नार्कोलेप्सी एक स्लीप डिसऑर्डर है, जिसमें व्यक्ति को दिन में बहुत अधिक नींद आती है या अचानक स्लीप अटैक आता है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पूरे दिन उबासी आती रहती है और कोई भी काम करते हुए नींद के कारण आंखें बंद हो सकती हैं। नार्कोलेप्सी के कारण नियमित दिनचर्या प्रभावित होती है और इससे पीड़ित व्यक्ति को दिन में अधिक देर तक जगे रहने में कठिनाई होती है।
नार्कोलेप्सी के कारण कई बार मांसपेशियां अस्थायी रुप से अपना नियंत्रण खो बैठती हैं, जिसे कैटाप्लेक्सी कहा जाता है। यह घातक बीमारी नहीं है, लेकिन इसके कारण दुर्घटना और चोट लग सकती है। एक सामान्य नींद चक्र में व्यक्ति की नींद तीन चरणों में पूरी होती है। शुरूआत में व्यक्ति की नींद बहुत हल्की होती है फिर गहरी होती है और लगभग 90 मिनट बाद वह रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) स्लीप लेता है। लेकिन नार्कोलेप्ली से पीड़ित व्यक्ति आंख बंद करने के तुरंत बाद आरईएम स्लीप लेने लगता है, जिसके कारण वह घंटों सोता रहता है और नींद नहीं खुलती है।
नार्कोलेप्सी दो प्रकार की होती है-टाइप 1 नार्कोलेप्सी और टाइप 2 नार्कोलेप्सी। कैटाप्लेक्सी के साथ होने वाली नार्कोप्लेसी को टाइप 1 नार्कोप्लेसी कहते हैं, जो बहुत आम है और बच्चों को होती है। बिना कैटाप्लेक्सी वाली नार्कोलेप्सी को टाइप 2 नार्कोलेप्सी कहते हैं।अगर समस्या की जद बढ़ जाती है, तो आपके लिए गंभीर स्थिति बन सकती है। इसलिए इसका समय रहते इलाज जरूरी है। इसके भी कुछ लक्षण होते हैं ,जिसे ध्यान देने पर आप इसकी शुरूआती स्थिति को समझ सकते हैं।
नार्कोलेप्सी शरीर के कई सिस्टम को प्रभावित करता है। नार्कोलेप्सी से पीड़ित व्यक्ति प्रायः दिन में नींद नहीं खुलती है और शरीर में सुस्ती बनी रहती है। जिसके कारण निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते हैं :
एक्सेसिव डे टाइम स्लीपनेस (ईडीएस):
रात में सोने के बावजूद दिन में अधिक नींद आती है, जिसके कारण एनर्जी कम हो जाती है और एकाग्र होने में कठिनाई होती है। नार्कोलेप्सी से पीड़ित व्यक्ति को उदासी और थकान महसूस होती है।
स्लीप पैरालिसिस:
नींद खुलने के बाद व्यक्ति कुछ मिनट तक उठने, बैठने या कुछ भी बोलने में असमर्थ होता है।
कैटाप्लेक्सी:
इसमें मांसपेशियों पर नियंत्रण नहीं रहता है और व्यक्ति चलने या उठने में लड़खड़ाता है। कैटाप्लेक्सी के कारण तेज गुस्सा भी आता है।
हैलुसिनेशन:
इसमें नींद में व्यक्ति के दिमाग में कोई दृश्य चल रहा होता है लेकिन इंद्रियां शामिल नहीं होती हैं। यदि यह तब होता है। जब आप गहरी नींद में न हों तो इसे हिप्नागोजिक हैलुसिनेश कहते हैं और यदि यह नींद खुलने के बाद होता है तो इसे हिप्नोपोम्पिक हैलुसिनेशन कहते हैं।
कभी-कभी कुछ लोगों में इसमें से कोई भी लक्षण सामने नहीं आते हैं और अचानक से व्यक्ति को तेज उत्तेजना होती है और वह जोर से हंसता है, डरता है और उसे गुस्सा आता है। नार्कोलेप्सी के लक्षण अन्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे ही होते हैं। इसलिए कई बार इस बीमारी के सटीक लक्षणों को पहचानना बहुत मुश्किल होता है।
कारण
नार्कोलेप्सी का सटीक कारण ज्ञात नहीं है। टाइप 1 नार्कोलेप्सी से पीड़ित व्यक्ति में हाइपोक्रेटिन रसायन का स्तर कम होता है। हाइपोक्रेटिन मस्तिष्क में मौजूद एक महत्वपूर्ण न्यूरोकेमिकल है, जो जागने और सोने के पैटर्न को रेगुलेट करने में मदद करता है। कैटाप्लेक्सी के मरीजों में भी हाइपोक्रेटिन का स्तर कम होता है। दरअसल मस्तिष्क में हाइपोक्रेटिन बनाने वाली कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने का कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन एक्सपर्ट मानते हैं कि यह ऑटोइम्यून रिएक्शन के कारण होता है। नार्कोलेप्सी डिसऑर्डर आनुवांशिक कारणों से भी होता है। यदि परिवार के किसी सदस्य को यह समस्या हो तो आपको नार्कोलेप्सी होने की संभावना बढ़ जाती है।
जोखिम
नार्कोलेप्सी के कारण आपकी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ प्रभावित हो सकती है और काम या स्कूल में आपके प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को अधिक सुस्ती और आलस महसूस होती है और कई बार तेज गुस्सा, हंसी और उत्तेजना का अनुभव होता है। सिर्फ इतना ही नहीं नार्कोलेप्सी के कारण व्यक्ति का मेटाबोलिज्म कम हो जाता है। इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है और वजन तेजी से बढ़ सकता है। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
इलाज
नार्कोलेप्सी का कोई सटीक इलाज नहीं है। लेकिन कुछ थेरिपी और दवाओं से व्यक्ति में नार्कोलेप्सी के असर को कम किया जाता है। नार्कोलेप्सी के लिए कई तरह की मेडिकेशन की जाती है :
स्टीमूलेंट ड्रग्स केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करती हैं और दिन में जगे रहने में मदद करती हैं। डॉक्टर नार्कोलेप्सी के इलाज के लिए सबसे पहले मोडाफिनिल या आर्मोडाफिनिल दवा देते हैं।
कैटाप्लेक्सी, हिप्नागोजिक हैलुसिनेशन और स्लीप पैरालिसिस के लक्षणों को कम करने के लिए वेनलाफैक्सिन जैसी दवा दी जाती है।
कैटाप्लेक्सी के असर को कम करने के लिए एंटीडिप्रेसेंट जैसे प्रोट्रिप्टिलिन, इमिप्रामिन और क्लोमिप्रामिन जैसी दवाएं बहुत प्रभावी होती हैं।
सोडियम ऑक्सजलेट रात में नींद को बढ़ाता है और नार्कोलेप्सी के असर को कम करता है। इसकी खुराक बढ़ाने से दिन में नींद नहीं आती है।
घरेलू उपचार
आहार जिसमें बहुत ही अधिक मात्रा में फाइबर, विटामिन और अन्य पोषक तत्व पाये जाते हों। इसके साथ ही आपको अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए।
इसके साथ ही जीवनशैली और आदतों में बदलाव करके नार्कोलेप्सी से काफी हद तक बचा जा सकता है।
रोजाना रात में निर्धारित समय पर ही सोएं और कम से कम 7 घंटे की नींद जरूर लें।
रात में ज्यादा खाना खाने से परहेज करें।
रात में सोने से पहले फ्लुइड न लें।
रोजाना एक्सरसाइज करें और हेल्दी डाइट लें।
देर शाम या रात में एल्कोहल,निकोटिन, चाय, कॉफी या कोई अन्य कैफीन युक्त पेय पदार्थ का सेवन न करें।
अपने वजन को नियंत्रित रखें।
रिलैक्स होने के लिए दिन में सिर्फ 10-15 मिनट तक पावर नैप लें।
अश्वगंधा,सर्पगंधा, ब्राह्मी जिसे अक्सर याददाश्त बढ़ाने वाले एजेंट के रूप में निर्धारित किया जाता है, अनिद्रा के लिए भी दिया जाता है।
अश्वगंधारिष्ट ,ब्राह्मी घृत भी लाभकारी हैं
प्राणायाम, सूर्यनमस्कार और योग निद्रा जैसी योग प्रथाओं की भी सिफारिश करता है। विश्राम को बढ़ावा देने के अलावा, योग को सहानुभूति गतिविधि के दमन के माध्यम से तनाव और चिंता के लक्षणों को कम करने में मदद करने के लिए दिखाया गया है – आपके तंत्रिका तंत्र का हिस्सा जो आपके तनाव प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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