कुछ है जो नहीं है – कुछ नहीं है जो है.. सब कुछ हो – ऐसा कभी हो ही नहीं सकता..! अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज

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कुछ है जो नहीं है – कुछ नहीं है जो है..
सब कुछ हो – ऐसा कभी हो ही नहीं सकता..!      अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज                   औरंगाबाद /सोलापूर नरेंद्र /पियूष जैन भारत गौरव साधना महोदधि    सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का विहार महाराष्ट्र के ऊदगाव की ओर चल रहा है  विहार के दौरान  भक्त को कहाँ की
कुछ है जो नहीं है – कुछ नहीं है जो है..
सब कुछ हो – ऐसा कभी हो ही नहीं सकता..!
_हमें कई बार जिन्दगी में हार का सामना करना पड़ता है जिसमें कुछ लोग टूट जाते हैं, तो कुछ लोग थक जाते हैं, तो कुछ लोग हार कर बैठ जाते हैं और कुछ लोग फिर से मेहनत करना शुरू कर देते हैं।
किसी ने चक्रवर्ती से कहा – मुझे आप पर भरोसा नहीं होता कि आप राज्य, महल, सिंहासन, बेशुमार धन सम्पत्ति, 96 हजार पत्नियाँ, 64 हजार लड़के, 32 हजार बेटियां, 3 करोड़ गाय, 84 लाख हाथी, 18 करोड़ घोड़े, चौदह महारत्न, नव निधि, शत्रु, मित्र, दरबार, राजनीति, कूटनीति, नाच, गान इन सबके बीच आप वैरागी – परम ज्ञानी कैसे रह सकते हैं-?क्योंकि हम तो झोंपड़ी में रहकर भी, नग्न साधु बनकर, घर-परिवार को छोड़कर भी संसार की सुख सुविधाओं से मुक्त नहीं हो पाते, तो आप कैसे वैरागी बनकर महल में रह सकते हैं-?
चक्रवर्ती ने अपने मन्त्री से कहा- जाओ दो कटोरे में तेल भरकर लाओ और इनको दे दो। दो कटोरों में तेल भर दिया और उस व्यक्ति से कहा – मेरे अन्तःपुर में जाओ और वहाँ सबसे सुन्दर स्त्री कौन सी है आकर बताओ। वह तो बड़ा खुश हो गया चलो भोगने को नहीं मिली, कम से कम देखने को तो मिलेगी। जैसे ही वह जाने लगा, तब चक्रवर्ती ने कहा- ध्यान रखना! कटोरे से तेल की एक बून्द भी नीचे गिरी तो ये हमारे दोनों सैनिक आपकी गर्दन को धड़ से अलग कर देंगे। इतना कहना था कि उसका दिल धक-धक करने लगा। जैसे ही वह घुम कर आया,, चक्रवर्ती ने पूछा कौन सी स्त्री सबसे सुन्दर थी-? वह व्यक्ति बोला महाराज, आप सुन्दर स्त्री को देखने की बात कर रहे हैं, हमें तो तेल के कटोरे में अपनी मौत दिख रही थी। तब चक्रवर्ती ने कहा – समझे! जिसके पास कुछ संभालने को हो तो सारी दुनिया चारों तरफ नाचती रहे, प्रलोभन देती रहे तब भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। तुमको अपनी मौत दिख रही थी और हमको अपने परमात्मा को पाना है,, इसलिए हर क्षण हर पल मुझे वही दिखता है।सब सुख सुविधाओं, भोग विलासिता में भी मुझे अपना आत्म वैभव दिखता है। इसलिए सब कुछ पाने के लिए सब कुछ छोड़ना पड़ता है…!!!नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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