पत्रकारिता या मीडिया को प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में चौथा स्तंभ माना गया है। प्रजातंत्र में संवैधानिक व्यवस्था में तीन स्तंभ होते है विधायिका, कार्यपालिका और न्याय पालिका। इन तीन स्तंभों से भी बढ़कर चौथे स्तंभ निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का माना गया है। निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता जिसे हम गर्व से प्रजातंत्र का चौथा स्तभं कहकर सम्मान करते है। उस चौथे स्तंभ को आज किस स्थिति से गुजरना पड़ रहा है
किन किन गंभीर चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है यह हमारे चिंतन का विषय है। 26 जनवरी 1950 को संविधान के अनुरूप लोक तांत्रिक शासन प्रणाली को लागू किया गया। उस समय देश के कर्णधारों ने जोर शोर से कहा प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ निष्पक्ष पत्रकारिता है, जो समय समय पर अपनी कलम से अन्याय और अत्याचार को उजागर करेगा। जब देश आजाद हुआ पत्रकारिता का एक मात्र माध्यम समाचार पत्र थे। समाचार पत्रों का प्रकाशन देश के नामी औद्योगिक घरानों ने कर सबसे पहले निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का गला घौंटा।
समाचार पत्र के मालिक के ही इशारे पर चलना संपादक एवं पत्रकार की मजबूरी है। जो पत्रकार जिस समाचार पत्र के लिये काम करता है वह अखबार मालिक की इच्छा के विरूद्ध अपनी लेखनी नही चला सकता। अगर इच्छा के विरुध्द कभी लिख दिया त़ो उस पत्रकार की उसी दिन छुट्टी कर दी जाती है। आज मीडिया के तीन माध्यम है। सबसे पहले समाचार पत्र ही एक मात्र माध्यम थे। पिछले लगभग 30- 35 वर्ष से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अर्थात् टी वी चेनलों ने प्रवेश किया है। इन मीडिया के दो माध्यम के अलावा पिछले लगभग 10 -15 वर्ष से सोशल मीडिया भी जोर शोर से सक्रिय हुआ है। आज हम देखते है देश की आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश में स्वतंत्र एवम् निष्पक्ष पत्रकारिता का गला घोंटा जा रहा है।पहले निष्पक्ष पत्रकारिता समाचार पत्रों के मालिकों के हस्तक्षेप से प्रभावित थी। वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने पूरी तरह से पैर पसार लिये हैं। टी व्ही चैनलों के मालिकों ने निष्पक्ष पत्रकारिता का गला घौंट दिया है। चैनल बाले जिसे चाहते हैं वही समाचार निरंतर प्रसारित होता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर गोदी मीडिया या बिकाऊ मीडिया आदि अनेक आरोप लग रहे हैं। हम जिसे प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहते है वह भारतीय मीडिया आज उधोगपतियों एवम् बड़े बड़े अखबार मालिकों, चैनल मालिकों के यहाँ गिरबी रखा है। मालिक की इच्छा के अनुरूप पत्रकार को अपनी लेखनी चलानी पड़ती है या चैनल पर बोलना पड़ता है। जब पत्रकार अपनी कलम को स्वतंत्र रूप से नही चला सकता तो यह कहना वेमानी है कि भारतीय मीडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष है। अखबार में या टी व्ही चैनल पर काम कर रहे पत्रकार को कदम कदम पर यह भय रहता है कि कब मालिक नाराज हो जाये और घर का रास्ता दिखा दे। म. प्र. में मात्र दो या तीन समाचार पत्र है जिन्होंने ने अपने यहाँ काम करने बाले पत्रकारों को वेतनमान से वेतन एवं सुविधाएं देना प्रारंभ किया है। सबसे ज्यादा परेशान वरिष्ठ पत्रकार हैं जो समाचार पत्र से रिटायर होकर स्वतंत्र पत्रकार के रूप में विभिन्न सामयिक विषयों पर लेख लिखते हैं। इन सामयिक लेखों का प्रकाशन तो समाचार पत्र में करते हैं मगर लेखक वरिष्ठ पत्रकार को कोई मानदेय नहीं देते हैं। वरिष्ठ पत्रकार जिस समाचार पत्र में उसके आलेख को प्रकाशित किया है मानदेय की अपेक्षा करता है। तो सम्मान जनक मानदेय देना चाहिए।मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने राज्य शासन से अधिमान्य वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकारों की समस्याओं पर सहानुभूति दिखाकर उनकी सम्मान निधि, चिकित्सा सहायता राशि में वृद्धि की है। यह भी प्रावधान किया है वरिष्ठ पत्रकार के स्वर्गवास पर उसकी विधवा पत्नी को राज्य शासन सहायता राशि देगा। देश के नेता एवं अधिकारी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष पत्रकारिता में सबसे बड़ी बाधा है। अपने स्वार्थों की रक्षा के लिये ये पत्रकारों का अपने अनुसार उपयोग कर रहे है। जिला स्तर पर अधिकारी गण पत्रकारों में फूट डालकर दो गुट करा देते है। निडर एवं निष्पक्ष रिपोर्टिंग करने बाले पत्रकारों को तरह तरह से प्रताड़ित किया जाता है।उन्हे धमकियाँ दी जाती है गुण्डों से पिटवाया जाता है। वकील के माध्यम से मोटी राशि का मानहानि नोटिस भेजा जाता है। पत्रकारों पर ब्लैक मेलिंग के गंभीर आरोप लगाकर उनका चरित्र हनन किया जाता है। भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही पत्रकारों के हित में एक आदेश दिया है पत्रकारों को समाचार का श्रोत बताने के लिए वाद्य नहीं किया जा सकता। इस आदेश का पत्रकार जगत में स्वागत हुआ है।हम यह नही कह रहे कि सभी पत्रकार या मीडिया से जुड़े व्यक्ति राजा हरिश्चंद्र के वंशज है। हम मानते है कि इस जाति में भी कुछ पथ भृष्ट तत्व हो सकते है मगर उन पथ भृष्ट गिने चुने लोगों से पूरे समाचार जगत को एक ही चश्मे से देखना अन्याय होगा। यह भी सर्वमान्य सत्य है मीडिया से जुड़े हमारे साथियों को पथ भृष्ट करने में राजनेताओं और अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की स्वतंत्रता आज चुनौतीपूर्ण कठिन कार्य है। निष्पक्ष एवं निर्भीक पत्रकारिता आज जोखिम से भरा कठिन कार्य है। विगत वर्ष एक प्रकरण आया है जिसमें न्याय के लिए देश के ख्याति प्राप्त पत्रकार ने भारत की सर्वोच्च न्यायालय में शरण ली वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। पत्रकार दुआ के विरुद्ध राजद्रोह का मामला सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है।सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश में कहा है वर्ष 1962 का आदेश हर पत्रकार को ऐसे आरोप से संरक्षण प्रदान करता है। स्मरणीय है कि एक भाजपा नेता की शिकायत के आधार पर विनोद दुआ पर दिल्ली दंगा पर केंद्रित उनके शो को लेकर हिमाचल प्रदेश में राजद्रोह का आरोप लगाया गया था।एक एफ आई आर में उन पर फर्जी खबरें फैलाने, लोगों को भड़काने, मान हानिकारक सामग्री प्रकाशित करने जैसे आरोप लगाए थे। इस प्रकरण से हम अंदाज लगाने मजबूर हैं कि देश के चौथे स्तंभ का अस्तित्व खतरे में है जो सत्य को उजागर करने साहस करता है उसकी कलम तोड़ने कुचलने के सुनियोजित प्रयास हो रहे हैं विचारणीय बिंदु है यह है कि देश के जाने-माने लोकप्रिय पत्रकार विनोद दुआ अपने ऊपर लगाए गए देशद्रोह के प्रकरण में न्याय की गुहार लेकर देश की सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से न्याय मिल गया। उन पर देशद्रोह का प्रकरण चाहने वालों को मात खानी पड़ी। ऐसे निष्पक्ष निर्भीक पत्रकार विनोद दुआ जिन्होंने न्याय के लिये देश की सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया उनका पिछले वर्ष असामयिक स्वर्गवास हो गया। हम उन्हें विनम्र श्रृद्धांजली अर्पित करते हैं। ज्वलंत प्रश्न यह है देश के छोटे छोटे नगरों जिला मुख्यालयों पर कार्यरत पत्रकारों पर इस तरह का प्रकरण चलाया जाता है तो क्या वे भी सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच पाएंगे
नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।***************************
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