जोश में होश न खोएं, होली खेले जरूर पर सम्हल कर

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त्यौहार मनाना जरुरी हैं और वह भी उत्साह से. वैसे मंहगाई और आधुनिकता के कारण त्यौहार एक प्रकार की औपचारिकता बनती जा रही हैं पर त्योहारों की वैज्ञानिकता बहुत अनूठी होती हैं. दीवाली के दौरान घर की साफ़ सफाई के साथ वरसात के दौरान जो घरो और वातावरण में जो कुछ भी अशुद्धि होती हैं उसे साफ़ करके नए माहौल में जीने का मौका मिलता हैं. इसी प्रकार होली का त्यौहार यह ऋतू संधिकाल के कारण हम शीत ऋतू से ग्रीष्म ऋतू में प्रवेश करने के कारण ठण्ड की आदतें को छोड़कर ग्रीष्म ऋतू का स्वागत करने के साथ अपनी ऋतुचर्या और दिनचर्या को ग्रीष्म ऋतू के अनुकूल ढाले. यदि हम अचानक नयी ऋतू को स्वीकार करते हैं तब हम रोगग्रस्त होने की दिशा में बढ़ते हैं.

होली का त्यौहार की अपनी खूबसूरती होती हैं. इस मौसम में मनुष्य अपने आप मस्ती महसूस करता हैं और वह उमंग के साथ त्यौहार को मनाता हैं और मनाना भी चाहिए पर हमें जोश में होश नहीं खोना चाहिए. वर्तमान में समाज चिंता ग्रस्त, तनावग्रस्त अधिक हैं और इस बहाने वह भी कुछ कुंठाओं को मिलबैठकर भूल जाना चाहता हैं और इस बहाने वह तरो ताज़ा महसूस करता हैं. पर आजकल होली में कुछ विद्रूपता आने से हमें सावधानियों का पालन जरुरी हैं. कभी कभी हम अपने आनंद के कारणदूसरों को दुखी कर देते हैं. होली का त्यौहार शालीनता के साथ दूसरों को ख़ुशी दे न की कष्ट, रंगो की जगह गुलाल का उपयोग करे.

वैसे हल्दी बहुत लाभकारी और हानिरहित होती हैं. केमिकल रंगों के कारण आँखों में नुक्सान होता हैं कभी कभी बहुत अधिक हानि होती हैं. पानी का दुरूपयोग न हो. क्या हम लोग आपस में मिल बैठकर गीत संगीत फाग गीतों से आनंद नहीं ले सकते. आपस में मुंह मीठाकर हर्षोल्लास से होली नहीं खेल सकते. होलोका दहन में लकड़ी की जगह कंडो आदि का उपयोग करे. हर मुहल्ले में एक जगह मिलबैठकर होलिका दहन का कार्यक्रम करे. इस समय पुरानी ग्लानि, बुराई, दुश्मनी को होली के रंग के बाद पानी से धो कर तरोताजगी महसूस करते हैं ऐसे ही बुराइयों, दुश्मनी को धोये और यह अपेक्षा रखे की अगले साल इस त्यौहार तक तरोताज़ा और मित्रवत से बिताये.

-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन, संरक्षक शाकाहार परिषद्

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