जैन धर्म में 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का 2622 व जन्म कल्याणक महोत्सव हम सभी प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को मनाते हैं। इस दिन भगवान महावीर स्वामी का जन्म वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय कुंडग्राम के नृपति सिद्धार्थ तथा रानी प्रियकारिणी त्रिशला देवी के राजमहल में हुआ था। भगवान महावीर स्वामी बचपन से ही अलौकिक घटनाओं के कारण वर्धमान, वीर, अतिवीर, सन्मति और महावीर इन नामों से जगत् प्रसिद्ध हुए।
प्रसिद्ध विद्वान एवं लेखक डॉ. नरेन्द्र जैन भारती ने बताया कि भगवान महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की अवस्था में राजमहल छोड़कर अपनी आत्मा के कल्याण के लिए 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की। तत्पश्चात उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्हें सर्वदृष्टा तथा सभी के हितकर्ता माना गया । सर्वदृष्टा को सर्वज्ञ कहा जाता है। उन्हें जीवन, जगत् तथा विश्व के संपूर्ण पदार्थो का जैसा स्वरूप है, वैसा ही ज्ञान प्रतिभासित होने लगता है। सर्वज्ञ बनने के बाद भगवान महावीर स्वामी ने हिंसा से पीड़ित जीव जगत् को मानवता का संदेश दिया और बताया कि सम्यक आचार, विचार और भावनाओं को जीवंत रखने के लिए आवश्यक है कि जीव हिंसा से बचें । अहिंसा ही परम धर्म है अतः स्वयं जीयो और दूसरों को भी निर्भय होकर जीने दो। अहिंसा, सत्य, अस्तेय अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के पाँच महाव्रतों के पालन को आपने मुक्ति का साधन बताया। आत्महित के साथ दूसरे प्राणियों के हितों के लिए कार्य करने को धर्म का अंग मनाते हुए आपने बताया कि संसार के सभी तरह के संकल्प विकल्पों में राग, द्वेष और मोह की भूमिका होती है अतः अनाशक्त जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति ही वैराग्य पद पर अग्रसर होकर ज्ञान, ध्यान और तपस्या रत रहकर शुभ और अशुभ दोनों तरह के कर्मों की निर्जरा कर भव बंधनों से मुक्त होता है।
भगवान महावीर स्वामी के मानवतावादी दृष्टिकोण को अहिंसा तथा अपरिग्रह के माध्यम से समझा जा सकता है। अहिंसा के साथ प्राणियों के हित संरक्षण के लिए अपरिग्रह का पालन जरूरी है। भगवान महावीर स्वामी का मानना था कि किसी भी वस्तु या धनादि पर मनुष्य का उतना ही अधिकार है जिससे उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। धन संग्रह को अनुचित बताते हुए आपने बताया था कि इसे कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता कि एक तरफ व्यक्ति के पास असीम सुख, सुविधाओं के साधन हों और दूसरी तरफ ऐसा सामाजिक जीवन हो जिसमें व्यक्ति रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी न कर सकें। इस असमानता को उन्होंने समझा और अल्प परिग्रह तथा अपरिग्रह के माध्यम से परिग्रह यथा धन, सोना, मकान, दुकानादि में सीमित रहकर शेष परिग्रह के त्याग पर जोर दिया ताकि सामाजिक जीवन से आर्थिक असमानता समाप्त हो सके । आज सारा विश्व अशांत है तो इसका कारण धन संग्रह की लालसा तथा दूसरों के संसाधनों को अपने अधिकार में करने की भावना है। विभिन्न विचारधाराओं में मतभेद के कारण मनभेद युद्ध तक ले जाते हैं अतः भगवान महावीर स्वामी ने मानवीय हितों को सुरक्षित रखने के लिए विचारों में समन्वय तथा सामंजस्य बनाने को महत्व दिया।
भगवान महावीर स्वामी ने जीवन भर धर्म प्रचार करते हुए लोगों को प्रेम और दया की शिक्षा दी। अतः वे मानवता के मसीहा के रूप में जगत प्रसिद्ध हुए । आज के सामाजिक, धार्मिक, बौद्धिक यहाँ तक कि राजनीतिक जीवन में शुचिता लाने तथा मानव हित के मार्ग पर चलने के लिए भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांत दिशा दर्शन का कार्य कर रहे हैं। जिससे सामाजिक जीवन में स्थायित्व आयेगा तथा राजनीति में भ्रष्टाचार मुक्त शासन को स्थापित करने में मदद मिलेगी। आज संपूर्ण विश्व हथियारों की होड में उलझा हुआ है। नित नये हथियार बन रहे हैं जो कुछ ही मिनट में लाखों लोगों के जीवन को तबाह कर सकते हैं, ऐसे में भगवान महावीर के अहिंसा, करुणा और प्रेम के शाश्वत् सिद्धांत ऐसे हैं जिन्हें जीवन में अपनाकर हम धर्म के सच्चे रास्ते पर चलते हुए समाज और राष्ट्र में शांति स्थापित कर सकते हैं। जगत्पूज्य भगवान महावीर स्वामी के बताए हुए रास्ते पर हम सभी चलें इसी से संपूर्ण मानवता का उद्धार होगा।
डॉ. नरेन्द्र जैन भारती, सनावद