पुरस्कार से मिलती है नई ऊर्जा : *मुनि श्री सुप्रभसागर
तीन समूहों में आयोजित हुई थी राष्ट्रीय प्रतियोगिता
निबंध प्रतियोगिता के विजेताओं को मिला नकद पुरस्कार व प्रमाण-पत्र
नौ राज्यों के 176 प्रतिभगियों ने लिया प्रतियोगिता में भाग
ललितपुर। श्रमण रत्न सुप्रभ सागर जी महाराज, श्रमण रत्न प्रणत सागर जी महाराज की प्रेरणा व सान्निध्य में श्रुत पंचमी के अवसर पर राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता का आयोजन उत्कर्ष समूह व पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जुन्नारदेव के तत्वावधान में किया गया था। प्रतिभागियों को मात्र 9 दिनों की अवधि में निबंध लिखकर भेजना था। प्रतिभागियों ने भारी उत्साह दिखाया और तीनों समूह में 9 राज्यों से 176 निबंध प्राप्त हुए। सभी प्रतिभागियों ने निर्धारित विभिन्न विषयों पर बहुत ही अच्छे ढंग से , चिंतन-मनन और श्रम पूर्वक निबंध लिखे।
प्रतियोगिता के निर्देशक/संयोजक डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर ने बताया कि सभी विजयी प्रतिभागियों को उज्जैन के ऋषिनगर में श्रमण रत्न सुप्रभ सागर जी महाराज, श्रमण रत्न प्रणत सागर जी महाराज (ललितपुर नगर गौरव) के सान्निध्य में पुरस्कृत किया गया।
त्रिस्तरीय निर्णायक मंडल की अनुसंशा पर निबंध प्रतियोगिता का परिणाम इस प्रकार घोषित गया था, उज्जैन में आयोजित पुरस्कार समर्पण समारोह में सभी को सम्मानित किया गया।
पूर्वाचार्य समूह ( 45 से 65 वर्ष आयु )- प्रथम पुरस्कार :- 11000/-व प्रमाण-पत्र
श्रीमती ऊषा जैन पति संजय कुमार जैन , ललितपुर। द्वितीय पुरस्कार 7100/-व प्रमाण-पत्र सपना जैन इटारसी, तृतीय पुरस्कार :- 5100/-व प्रमाण-पत्र मोनिका जैन-सुलभ जैन गाडरवारा।
श्रमणाचार्य विशुद्ध सागर समूह (30 से 44 वर्ष आयु वर्ग) – प्रथम पुरस्कार :- 11000/-व प्रमाण-पत्र, डॉ. अरिहंत कुमार जैन, मुंबई, महाराष्ट्र, द्वितीय पुरस्कार :- 7100/- व प्रमाण-पत्र पूजा जैन सेलम, तमिलनाडु, तृतीय पुरस्कार :- 5100/- व प्रमाण-पत्र, सचिन जैन लोहारिया, बाँसवाड़ा, राजस्थान।
विशुद्ध रत्न सुप्रभसागर समूह (19 से 29 वर्ष आयु वर्ग)- प्रथम पुरस्कार :- 11000/-व प्रमाण-पत्र
सीनू जैन, बानपुर जिला ललितपुर, उत्तर प्रदेश, द्वितीय पुरस्कार :- 7100/-व प्रमाण-पत्र स्वस्ति जैन-सुनील जैन अशोकनगर, तृतीय पुरस्कार – 5100/-व प्रमाण-पत्र, निशांत जैन-पवन जैन नेकौरा जिला ललितपुर।
सांत्वना पुरस्कार (कुल 10) : प्रत्येक को 1100/- रुपये व प्रमाण-पत्र – अनिल जैन भोपाल, भाग्यश्री नांदगांवकर, वाशिम,वंदना जैन, झांसी, उत्तर प्रदेश,शुभांगी जैन, दिल्ली,कल्याणी जैन फरसोले, औरंगाबाद , मुस्कान जैन-संजय जैन, ललितपुर, प्रतीक्षा शरद फ्रुकटे अमरावती ,अतिशय मोदी-सनत मोदी ,पनागर , साहनी जैन-अभय जैन, जबलपुर,अध्यात्म जैन, जोधपुर।
प्रतियोगिता में सम्मिलित सभी प्रतिभागियों को ई-प्रमाण पत्र उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए व्हाट्सएप नंबर/प्रतियोगिता ग्रुप पर भेजे गए हैं।
इस मौके पर मुनि श्री सुप्रभ सागर महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि प्रतिभाओं का सम्मान करना एक अच्छी परंपरा है। इससे दूसरों को प्रेरणा मिलती है तो समाज को टेलेंट मिलता है। प्रतिभाएं देश की धरोहर हैं उनको प्रोत्साहित करना हमारा कर्तव्य है। जो पुरस्कृत होते हैं उनका उत्साहवर्धन होता है तथा अन्य लोगों को प्रेरणा मिलती है। मेधावियों को पुरस्कार से नई ऊर्जा मिलती है ।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के चित्र अनावरण व दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। संचालन प्रतियोगिता के संयोजक/निर्देशक डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर ने किया।
इस मौके पर प्रतियोगिता के परामर्श मंडल के ब्र. साकेत भैया जी, राजेन्द्र ‘महावीर’ सनावद, पंडित अखिलेश जैन शास्त्री तथा प्रतियोगिता आयोजन समिति के राजेश जैन गुड्डू, जितेंद्र जैन आकांक्षा, दिलीप जैन एवं उज्जैन जैन समाज के प्रमुख पदाधिकारी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
*राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता के बिषय* :
पूर्वाचार्य समूह ( 45 से 65 वर्ष आयु ) के लिए निबंध के विषय हैं श्रुत पंचमी महापर्व: हमारा कर्तव्य एवं दायित्व, बिगड़ती संस्कृति-बिखरते परिवार के कारण व बचाव, मोबाइल वरदान या अभिशाप, श्रुतधर आचार्यों की परंपरा एक दृष्टि, स्वाध्याय प्रभावक श्रमणाचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज व्यक्तित्व- कृतित्व।
श्रमणाचार्य विशुद्ध सागर समूह (30 से 44 वर्ष आयु वर्ग) के विषय हैं-हमारी संस्कृति और संस्कार -संरक्षण के उपाय, प्राकृत भाषा संरक्षण और
संवर्द्धन के उपाय, महान पर्व श्रुत पंचमी एवं शास्त्र संरक्षण के उपाय,सोशल मीडिया का सदुपयोग कैसे करे, वर्तमान के संदर्भ में हमारे कुलाचारों की उपादेयता ।
विशुद्ध रत्न सुप्रभसागर समूह (19 से 29 वर्ष आयु वर्ग) के लिए बिषय हैं-इंटरनेट की उपयोगिता, संस्कारों का महत्व,आचार्य भूतभली एवं आचार्य पुष्पदंत का अवदान, श्रमण सुप्रभ सागर जी एवं उपनयन संस्कार,वर्तमान संदर्भ में श्रुत पंचमी और हमारे कर्तव्य।