए यह पहला अवसर था कि वे प्राकृत भाषा एवं साहित्य से प्रथम बार परिचित हो सके।

डॉ. अरिहन्तक.जे. सोमैया इंस्टीट्यूट ऑफ धर्मा स्टडीससोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं । वैश्विक स्तर पर प्राकृत भाषा की समृद्ध परंपरा को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से अङ्ग्रेज़ी में प्रकाशित ‘Prakrit Times International Newsletter’ के आप संपादक हैं । आपके इस अभिनव कार्य के लिए नेशनल मीडिया फ़ाउंडेशननई दिल्ली द्वारा हाल ही में आपको ‘नेशनल गौरव अवार्ड’ से सम्मानित किया गया है।

समापन सत्र में  श्री हरि कुलकर्णी जी ने धन्यवाद  ज्ञापित किया और कार्यक्रम की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डॉ. अरिहन्त के माध्यम से आज हम सभी प्राकृत भाषा एवं साहित्य के माहात्म्य से करीब से परिचित हो पाये हैंजिसके विपुल साहित्य पर शोध की अपार संभावनाएं हैं । इस कार्यक्रम में फिल्म,साहित्य,लेखन,अभिनय और रंगभूमि के क्षेत्र से जुड़े कई नामी गिरामी हस्तियां उपस्थित थी । कार्यक्रम का सुंदर संचालन सुश्री कल्याणी कुमारी जी ने किया । इस कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री अरूण शेखर,श्री जगदीश निषादश्रीमती ज्योति,सुश्री कल्याणी कुमारी का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।

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