कर्म का भरोसा कभी मत करना । आज जो वैभव तेरे चरणों में पड़ा है। जब कर्म अपना रंग दिखाएगा तो ध्यान रखना, खना, तू भी वैभववान व्यक्तियों के के चरणों में पड़ा हुआ दिखाई देगा। काल तो अपना अपना परिणमन दिखाएगा । काल के परिणमन में जब पुण्योदय होगा तो सब अनुकूल साधन एकत्रित हो जाएंगे और तू यदि मिट्टी को भी छुएगा तो वह मिट्टी भी सोना बनकर तेरा साथ देगी। लेकिन काल परिणमन में तेरा पाप कर्म का उदय होगा तो ध्यान रखना, तिजोरी में रखा हुआ सोना भी मिट्टी हो जाता है। पाप कर्मोदय में अपने भी दर किनार कर लेते हैं। अपने ही लोग भी पहिचानने से इन्कार कर देते हैं। यह मंगल अदुपदेश धर्म नगरी टीकमगढ़ के नया जैन मन्दिर में चल रहे श्री 1008 सिद्ध- चक्र महामण्डल विधान के मध्य आन्चार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज ने दिया।
आचार्य श्री ने विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा- बन्धुओं ! पाप कर्म के उदय में, दुःख- संकट के समय में भगवान की शरण लेने वाला व्यक्ति संसारी है किन्तु जो सुख-दुःख दोनों ही अवस्थाओं में समभाव को धारणकर भगवान की आराधना करता है वही वास्तव में सच्चा धर्मात्मा मोक्षमार्गी हो सकता है। संसार का प्रत्येक प्राणी पुष्य व पाप कर्मों से संचालित है। जिस समय आप पुण्य कार्यों को करते हुए पुष्य का बंध करते हैं, ध्यान रखना, उस पुण्य बंध के काल में आपकी आत्मा के साथ पाप कर्म भी बंध की प्राप्त हो रहा है क्योंकि पुण्य और पाप दोनों ही सगे भाई हैं। ये दोनों ही अभिन्न मित्र हैं। जहाँ पुण्य अपनी दस्तक देता है वहाँ पुष्य अपने साथी पाप को भी आमंत्रित कर लेता है। इसीलिए पुण्य-पाप से भी ऊपर कोई है, वह है धर्म। पुष्य-पाप दोनों से छूटकर ही कोई प्राणी आत्मा के वास्तविक सुख-आनन्द को प्राप्त कर सकता है। जब तक आत्मा के शुद्ध स्वरूप का ग्रहान – ज्ञान नहीं होता तब तक संसार भ्रमण के कारण पुण्य व पाप से भी नहीं छूटा जाता। आत्म-स्वरूप को जाने बिना पुठ्य-क्रियायें भी संसार-वर्धन में ही कारण हैं। अतः पुण्य कार्यों के साथ आत्म-स्वरूप को जानने का भी हमें सतत् पुरुषार्थ करते रहना चाहिए।
सकल समाज टीकमगढ़ ने किया शीतकालीन प्रवास हेतु निवेदन- श्री 1008 सिकुचक्र महामण्डल विधान की आराधना चलते शीत-कोहरा ने भी अपना कहर बरसाना प्रारंभ कर दिया । बड़ती ठण्ड को देखकर सकल जैन समाज की विभिन्न कॉलोनी से समाज – बन्धुओं ने आचार्य श्री के चरणों में निवेदन किया कि है आचार्यश्री। आप आने चतुर्विध संघ सहित शीतकालीन वाचना की स्थापना किीकमगढ़ में ही करें। इसी अवसर पर जन्मभूमि जतारा से भी सैकड़ों गुरु भक्तों ने पुनः जन्मभूमि की ओर विहार करने का निवेदन किया !