औरंगाबाद। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल परमात्मा से नित्य यह प्रार्थना करो — किहे परमात्मा — जो दु:ख, परेशानी, बिमारी, तकलीफ हमको मिली है, वो मेरे दुश्मन को भी ना मिले। और जो सुख, शान्ति, सौभाग्य, आनंद, प्रेम प्रसन्नता हमको मिली है, वह सबको मिले।
क्योकि आपने ग्रन्थ, पुराण, चारित्र, किताबों को पढ़ते पढ़ते आधी से ज्यादा जिन्दगी गुजार दी और सीखा क्या-? एक दूसरे की कमी निकालना और नीचा दिखाना, स्वाध्याय, सत्संग, प्रवचनों में छींटा कसी करना। अरे बाबू — सूरज भी नित्य नई ऊर्जा के साथ निकलता है।पेड़ पौधे, नदी, सागर, सरिता भी इठलाती झूमती, मस्ती करते हुये अनन्त सागर में विलीन होना चाहती है। सिर्फ समझदार कहलाने वाला मनुष्य मनहूस की तरह उठता है, रोजमर्रा जिन्दगी की उधेड़ बुन शुरू कर देता है।
जीवन परनिन्दा, षडयंत्र, चापलूसी करने और दूसरों के लिये खाई खोदने में मशगूल हो जाता है। किसी को फंसाने, किसी को उल्झाने, किसी को गिराने में अच्छा कीमती समय बरबाद कर देता है। वे मूर्ख और मूढ़ लोग हैं जो ये भूल जाते हैं कि उनके सारे कृत्य खुद और खुदा की नजरो में कैद हो गये हैं। दूसरों के लिये खोदे गये गड्ढे – स्वयं को गिराने में कारगर सिद्ध हो जाते हैं। सांप से सूख कैसा-? जो अभिशप्त है, विषधर है, उससे अमृत की अपेक्षा कैसे-?प्रत्येक दिन के हरेक क्षण को, शुभ में, सेवा-परोपकार में, गिरते को उठाने में, रोते को हंसाने में, असहाय को सहारा देने में, निमित्त बनना चाहिए।
मनुष्य को आत्म कल्याण एवं मानवीय हित चिन्तन में प्रत्येक कदम उठाना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब हम अपने जीवन के हरेक दिन को परमात्मा का उपहार मानकर उसे अविस्मरणीय बनाने का ना केवल हित चिन्तन करें, बल्कि व्यवहारिक रूप में अपने आचरण में ढालने की नित्य नूतन पहल करें। हरेक दिन एक नया संकल्प लें, हरेक दिन सेवा परोपकार की ऊर्जा से भरा…!!!। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद