पुरुलिया में नदी से निकली नौवीं-दसवीं शती ईस्वी की पार्श्वनाथ जिन प्रतिमा

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16 अक्टूबर 2023 को सुबह गोलामारा निवासी पशुपति मचाटो ने नदी में हाथ-मुंह धोते समय मूर्ति देखी। नदी के किनारे उसका धान का खेत है। वह खेत पर काम करने गया था। वह हाथ-मुह धोने के लिए पानी में उतरा कि उसे यह प्रतिमा दिखी। उसने गांव जाकर लोगों को जानकारी दी। गांव के लोगों ने प्रतिमा को रस्सी व साइकिन के टायरों से बांधकर बाहर खींचा। फिलहाल यह प्रतिमा स्थानीय जैन मंदिर में स्थापित करवायी गई है।
प्रतिमा सपरिकर व कलात्मक है। प्रतिमा की कलत्मकता दर्शनीय है। पादपीठ पर धरणेन्द्र पद्मावती को पैरों और उससे नीचे का भाग सर्पाकृति तथा ऊपर का भाग दैवाकृति में शिल्पित किया गया है। सर्प की कुण्डलियों से आपस में गांठ बाधे हुए दर्शाया गया है। बांयी ओर त्रिफणाच्छादित पद्मावती और दायीं ओर त्रिफणाच्छादित घरणेन्द्र को दर्शाया गया है। जो कि पार्श्वनाथ के यक्ष-यक्षी हैं। उसके उपरान्त सिंहासन के एक-एक विरुद्धाभिमुख सिंह, तदुपरान्त उसी पादपीठ में ही एक-एक भक्त गवासन में अंजलिबद्ध हैं। कायोत्सर्गस्थ जिन कमलासीन हैं। जिन के दोनों पार्श्वों में कलात्मकम चामरधारी हैं।
तदुपरान्त पार्श्वों में क्रम से एक के ऊपर एक (चार-चार) आठ विभिन्न आसनों में बैठी हुई दैव आकृतियां हैं। इन्हें दिक्पाल कहा जा रहा है। अभी इन्हें दिक्पाल कहना इसलिए ठीक नहीं होगा कि बाई ओर की सबसे नीचे की नारी आकृति प्रतीत होती है। इसलिए अभी इसके साक्षात् अध्ययन की गुंजाइस है।
जिन के पीछे से सर्प-कुण्डली दर्शाते हुए मस्तक पर सप्त फणावली आटोपित है। फणों इतना अच्छा उत्कीर्णन अन्यत्र दुर्लभ है। फणों के ऊपर छत्रत्रय बने हुए हैं।
वितान में दोनों ओर एक-एक माल्यधारी गगनचर उत्कीर्णित हैं, साथ ही एक-एक मृदंगवादक हैं। अधिकांश प्रतिमांकनों में छत्रत्रय के ऊपर एक मृदंगवादक दर्शाया जाता है, किन्तु इस प्रतिमा में दोनों ओर दो मृदंगवादक हैं।
ऐतिह्य, मूर्तिकला और जैन इतिहास की दृष्टि से प्रतिमा बहुत महात्वपूर्ण है। पाकबिररा आदि आस-पास के स्थानों से प्राप्त जैन प्रतिमाओं से साम्य करने पर यह मूर्ति नौवीं-दसवीं शती ईस्वी की अनुमानित की गई है। सप्त-सर्प-फणावली और आसन पर धरणेन्द्र-पद्मावती की उपस्थिति से यह प्रतिमा तेईवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति निर्विवाद है।

डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
22/, रामगंज, जिंसी, इन्दौर
9826091247

01 Puruliya me mili parsvanath pratima

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