जो भीतर की चेतना से उठते हैं और सफलताओं के शिखर तक ले जाते हैं – अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज

0
189

औरंगाबाद नरेंद्र /पियूष जैन – साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का विहार महाराष्ट्र के ऊदगाव की ओर चल रहा है विहार के दौरान भक्त को कहाँ की
एक इच्छा कुछ नहीं बदलती,
एक निर्णय कुछ बदलता है,
लेकिन एक दृढ़ संकल्प सब कुछ बदल देता है..!

इसलिए ज्ञान और संकल्प को दोधारी तलवार कहा है। हमारे ज्ञान, सोच और विचार के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्ष होते हैं। तभी तो सुख के साथ दु:ख, दिन के साथ रात, प्रेम के साथ घृणा, जन्म के साथ मरण, और मरण के साथ विषाद जुड़ा हुआ रहता है। इसलिए हमें जीवन जीने के साथ-साथ कठिन परिस्थितियों से जूझना पड़ता है।

कभी कभी हम स्वयं को इतना एकाकी महसूस करते हैं, कि हम चौराहे पर खड़े हैं – कहाँ जायें–? निर्णय नहीं ले पाते हैं कि कौन सी दिशा हमें मंजिल तक ले जायेगी।उस समय धैर्य, एकाग्रता, मन, विचार और बुद्धि का निर्णय या भीतर की आवाज ही हमें सही दिशा बोध दे सकती है। किस समय क्या निर्णय लेना है, ये बहुत बड़ी उल्झन है मन की। कभी कभी हमारे आपके द्वारा लिये गये निर्णय सफलता और विफलता में कारण बन जाते हैं।

सही और गलत का पता तब चलता है जब फैसले का परिणाम आता है। मन, बुद्धि, विवेक और विचारों की एकता और मन की एकाग्रता से लिये गये निर्णय सफलताओं की दिशा में ले जाते हैं। इसी को आचार्यों ने निर्णयात्मिका बोध विचार कहा,, जो भीतर की चेतना से उठते हैं और सफलताओं के शिखर तक ले जाते हैं…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here