आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ऐसे संत है जो भूतो न भविष्यति है उनकी साधना उनका अनुशासन यदि कोई उनके दर्शन को जाता है तो कहता है सचमुच यह वर्तमान के वर्धमान है अनेक तीर्थों के कायाकल्प करने मे आपका योगदान है
आपका जन्म सनावद मध्यप्रदेश मे हुआ आपका जन्म नाम यशवंत पंचोलिया था कहते है लक्षण जन्म के दिन से घटित होने ही लगते है ऐसा ही इस अलोकिक बालक यशवंत के अवतरण दिवस से घटित हुआ वह दिन उत्तम आर्जव धर्म का था १८ सितम्बर १९५० को माता मनोरमा देवी पिता श्री कमलचंद जी पंचोलिया की बगिया महक उठी इस महान दिवस अवतरित यह बालक आज वर्तमान के वर्धमान के रूप मे उदित है आपकी लोकिक शिक्षा बीए प्रथम वर्ष तक हुयी .वैराग्य का प्रस्फुटन गणिनी आर्यिका ज्ञानमति माताजी के दर्शन व उनके सानिध्य से
सन १९६७ मे युग साधिका जंबूदीप प्रणेता सो से अधिक ग्रंथो की रचियता संघ सहित गणिनी आर्यिका ज्ञानमति माताजी सनावद पधारी इस आलोकिक बालक यशवंत की रुचि संसार के विषयो मे नहीं रही उनकी धर्मरुचि और संसार के प्रति उनकी उदासीनता गणिनी आर्यिका ज्ञानमति माताजी ने जान लिया बस होना था क्या इस दिव्य युवा यशवंत को माताजी द्वारा मोरटका जैन मंदिर मे वैराग्य का बीज प्रस्फुटन किया व साधना की और बढ़ते चले गये और माताजी संघ के साथ विहार करते हुये मुक्तागिरि सिद्धक्षेत्र तक गये और माताजी से उन्होंने ५ वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत लिया
राजस्थान त्याग तप मे इंनका प्रथम सोपान
यू कहा जावे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है दिव्य युवा यशवंत वैराग्य पद पर राजस्थान प्रथम सोपान है उन्होने राजस्थान के बागीदोरा मे १९६८ मे आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से प्रथम बार आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया यही उनका प्रथम सोपान रहा जो आज जिनधर्म की ध्वजा को पुलकित कर रहा है इसके उपरांत वह घर आकर कुछ दिन रुके वह कहा रुकने वाले थे और गणिनी आर्यिका ज्ञानमति माताजी के सानिध्य मे रहकर ब्रह्मचारी यशवंत शास्त्रो का अध्यन करने लगे और साधू संतो की सेवा मे समर्पित रहने लगे वात्सल्य से यह सबके प्रिय बन गये
यह क्षण अत्यधिक भाव विभोर कर देने वाला था जब ब्रह्मचारी यशवंत ने आचार्य श्री शिवसागर जी के पावन चरणों मे महावीर जी पंचकल्याण के दोरान मुनि दीक्षा का निवेदन किया यह सुन वहा मोजूद सभी जन मे हर्ष की लहर छा गयी भावाअतिरेक मे मुनि श्री श्रेयांस सागर जी महाराज ने उन्हे अपनी गोद मे उठा लिया
आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज ने उनसे कहा सम्मेद शिखर जी की वंदना कर आओ मुनि बनने के बाद न जाने कब जाना हो आज्ञा को शिरोधार्य करते हुये वंदना को गये लेकिन उसी दिन दोपहर की बेला मे आचार्य भगवन की समाधि हो गयी
प्रथमा चार्य आचार्य श्री शांति सागर जी की अक्षुण्ण पट्ट परम्परा में तृतीय पट्टा धीश। मुनि श्री धर्म सागर जी हुए
मुनि श्री धर्मसागर जी महाराज को आचार्य पद मिलने के उपरांत व ब्रह्मचारी यशवंत सम्मेद शिखर जी यात्रा उपरांत २४ फरवरी सन १९६९ (फाल्गुन सुदी ८ ) को११ दीक्षा सम्पन्न हुयी उसमे सबसे छोटे मुनि के रूप मे ब्रह्मचारी यशवंत जो मुनि बने जिनको मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज जी नाम दिया जिसका साक्षी महावीर जी का शांतिवीर नगर बना
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की परम्परा के पंचम पट्टादीश होने का आपको गौरव प्राप्त है, इस पंचम काल में कठोर तपश्चर्या धारी मुनि परम्परा को पुनः jस्थापित करने का जिन आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज को गौरव हासिल हुआ है, उसी परम्परा के पंचम पट्टादीश के रूप निर्दोष चर्या का पालन करते हुए पूरे देश में धर्म की गंगा बहाने का पुण्य मिलना निश्चित इस जन्म के अलावा पूर्व जन्म की साधनाओ का ही सुफल है. आचार्य श्री वर्धमान सागर iजी अत्यंत सरल स्वभावी होकर महान क्षमा मूर्ति शिखर पुरुष हैं, वर्तमान वातावरण में चल रही सभी विसंगताओं एवं विपरीतताओं से बहुत दूर हैं, उनकी निर्दोष आहार चर्या से लेकर सभी धार्मिक किर्याओं में आप आज भी चतुर्थ काल के मुनियों के दर्शन का दिग्दर्शन कर सकते हैं. अनुशासन प्रिय है और साध ही इनकी साधना को देख हर कोई चकित हो जाता है सचमुच यह साधना के सुमेरु है
१९९० मे आपको आचार्य पद मिला
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की परम्परा में चतुर्थ पट्टाचार्य श्री अजित सागर जी महाराज ने आपको इस परम्परा में पंचम पट्टाचार्य के रूप में आचार्य घोषित किया था, आचार्य श्री अजित सागर जी महाराज ने अपनी समाधि से पूर्व सन १९९० में एक लिखित आदेश द्वारा उक्त घोषणा की थी. तदुपरांत उक्त आदेश अनुसार उदयपुर (राजस्थान) में पारसोला नामक स्थान पर अपार जन समूह के बीच आपका आचार्य शान्तिसागर जी महाराज की परम्परा के पंचम पट्टाचार्य पद पर पदारोहण कराया गया. उस समय से आज तक निर्विवाद रूप से आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की निर्दोष आचार्य परम्परा का पालन व् निर्वहन कर रहे हैं.
पंचम पट्टा धीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी प्रमुख सानिध्य। एवम मार्गदर्शन में श्री श्रवण बेलगोला में श्री बाहुबली भगवान का महामस्तकाभिषेक वर्ष १९९३ , वर्ष २००६ तथा वर्ष २०१८ का ऐतिहासिक सम्पन्न हुआ
जितात्मा बनो, हितात्मा बनो, जितेन्द्रिय बनो और आत्मकल्याण करो. आचार्य श्री आपका वात्सल्य देखकर भक्तजन वशीभूत हो जाते हैं, आपकी संघ व्यवस्था देखकर मुनि परम्परा पर गौरव होता है. पूर्णिमा के चंद्रमा के समान ओज धारण किए हुए आपका मुखमंडल एवं सदैव दिखाई देने वाली प्रसन्नता ऐसी होती है कि इच्छा रहती है कि अपलक उसे देखते ही रहें. आचार्य श्री की कथनी और करनी में सदैव एकता दिखाई देती है, क्षमामूर्ति हैं, अपने प्रति कुपित भाव रखने वालों के प्रति भी क्रोध भाव नहीं रखते हैं. उनकी सदैव भावना रहती है कि जितात्मा बनो, हितात्मा बनो, जितेन्द्रिय बनो और आत्मकल्याण करो
आपमें विशेष गुरुभक्ति समाई हुई है, गुरुनिष्ठा एवं गुरुभक्ति के रूप में आपकी आचार्य पदारोहण दिवस पर कही गई ये पंक्तियाँ सदैव स्मरण की जाती रही है “चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के इस शताब्दी में प्रवर्तित चारित्र साम्राज्य को हम संघ रूपी वज्रसंघ की मदद से संभाल सकेंगे. हम तो गुरुजनों से इस अभुदय की आकाशा करते हैं कि आपकी कृपा प्रसाद से परमपूज्य आचार्य श्री अजित सागर जी महाराज ने आचार्य पद का जो गुरुतर भार सौंपा है, इस कार्य को सम्पन्न करने का सामर्थ्य प्राप्त हो.”
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी की दृष्टि में “चारित्र के पुन: निर्माण के लिए सूर्य के उदगम जैसे उद्भूत आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज आदर्श महापुरुष हैं.”दीक्षाएं : आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज गुरुदेव ने अभी तक 89 दीक्षाये दी है । परम्परा के पंचम पट्टाधिश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज ने 12 राज्यों राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, बंगाल एवम मध्यप्रदेश में किये है
निवाई वर्षायोग 2015 के वर्षायोग के समय आचार्य भगवन के पैर एक बड़ा छाला हो गया जो बहुत फूल चुका था लेकिन उस पीड़ा से व विचलित नहीं दिखाई दिये और नित्य साधना रत रहना यह कोई बिरला साधक ही कर सकता है हर कोई यह देख चकित रह जाता धन्य है ऐसे निर्मोही साधक
कुछ पंक्तिया
आचार्य शांतिसागर ने जिस पथ पर दीप जलाया
उस पथ कर चलकर भव्यों ने जीवन को धन्य बनाया
उस पथ के प्रहरी हो और पथिक गुरुदेव सकल गुणगान
आचार्य श्रेष्ट वर्धमान
तुम श्रमणों का अभिमान
है जन जन के आराध्य गुरु है भक्तो के भगवान
आचार्य श्रेष्ठ वर्धमान
तुम श्रमणों का अभिमान
दीक्षाएं : आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज गुरुदेव ने अभी तक 89 दीक्षाये दी है । परम्परा के पंचम पट्टाधिश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज ने 12 राज्यों राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, बंगाल एवम मध्यप्रदेश में किये है
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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