भिंड से सोनल जैन की रिपोर्ट
महाकाव्य जीवन है पानी की बूंद के मूल रचयिता, जिनगामा संप्रदाय के प्रवर्तक, भावलिंगी संत श्रमणाचार्य गुरुदेव श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज का पवित्र शहर गुरुग्राम में भव्य पदार्पण हुआ।
29 जून शनिवार को प्रातः बेला में आचार्य श्री अपने संघष्य 24 मुनिराज और आर्यिका माताजी सहित मोलिव सिटी से पदविहार करते हुए गुरुग्राम के जैकनपुरा में स्थित 1008 श्री पार्श्वनाथ जिनालय में पधारे। सम्पूर्ण जैन समाज ने गाजे-बाजे के साथ आचार्यसंघ की भव्यातिभव्य आगवानी कर जिनशासन के ध्वज को मुक्त झाकाश में फहराया सोनल जैन पत्रकार ने बताया की
भव्य आगवानी के साथ ही विशाल धर्मसभा आयोजित की गई। जिसमें दिल्ली, बड़ौत, बादशाहपुर, कृष्णा नगर, राजगढ़, कैलाश नगर, नजबगढ़, गाजियाबाद द्वारिका पुरी आदि विभिन्न स्थानों से भागन्तुक भक्त समूह ने गुरुदेव के चरणों में श्रीफल समर्पित किया।
मंगलाचरण, द्वीप प्रज्वलन, गुरुपूजन आदि विविध आयोजनों के पश्चात आचार्य श्री ने अपना मांगलिक उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा-
आपको यह मानव जीवन मुस्कुराने के लिए मिला है। इस धरा पर सर्वप्रथम प्रकृति मुस्कुराई थी जब युग के आदि में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म हुआ था। अक्सर व्यक्ति के मुख पर मुस्कान होती नहीं है किन्तु वह भरपूर कोशिश करता है कि मेरा चेहरा मुस्कुराता हुआ दिखाई दे। बन्धुमो ध्यान रखना, बनावटी मुस्कान ‘आपको आन्तरिक शान्ति प्रदान नहीं कर सकती। आंतरिक शान्ति ‘आपको अंतरंग वैभव अर्थात आत्मा के गुणों को जानकर व श्रद्धान करते हुए उन गुणों में लीन होने से ही प्राप्त हो सकती है। धर्म नगरी गुरुग्राम में पूज्य आचार्य संघ का मंगल प्रवास अधिक से अधिक प्राप्त हो, इस हेतु एकल जैन समान ने अपन विनम्र निवेदन किया ।