माननीय सुप्रीम कोर्ट पिछले कई वर्षों से पटाखों के इस्तेमाल को लेकर कई तरह के आदेश दे चुका है , जिससे बढ़ते प्रदूषण को लेकर उसकी चिंता स्पष्ट झलकती है । सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले दिनों दिए फैसले में पटाखों पर पूरी तरह से रोक लगाने से तो इंकार किया है , लेकिन इनके इस्तेमाल पर अंकुश लगाया है ।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को व्यावहारिक रूप में स्वीकारें :
सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों के निर्माण में हानिकारक प्रतिबंधित रसायन प्रयोग होने और उससे लोगों को होने वाले नुकसान व परेशानी पर नाराजगी और चिंता जताते हुए कहा कि मौज-मस्ती के लिए दूसरों के जीवन से खेलने की इजाजत नहीं दी जा सकती। पीठ ने कहा है कि वह लोगों के उत्सव मनाने के खिलाफ नहीं हैं लेकिन मौज-मस्ती के लिए किसी के मौलिक अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता। माननीय उच्चतम न्यायालय के इस फैसले पर सभी को अमल करना चाहिए। पर्यावरण प्रेमी बनकर पर्यावरण संरक्षण में महती भूमिका निभायें।
इस फैसले को व्यावहारिक रूप में भी स्वीकार करना चाहिए , प्रदूषण की स्थिति जिस तरह से खतरनाक होती जा रही है, उसमें हम सबको संजीदगी दिखाने की जरूरत है । दीवाली पर पटाखे चलाने में हमें संयम बरतने की जरूरत है . संयम केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में ही नहीं , अपनी सेहत की हिफाजत के लिए भी बरतें । इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि समय के साथ पटाखे दीपावली का हिस्सा बन चुके हैं , लेकिन जब उनका अधिक इस्तेमाल सेहत और जान-माल के लिए संकट बन जा रहा है तो फिर पटाखे न चलाने में ही भलायी है । अब तेज आवाज , रोशनी वाले तमाम पटाखे बाजार में आ गए हैं । यह पटाखे चंद क्षण तो खुशी दे सकते हैं मगर सेहत पर दुष्प्रभाव डालते हैं । यह पर्यावरण के साथ मानव जीव – जंतुओं के अलावा पेड़ – पौधों को भी प्रभावित करते हैं ।
पटाखों से प्रकृति व पर्यावरण दोनों को नुकसान :
पटाखों से प्रकृति और पर्यावरण दोनों को नुकसान होता है। 464 सिगरेट के बराबर एक पटाखा है। वायु, जल, ध्वनि और मिट्टी प्रदूषण पटाखों से होता है। अरबों रुपए की व्यर्थ में बर्बादी पटाखों के रूप में हम एक दिन में कर देते हैं। जिससे नुकसान ही नुकसान है,फायदा कुछ नहीं है।जितने रुपए के पटाखे हम एक दिन में फूंक देते हैं उतने रुपए से हजारों परिवारों का भरण-पोषण किया जा सकता है।पटाखों से हो रहे दुष्परिणामों के कारण आज हमारा जीवन व्यथित हो रहा है। हजारों मूक प्राणियों की निर्मम हिंसा हो रही है। आज हमें जागरूक होने की आवश्यकता है।
दीपावली के आध्यात्मिक भावों को समझें : हमारी परंपरा और संस्कृति में पर्यावरण के संरक्षण की बात कही गई है। पर्यावरण के बगैर मानवीय जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है।हमारे धर्म ग्रंथों में दीपक जलाने की बात कही गयी है। आतिशबाजी का कई नामोनिशान तक नहीं है। पूर्वजों ने भी इसी का पालन किया दीपक जलाकर, रंगबिरंगी रोशनी के माध्यम से इस पर्व को खुशी की सौगात दी है।आतिशबाजी और पटाखेबाजी केवल आधुनिक विकृतियां हैं। क्षण भर में लाखों रुपयों का नुकसान के साथ-साथ अमूल्य पर्यावरण को भी हानि है।
हमारे त्यौहार की लगभग सभी क्रियाएं प्रतीकात्मक होती हैं उसके पीछे उनके आध्यात्मिक अर्थ छुपे हुए होते हैं | हमारे पढ़े- लिखे और सभ्य होने की एक सार्थकता यह भी है कि हम उन प्रतीकों के आध्यात्मिक भावों को भी समझ कर और अपना कर चलें |
शुभ दीपावली, अशुभ पटाखा :
हमें मानवीय नजरिया रखते हुए ‘शुभ दीपावली, अशुभ पटाखा’ की परंपरा की शुरुआत करनी चाहिए। हमारी सांस्कृतिक परंपरा में बारूद को जलाना अशुभ माना जाता है फिर दीपावली पर पटाखों में भरे बारूद जलाकर हम क्या संदेश दे रहे हैं! पटाखे अशुभ के प्रतीक हैं, मिट्टी के दिए शुभ के प्रतीक। सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो, अन्धकार का नाश हो, इस भावना से दीपमालायें जलानी चाहिये।
ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ रहा खतरा :
वायु,जल,ध्वनि और मिट्टी का प्रदूषण पटाखों की तेज आवाज से ही होता है।ध्वनि प्रदूषण पटाखों की तेज आवाज एवं उनसे निकलने वाली गैसों से वायु प्रदूषण,पटाखा जलने के बाद उसकी अपशिष्ट सामग्री से जल एवं मिट्टी का प्रदूषण होता है जो कि हम सभी को जीवन के लिए प्राणघातक है। पटाखे पृथ्वी के जीवन कवच ‘ओजोन परत’ को भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं। पटाखों से निकले धुएं के कारण वातावरण में दृश्यता घटती है। दृश्यता घटने से वाहन चालकों को कठिनाई होती हैं और कई बार यह दुर्घटना का कारण बनती है। इसके अलावा पटाखे बनाने वाली कंपनियों के कारखानों में होने वाली दुर्घटनाएं और मौतें कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनसे सबक लेना चाहिए। इन मुद्दों में स्वास्थ्य मानकों की अनदेखी, बाल मजदूरी नियमों की अवहेलना या असावधानी मुख्य हैं। इन सब दुष्परिणामों के बाद सवाल है कि क्या पटाखे फोड़ना हमारे लिए जरूरी हैं? क्या पटाखे फोड़ने से ही दीपावली मनाना संभव है?
पटाखे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक :
किसी भी धर्म में हिंसा करने, दूसरों को पीड़ा पहुंचाने का उपदेश नहीं दिया गया है। हम पटाखे फोड़कर प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं तथा अनेक जीव जंतुओं को जलाकर प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। आंखों एवं कानों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।पटाखों की तेज रोशनी से तथा बारूद आंखों में जाने से आंखें खराब हो जाती हैं। इसकी पटाखों की तेज रोशनी से एवं आंखों में जाने से आंखें खराब हो जाती हैं। इसकी तेज आवाज से कानों के परदे भी फट जाते हैं।श्वास के रोगियों के लिए यह महापर्व आराधना का नहीं अपितु महायातना का पर्व बन जाता है।
विश्व में प्रतिवर्ष पटाखों की आग से लाखों लोग अंधे, बहरे, घायल हो जाते हैं। चिकित्सकों की राय में पटाखे से क्षतिग्रस्त आंख-कान को ठीक होने में भी काफी परेशानी होती है। कम आवाज वाले पटाखे भले ही आंख-कान को नुकसान नहीं पहुंचाएं लेकिन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते ही हैं। इसके साथ पटाखों के शोर से जानवर भी अछूता नहीं रहते। पालतू जानवर पटाखों के धमाके से डर जाते हैं।
स्वदेशी अपनाएं :
दीपावली पर विदेशी सामान नहीं खरीदें। अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए स्वदेशी ही खरीदें। पटाखों से दूरी बनाए रखें। मिट्टी से बनाए गए दीये ही खरीदें। ऐसा कर हम अपनी दिवाली को तो रोशन करेंगे ही दीये बनाने वालों के जीवन में भी रोशनी भर देंगे। हम नेत्रदान, रक्तदान के समर्थक हैं तो पटाखे न जलाएं।
पटाखों में हानिकारक तत्व :
जानकार बताते हैं कि पटाखों में सल्फर का प्रयोग होता है । जब पटाखे जलते हैं तो उसमें से सल्फर डाई आक्साइड , कार्बन डाई आक्साइड , कार्बन मोनो आक्साइड गैस अत्यधिक मात्रा में उत्सर्जित होती है जो हवा में घुलने के बाद आक्सीजन की मात्रा कम कर देती है । इससे सांस संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है । इसके अलावा पटाखों की तेज आवाज व जहरीले धुएं से पर्यावरण को भारी नुकसान होता है । हर बार दीवाली पर बड़ी संख्या में लोग पटाखों से जल जाते हैं और कई अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं । ऐसे में क्षणिक सुख पहुंचाने वाली विध्वंसकारी चीज से बचे ।
पटाखों की धुंध यानि स्मॉग से सांस फूलने , घबराहट , खांसी , हद्रय और फेफड़े सम्बंधी दिक्कतें , आंखों में संक्रमण , दमा का अटैक , गले में संक्रमण आदि के खतरे होते हैं । तेज आवाज वाले पटाखों का सबसे ज्यादा असर बच्चों , गर्भवती महिलाओं दिल और सांस के मरीजों पर पड़ता है । जानकारों के अनुसार पटाखों में कम से कम 21 रसायन मिलाए जाते हैं । वहीं कई वैज्ञानिकों का कहना है कि एक लाख कारों के धुएं से जितना नुकसान पर्यावरण को होता है उतना नुकसान 20 मिनट की आतिशबाजी से हो जाता है ।
कई लोगों ने इस दिवाली भी यह सवाल खड़ा होगा कि क्या पटाखे चलाए जाएं या पर्यावरण का खयाल करके सिर्फ दीये जलाकर दिवाली मनाई जाए । पिछले कई बरसों से यह एक आदोलन – सा खड़ा हो गया है कि पटाखों से तौबा की जाय और हवा को प्रदूषित होने इस अभियान के असर में पटाखे चलाना कम भी कर दिया है , दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं , जो
एक दिवाली में दस – दस हजार या इससे भी ज्यादा की एक लड़ी फूक देते हैं। यह विवाद पटाखे चलाने वालों और पटाखे विरोधी लोगों के बीच ही नहीं है, दुनिया में तमाम वैज्ञानिक और नीति निर्माता भी इस बहस में उलझे हैं कि क्या इंसान ने वातावरण को सचमुच इतना बदल डाला है । पटाखे न जलाने से पर्यावरण शुद्ध रहेगा , जीव हिंसा बचेगी धन का दुरूपयोग बचेगा , किसी अनहोनी से बचेंगे और किसी जीवन में एक नया प्रकाश देकर अनेक शुभकामनाओं की दुआयें मिलेंगी अहिंसा धर्म का पालन होगा तो क्या आप तैयार हैं , इस दिवाली पटाखे न चलाने का संकल्प लेने के लिए ?
-डॉ . सुनील जैन संचय