रत्नत्रय ग्रुप द्वारा 151 वे अभिषेक पर आचार्य श्री को” युगसंत” अलंकरण समय, जीवन में अनेकों सौगातें लेकर आता है। आचार्य श्री विमर्श सागर जी

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सोनल जैन की रिपोर्ट

श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर कृष्णानगर दिल्ली में चातुर्मास के लिये पधारे परम पूज्यनीय जिनागम पंथ प्रवर्तक, जीवन है पानी की बूँद ” (महाकाव्य) के मूलरचयिता भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज का ऐतिहासिक चातुर्मास पूरी दिल्ली (N.C.R.) में चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रतिदिन प्रातः 7:45 से धर्मसभा का आयोजन होता है। परम् -पूज्य . भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी मुनिराज ने धर्म सभा में भक्तामर महिमा पर व्याख्यान करते हुये कहा- समय हमारे जीवन में अनेकों सौगातें लेकर आता है। कोई अपने पुरुषार्थ से सांभात को सोभाग्य में बदल लेता है और कोई अपने पुरुषार्थ से सोगात को दुर्भाग्य में परिवर्तित कर लेता है। आचार्य मानतुंग स्वामी दिगम्बर जैन संत परम्परा के एक महान साधकु थे। उन महान आचार्य की जब राजा भोज मे कुपित हो 48 काल मोठरियों में कैद कर दिया तो सारी दुनिया ने एक स्वर में कहा कि ये बड़ी दुभाग्य भी बात है। पर कभी कभी दुर्भाग्य के क्षणों में, दुख, पीड़ा के काल में’ भी सोभाग्य छिपा होता है भोर कभी कभी सुख और आनंद की क्षणों में भी दुर्भाग्य छिया होता है। आचार्य मानतुंग स्वामी को काल कोठरी में बंद कर दिया गया, आचार्य भगवन ने उन उस की घड़ियों की भी सौभाग्य में बदल दिया। समय को बदलने का हुनर हमारे अंदर होना चाहिये। समय अच्छा या बुरा नहीं होता, व्यक्ति का चिन्तन ही अच्छा या बुरा होता है, आप सुबह उठते हैं और उठते ही भापको यदि शुरू की याद भाती है आपके चिन्तन में अगर सद्‌गुरु अति हैं तो आपका समय, सौभाग्य बन रहा है और यदि सुबह उठते ही आपके संसार, शरीर और भोग आपके चिन्तन के विषय बनते हैं तो भापका समय दुर्भाग्य बन रहा है। कर्म कभी समय को अच्छा तो कभी बुरा बनाने का प्रयास करता है। लेकिन जिनभक्ति ऐसा भस्न है जिसके सामने कर्म भी शक्ति क्षीण हो जाती है।
रत्नत्रय ग्रुप द्वारा गुरूदेव कभी युगसंत अलंकरण भेट रत्नत्रय अभिषेक ग्रुप दिल्ली को 151 वा अभिषेक भावलिंगी संत के सानिध्य में हुआ । गुरुदेव का पाद पक्षालन, शास्त्र भेंट कर गुरु पूजन हुआ
आचार्य श्री विमर्श सागर जी को रत्नत्रय ग्रुप द्वारा युगसंत अलंकरण भेट किया गया, आज का पुण्यार्जक परिवार प्रेम चंद गौरव सौरव जैन थे।

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