कर्म का प्रतिफल हमें ही भोगना पड़ता है: आचार्य श्री प्रमुख सागर महाराज

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गुवाहाटी : जीवन में धर्म ध्यान युवावस्था में ही संभव है। बुढ़ापे में तो लोग शरीर और रोगों से ग्रसित होते है और जीवन में इतना पाप संचित कर लेते हैं कि उनसे धर्म होता ही नहीं है। जब एक राजकुमार बचपन में युद्ध भूमि में तलवार चलाने का अभ्यास करता है तभी वह युवावस्था में युद्ध भूमि मे विजय यश पताका को लेकर आता है। आचार्य श्री ने कहा कि रोगी और भोगी जीवो की दशा बुढ़ापे में ऐसी होती है कि उन्हे धर्म आदि नहीं सुहाता है उन्हें तो अपने परिवार की चिंता सताती है। फैंसी बाजार के भगवान महावीर धर्मस्थल में विराजित आचार्य श्री प्रमुख सागर महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उक्त बातें कहीं उन्होंने कहा कि मनुष्य भाग्य को जप, तप आदि कर्म के माध्यम से भी बदल सकता हैं। वर्षा योग समिति के मुख्य संयोजक ओम प्रकाश सेठी ने बताया कि आज आचार्य श्री के मुखारविंद से श्रीजी को शांतिधारा करने का परम सौभाग्य श्री पूर्वोत्तर प्रदेशीया दिगंबर जैन महिला संगठन गुवाहाटी कि सदस्याओ को प्राप्त हुआ। आचार्य श्री ससंघ को आहार पड़गाहन करने का सौभाग्य पदमचंद संजय कुमार पाटनी परिवार गुवाहाटी एवं धर्मचंद प्रेमलता भरतीय परिवार शिवसागर को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर आचार्य श्री के सान्निध्य में सुहाग दशमी के पावन अवसर पर महिलाओं द्वारा किये जा रहे व्रत (उपवास) कोन सानन्दन संपन्न कराने हेतु पूर्वोत्तर प्रदेशीय दिगम्बर जैन महिला संगठन के तत्वावधान मे सुहाग दशमी विधान का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर संगठन की अध्यक्षा सुधा काला एवं मंत्री सुनीता अजमेरा ने सभी सदस्यों के साथ आचार्य श्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। यह जानकारी समाज के प्रचार प्रसार विभाग के सह संयोजक सुनील कुमार सेठी द्वारा दी गई है।

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