मानव में मन का होना और मन का क्रियाशीलता भावों को प्रदान करती हैं .भावों का चलना एक अनवरत प्रक्रिया हैं .भावों/विचारों का जाग्रत हो या सोते समय या मौन अवस्था में या किसी से वार्तालाप के समय चलता रहता हैं .ये भाव रचनात्मक/सकारात्मक/नकारात्मक /विध्वंसात्मक/धार्मिक /सामाजिक /राजनीतिक या व्यापारिक कही भी हो चलता रहता हैं .भावों से ही हमारी गति निर्धारित होती हैं .भावों से ही मनुष्य का उत्थान या पतन होता हैं .वाणी के द्वारा अधिकांश हम अपने भावों का आदान प्रदान करते हैं .उन भावों से हम अपने या दूसरों के दुश्मन भी बन जाते हैं .
भावों का आदान प्रदान करते समय हम स्वयं या कम से कम एक व्यक्ति का होना अनिवार्य होता हैं .इसके बाद गोष्ठी ,सम्मेलन ,में भावों का आदान प्रदान होता हैं .भावों के आदान प्रदान से हम किसी के दोस्त बन जाते हैं या सकते हैं और दुश्मन भी.पूरा व्यवहार भावों के द्वारा शब्दों के माध्यम से होता है .जो किसी को अप्रिय लग सकता हैं और किसी को प्रिय .एक बार दांतो और जीभ में लड़ाई हुई और दांत बोले में बत्तीस हुआ और तुम एक ! जिव्हा बोली में तब भी बड़ी हो और रहूंगी .जिव्हा बोली में जन्म से साथ रहती हो और अंत तक रहती हूँ और तुम विलम्ब से आती हो और जल्दी चली जाती हूँ .दांत नहीं माने तो एक दिन जिव्हा ने एक पहलवान से अप्रिय बात कह दी तो पहलवान ने एक मुक्का मारा तो दांत टूट गए और दर्द से कराह उठे.तब जिव्हा बोली बोले तुम बड़े हो या मैं .
जब सुनाने का मन हो और सुनने वाला करीब न हो
तब अहसास होता हैं सुनाने वाले से सुनने वाला कितना कीमती होता हैं .
और एकांत कहाँ हैं ?जहाँ समान विचार धारा के दो लोग मिल जाए वहां एकांत होता हैं .
इसलिए जब कोई किसी से नहीं मिलना चाहता या वह आत्म चिंतन करना चाहता हैं तब स्वांत सुखाय हेतु लेखन कार्य सबसे अच्छा,श्रेष्ठ और अपनी बात बिना किसी के दखलंदाज़ी से व्यक्त करने का सशक्त माध्यम और साधन हैं .इसीलिए जो पढ़ने लिखने में रूचि रखता हैं उसे संसार में किसी की आवश्यकता नहीं रहती .डायरी लेखन कार्य इतना आत्म संतुष्टि देने वाला कार्य हैं ,जिसके माध्यम से हम अपने आप से बात करते हैं .अपना आत्म निरीक्षण/आत्मचिंतन करके अपने मनोभावों को शब्दों के माध्यम से कागज़ पर उतार देते हैं .इसमें लेखक को किसी के हस्तक्षेप की जरुरत नहीं पड़ती .वह बिना किसी को कष्ट दिए अपनी अनुभूति को, अपने खट्टे मीठे अनुभवों को कागज़ में उतार देता हैं .
जिस दिन ,जिस क्षण वह लिखता हैं उस समय उसकी मनोदशा /उस समय की अनुभूति /परिस्थिति /स्थिति चाहे स्वयं की स्थिति हो .या सामाजिक राजनैतिक पारिवारिक आर्थिक स्वास्थ्यजन्य वह लेखक लिख देता हैं वह इतिहास की धरोहर हो जाती हैं .वर्तमान क्षण तुरंत भूतकाल बन जाता हैं और हम भविष्य में पहुंच जाते हैं .वास्तव में काल दो ही हैं या होते हैं भूतकाल या भविष्यकाल ,वर्तमान तो क्षणिक होता हैं .
डायरी हमारे मन के द्वन्द या हमारी समस्या या कठिनाइयों को दूर करने में मदद करती हैं कारण हम अपनी समस्या को कई तरीके से लाभ हानि को ध्यान में रखकर लिखते हैं और मन की भड़ांस भी निकाल देते हैं उससे मन भी हल्का होता हैं और हमें अपनी गलती का अहसास होने लगता हैं और इसके अलावा हम स्वतंत्रता से अपने भावों को शब्दों के द्वारा व्यक्त कर देते हैं .
डायरी के द्वारा हम अपना अपनी अंतर्दृष्टि से अवलोकन कर सकते हैं या करते हैं .जी हाँ उससे हमें अपनी शक्ति ,कमजोरी ,अपनी मनोकांक्षा ,अपनी कठिनाइयां समझने का अवसर मिलता हैं .यह डायरी हमारे लिए दर्पण का कार्य करती हैं .जैसे दर्पणके समक्ष खड़े होने पर अपनी कालिख /सफाई दिखने लगती हैं वैसे ही जब अपनी डायरी लिखते हैं उस समय हम अपने भावों को निर्बाध रूप से व्यक्त करते चले जाते हैं .उस समय हम भयमुक्त रहते हैं और जो प्राकृतिक भाव होते हैं वे बिना रुकावट के सामने आते चले जाते हैं .
डायरी के द्वारा हम अपने भावोंको जो जैसे होते हैं उन्हें लिखते जाते हैं उस समय भावों की प्रमुखता होती हैं उस समय व्याकरण ,शब्द विन्यास का कोई अर्थ नहीं होता हैं .उस समय अभिव्यक्ति की प्रमुखता होती हैं .उस समय हमारे नकारात्मक भाव हो या सकारात्मक भाव वे निःसृत निकलते जाते हैं औरजब कुछ समय के बाद उनको पढ़ते है तब अहसास होता हैं के भाव मेरे को कितने आकुलित करते रहे .समय पाकर बहुत दिनों बाद पढ़ो तब यह अनुभूति होती हैं की ये भाव विन्यास मेरे ही द्वारा लिखे गए थे.
डायरी लिखने से हमारा तनाव ,विभ्रम ,भ्रांतियां दूर हो जाती हैं .हम स्वयं से आत्म चिंतन कर अपनी आलोचना करते हैं और अपने से क्षमा भाव को पैदा कर अपराधबोध से मुक्त होने लगते हैं .ये डायरी के पन्ने इतने सहनशील होते हैं की हमारे जैसे भी भाव हो उन्हें अपने में सहेज लेते हैं और उसके बाद हम अपने में स्फूर्ति दायक महसूस करते हैं .हमारे मन की समस्त कलुषताएँ मिट जाती हैं और लिखने के बाद हमारा मन मष्तिष्क हल्कापन महसूस करता हैं और हमें अपने आप मार्ग मिल जाता हैं .इससे सिद्ध होता हैं की हमें मनोरोग से मुक्त होने के लिए यदि डायरी में अपने भावों को लिपिबद्ध कर सकते हैं तो इससे हमें आंतरिक सुखद अनुभूति होगी और हम स्वस्थ्य महसूस करने लगते हैं .इसके साथ जब डायरी लिखने का भाव आने लगेगा तब हम पढ़ना भी शुरू करेंगे और सत्साहित्य से मनोभावों में अभिवृद्धि होंगी और हम सकारात्मक सोच की और अग्रसर होंगे .
डायरी एक कहानी हैं ,संस्मरण हैं ,इतिहास हैं ,
डायरी भावाव्यक्ति का एक सशक्त साधन हैं
डायरी बिना दोस्त का दोस्त हैं
डायरी हमें सुखानुभिति देता हैं
डायरी स्व अवलोकन का साधन हैं
डायरी अपनी भूल को बताने और सुधरने वाला हैं
डायरी स्वयं का जीवंत दस्तावेज हैं
डायरी लिखने से लगता हैं की
हमने कुछ किया हैं ! इसीलिए
डायरी एक चिकित्सा हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753
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