सम्मेदशिखर मधुवन झारखंड – संपूर्ण भारत वर्ष के आस्था का केंद्र धरती का स्वर्ग कोड़ाकोड़ी महामुनि राज की मोक्ष स्थली प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण धरती के स्वर्ग सम्मेद शिखरजी में परम पूज्य छपक मुनि श्री मेरुभूषण जी महाराज की सल्लेखना समाधि परम पूज्य विप्रणत सागर जी, श्री वत्स नंदी महाराज,आचार्य वैराग्य नन्दी, आचार्य विशद सागर जी, आचार्य प्रशन्न ऋषि ,स्थिविराचार्य श्री108 संम्भव सागर जी मुनिराज की देखरेख में उत्कृष्ट अवस्था मे चल रही है।परमपूज्य मुनि श्री प्रमाण सागर जी भी बीच बीच मे मार्गदर्शन दे ने आते रहते है।
31 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले जैन युवा पत्रकार गौरव राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पारस जैन ‘पार्श्वमणि’ वरिष्ठ पत्रकार कोटा ( राजस्थान) ने अधिक जानकारी देते हुवे बताया कि इस समय सम्मेदशिखर जी मे 110 पीछी बिराजमान है तथा रोजाना आते जाते रहते है।आर्यिका शुभमती माताजी ससंघ सहित सभी साधु इस सल्लेखना समाधि के उत्सव में 24 घंटे णमोकार मंत्र आदि जाप कर सहयोग कर रहे है।मुनि मेरुभूषण जी का शरीर बहुत शिथिल हो गया है लेकिन मानसिकरुप से बहुत सचेत अवस्था में है तथा खुद भी विभिन्न पाठो को बोलने का बीच बीच मे मार्गदर्शन दे रहे है।मुनि महाराज दृणतापूर्वक शारीरिक परिषय सहते हुए विगत 9 फरवरी 2023 से विना व्यवधान के उत्कृष्ट यम सल्लेखना समाधि की और अग्रसर है ।आइए हम आचार्य श्री मेरु भूषण जी महाराज के जीवन चरित्र की ओर चलते हैं।
यम सल्लेखनारत परम पूज्य क्षपक मुनिराज श्री मेरु भूषण जी महाराज ने अपने संयमित जीवन में अविस्मरणीय एतिहासिक विशेष कार्य किए हैं। उन्होने समाज के लिए हुबली के निकट श्री आदिनाथ जी मंदिर में 20 साल पुराना विवाद चल रहा था, जिसे पूर्णतः निपटवाया।
इंदौर चातुर्मास के दौरान 13 दिन अन्न, जल का त्याग कर दिया और फिर दिल्ली में भी 11 दिन का अन्न, जल त्याग कर, तीर्थराज गिरनार के अनाधिकृत कब्जे के विरोध में जैन समाज की आवाज को शासन, प्रशासन व पूरे देश तक पहुंचाया। तीर्थराज शिखरजी में बलि प्रथा के। विरोध में 6 दिन अन्न, जल का त्याग किया।जिसके कारण झारखंड सहित 6-7 राज्यों में इस प्रथा पर रोक लगी। सबसे बड़ी बात यह रही कि मुनि श्री बार-बार समाज की बात को प्रशासन तक पहुंचाने के लिए अन्न, जल का त्याग कर समाज को जागरूक करने का कार्य करते रहे हैं।
20 अक्टूबर 2011 को सोनागिरी में आचार्य श्री मेरू भूषण जी महाराज द्वारा 12 वर्ष पूर्व ही सल्लेखना की घोषणा की थी। आगरा में उन्होंने एलाचार्य श्री अतिवीर जी महाराज को आचार्य पर दीक्षित किया। अब उन्होंने शिखरजी में विप्रणत महाराज जी को आचार्य पद देकर,स्वयं क्षपक मुनि धारणकर अपनी यम सल्लेखना की ओर मार्ग प्रशस्त किया।
इस समय आचार्य विप्रणत जी महाराज ससंघ निर्यापकत्व की भूमिका निभा रहे हैं तथा पूरी तरह सेवा भाव से लगे हुए हैं तथा उत्कृष्ट समाधि में दिन रात सहयोग प्रदान कर रहे है।विगत लगभग 25 दिनों से क्षपक राज श्री मेरू भूषण जी ने अन्न जल सहित चारों प्रकार के आहार का त्याग कर, उत्तम समाधि मरण की ओर मार्ग प्रशस्त कर रखा है। धन्य है ऐसे तप त्याग और साधना की मूर्ति को ।
हम सब भी उनकी साधना की मंगल भावना भाते हुए अनुमोदना करते है व एक दिन सयंम के साथ हम भी जीवन मे इसी तरह की यम सल्लेखना समाधि को धारण कर मोक्ष को प्राप्त करे तथा संसार शरीर भोगों के बंधनों से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त हो जाए।साथ ही हम सभी क्षपक मुनिराज की समतापूर्वक समाधि के लिए पुनः भगवान से प्रार्थना करते है।
वास्तव में सल्लेखना, मृत्यु महोत्सव का , तप साधना की परीक्षा करने का , समतापूर्वक देह को विदा करने का जीवन का सर्वोत्तम उपकर्म है।भगवान क्षपक मुनिराज की मोक्ष यात्रा को सफल वनाये।
-पारस जैन ‘पार्श्वमणि’ पत्रकार कोटा