-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर
जैन धर्म का वर्चस्व चालुक्य और राष्ट्रकूट शासकों के शासन काल में अपने चरम पर था और इन शासकों के संरक्षण के परिणाम स्वरूप आधुनिक कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र राज्यों में कई स्मारकों, प्रतिमाओं और मंदिरों का निर्माण हुआ। विद्वानों और इतिहासकारों के अनुसार आधुनिक लातूर शहर राष्ट्रकूट राजाओं का उद्गम स्थल रहा है और यह तथ्य कई शिलालेखों और प्रमाणों के आधार पर पुष्ट है।
समय के साथ साथ राष्ट्रकूट शासकों ने अपनी राजधानी को कई स्थानों पर स्थानांतरित किया परन्तु दक्षिणी महाराष्ट्र, उत्तर पूर्व कर्नाटक और पश्चिमी आंध्र पर इन शासकों की मजबूत पकड़ रही। कल्याणी के चालुक्य शासकों ने भी इस क्षेत्र पर शासन किया, जहाँ उनके शासनकाल ने कई शानदार मंदिरों, प्रतिमाओं और स्मारकों का उपहार दिया है। उनके राज्य की राजधानी कल्याणी थी जो आज बासव कल्याण के नाम से जाना जाता है और कर्नाटक राज्य में स्थित है।
मुद्गड रामलिंग नामक स्थान महाराष्ट्र राज्य के लातूर जिले में स्थित है। यह स्थान लातूर जिला मुख्यालय से करीब 67 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में स्थित है और उस्मानाबाद जिला मुख्यालय से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण पूर्व दिशा में स्थित है। इस स्थान पर कई प्राचीन जैन अवशेष शिलालेख और खंडित प्रतिमाओं के रूप में देखे जा सकते हैं। वर्तमान में इस ग्राम में एक छोटा सा जैन मंदिर है जो कि नई चाकुर और कासार सिरसी को जोड़ने वाली सड़क के पास में स्थित है। इस ग्राम में स्थित जैन मंदिर 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान को समर्पित है। यह श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर नाम से जाना जाता है।
मुख्य कायोत्सर्ग तीर्थंकर पार्श्वनाथ-
तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा लगभग 5 फीट की कायोत्सर्ग अवस्था में विराजमान है। यह काले पाषाण से निर्मित है। भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा अत्यंत मनोहारी है। इस प्रतिमा के मस्तक को सात फण वाले सर्प के फणों से आटोपित दर्शाया गया है। वह सर्प प्रतिमा के पृष्ठ भाग से कुण्डली बनाते हुए पादद्वय तक टंकित किया गया है। पाश्र्वों में उसकी कुण्डली स्पष्ट दृष्टव्य है। चँवरधारियों के स्थान पर इसके पार्श्वों में धरणेन्द्र पद्मावती चँवर ढुराते दर्शाये गये हैं। वाम भाग में पद्मावती है और दक्षिण में धरणेन्द्र। प्रभावल सामान्य है, परिकर में वितान में उड्डीयमान माल्यधर देव देव दोनों ओर दर्शाये अंकित हैं। इस प्रतिमा के वक्ष पर श्रीवत्स का चिह्न नहीं है।
कायोत्सर्ग तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वितीय प्रतिमा-
उपरोक्त मूलनायक पार्श्वनाथ की भांति एक और कायोत्सर्ग प्रतिमा है। इसमें भी मस्तक पर सप्त सर्पफण और परिकर में चँवरी निर्मित हैं। मस्तक आदि कुछ खंडित होने से यह संग्रह में रखी गई है। यह भूरे बलुआ पाषाण के शिलाखण्ड में निर्मित है।
दो पद्मासन तीर्थंकर पार्श्वनाथ प्रतिमाएँ-
इसी संग्रह में दो पद्मासन तीर्थंकर पार्श्वनाथ प्रतिमाएँ हैं। एक काले पाषाण में निर्मित है जो थोड़ी अर्वाचीन है। कुछ खण्डित होने से यह संग्रह में रखी है अर्थात् इसकी नियमित पूजा नहीं होती है। दूसरी पद्मासन प्रतिमा का स्कंधों से ऊपर का खण्डित भाग नहीं है। हाथ भी खण्डित हैं, किन्तु इस प्रतिमा के दोनों पार्श्वों में से सर्पकुण्डली का अवशेष देखा जा सकता है, इसलिए यह तीर्थंकर पाश्र्वनाथ की प्रतिमा निश्चित की जा सकती है।
तीर्थंकर छवि युक्त दो स्तंभ-
एक प्रस्तर में कायोत्सर्ग तीर्थंकर उत्कीर्णित हैं, तीर्थंकर प्रतिमाओं के सर्प-फणाटोप देखा जा सकता है।
दूसरा स्तंभ मानस्तंभ या कुछ स्तूप के आकर का है। इसके उपरिम भाग में तो चारों ओर एक एक पद्मासन तीर्थंकर निर्मित हैं किन्तु उनसे नीचे के स्थान में एक दिशा में समानान्तर दो कायोत्सर्ग तीर्थंकर प्रतिमाएं है, एक दिशा में एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा दर्शायी गई है और शेष दो दिशाओं की निर्मिति अदृष्ट है।
मंदिर प्रांगण के इस संग्रह में एक और शिलाफलक है जो किसी स्तंभ का ही भाग जान पड़ता है। इसमें भी सप्तफणाटोपित कायोत्सर्ग तीर्थंकर प्रतिमा है।
इस मुद्गड रामलिंग ग्राम में जैन समाज का एक भी घर नहीं है और पूजा पाठ – अभिषेक आदि क्रिया के लिए पास स्थित ग्राम कासार सिरसी से पुजारी आता है। दर्शनार्थियों के लिए जैन मंदिर की चाबी पास स्थित मकान पर रहती है। जैन मंदिर का जीर्णोद्धार कुछ वर्ष पूर्व अखिल भारतीय दिगम्बर जैन महासभा की सहायता से किया गया था । इस ग्राम के आस पास नई चाकुर और कासार सिरसी जैसे तीर्थ भी स्थित हैं।
सभी छायाचित्र अमर रेड्डी के द्वारा संकलित हैं।
22/2, रामगंज, जिंन्सी, इन्दौर -452006
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