जैनियों अपना क्षत्रिय धर्म निभाओ— विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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ऐसा पढा, सुना और लिखा गया है कि जैन धर्म के संस्थापक भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर स्वामी तक सभी क्षत्रिय थे इसीलिए जैन धर्म क्षत्रियों का धर्म कहलाता है।
भगवान महावीर स्वामी के बाद जितने भी आचार्य ,साधु ,मुनि हुए हैं उन्होंने हमें अहिंसा ,सत्य ,अस्तेय ,ब्रम्हचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों की शिक्षा -दीक्षा दी और उनका परिपालन भी कराया जा रहा है। अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है, अहिंसा का अर्थ आपके प्रति होने वाले अन्याय, अत्याचार का डटकर मुकाबला करो और विजयी बनो। इस बात को कहने की जरूरत इसलिए आ पड़ी की वर्तमान में जैन समाज में देव -शास्त्र और गुरुओं की स्थिति असामान्य हैं। विगत कुछ वर्षों में वर्तमान केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा जैन धर्म के धर्मात्मायतनाों पर कब्ज़ा , मुनियों को जानबूझकर सताया जा रहा है विहार के समय कोई सुरक्षा नहीं है और अब तो अपने स्थान पर रहने पर भी सुरक्षित नहीं है .समाज पंगु बना हुआ, निरीहता से शासकों की कृपा दृष्टि पर निर्भर है यह हमारे लिए बहुत ही दुखद अध्याय है.
यदि इस प्रकार की घटना हिंदू समाज के किसी मंदिर ,तीर्थ क्षेत्र में ,मुस्लिम समाज की मस्जिद पर नियमानुसारजैसे बाबरी मस्जिद , ऐसी घटना होने पर पूरे भारत के साथ पूरे विश्व में घटना की जो प्रतिक्रिया होती वह निम्न से निम्नतम होती .किसी चर्च ,अन्य धर्म के प्रमुख के साथ या किसी राजनीतिक पार्टी के नेता के साथ यह घटना घटित होती तो केंद्र सरकार, राज्य सरकार ,स्थानीय प्रशासन दिन- रात चौकसी करती और कठोरतम दंड की नीति अपनाती .एक दुखद पहलू और यह भी है कि जैन समाज की घटना पर राष्ट्रीय स्तर के कोई भी टेलीविजन न्यूज़ चैनल एवं समाचार पत्रों ने इस घटना का कहीं कोई उल्लेख नहीं करती हैं . इससे संपूर्ण जैन समाज जो अपने आप को समृद्धि ,संपन्न, शिक्षित और प्रभावशाली मानती है धरातल पर शून्य दिखाई दे रही है .हमारी समाज बहुत पढ़ी लिखी है अपने धार्मिक कार्यों में बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है .नवीन मंदिर निर्माण में अकूत धन लगाकर भव्य बनाए जा रहे हैं इससे समाज में प्रभावना अंग की बढ़ोतरी हुई है और समाज इस मामले में एकजुट भी है जो शुभ संकेत है .इसके अलावा हमारी समाज में बहुत आर्थिक उन्नति कर समाज और देश में अपना योगदान दिया है अभी भी इस क्षेत्र में बहुत अधिक काम करने की आवश्यकता है जैसे जैन धर्म की बुनियादी शिक्षा का अभाव ,उच्च स्तरीय शिक्षा संस्थान ,चिकित्सा संस्थान,शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र-छात्राओं के आवासीय व्यवस्था की वर्तमान में बहुत आवश्यकता है इस ओर पहल जरूर हो रही है पर संतोषजनक परिणति नहीं हुई .
जैसा कि नीति शास्त्रों में लिखा गया है कि समूह में ही ,संगठन में ही शक्ति है हमारी समाज शक्तिशाली है पर बिखरी हुई है। हमारी समाज में स्थानीय स्तर पर ,जिला स्तर पर ,प्रदेश स्तर पर .राष्ट्रीय स्तर पर और अखिल विश्व स्तर पर संगठनों ,समितियों की भरमार है , सभी संगठन समाज की भलाई के लिए कृत संकल्प हैं पर सभी संगठनों के पदाधिकारी एक दूसरे को आदर ना देकर स्वयंभू नेता बनकर अपनी-अपनी ढपली अपना अपना राग अलाप रहे हैं सब कागज पर शेर बने हुए हैं इस विषय पर चिंतन की बहुत आवश्यकता है।
वर्तमान में हमारी आचार्य ,उपाध्याय, मुनि आर्यिकायें , विद्वान लोग सामाजिक ,धार्मिक चेतना का कार्य निरंतर कर रहे हैं जिससे समाज में पहले से अधिक जागृति आई है जो शुभ संदेश संकेत है .जैन दर्शन का महत्वपूर्ण अंग अनेकांतवाद है जिसका समाज में शून्यता है कोई किसी को आगे बढ़ना नहीं देना चाहता मात्र केकड़ा जैसी प्रवत्ति होने से एक दूसरे की टांग खींचते . सम्मान ,माला पहनना ,टीका लगवाना फोटो खिंचवाना और जरूरत पड़ती है तो समाज में उच्च पदों पर स्थापित होने के लिए आर्थिक- शास्त्र -शस्त्र का उपयोग कर स्थापित हो जाते हैं ,गौरवान्वित हो जाते हैं इससे निश्चित ही संस्थाओं को आर्थिक लाभ होने से उनका विकास में सहयोग मिलता है इसमें उदार भाव निहित है ,जो प्रशंसनीय है।
हमारी समाज जनसंख्या की दृष्टि से कम और बिखरी हुई है। कुछ प्रांत तो मैं तो नगण्य स्थिति है और जहां पर सघनता है वहां टकराव है ,विवाद है और किसी को आगे बढ़ने का अवसर नहीं दिया जाता है आर्थिक संपन्नता के अलावा व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता ,राजनीतिक पहल अच्छी होने से उसे समाज सामूहिक रूप से आगे बढ़ाएं पर हमारे यहां व्यक्तिगत के साथ पंथवाद के इतने विषैली दुर्भावना है कि ऊपर से भले ही अच्छे दिखते हो पर आंतरिक कलुषता बहुत अधिक है. सब की फोटो बहुत सुंदर है पर उनका एक्स-रे बहुत घटिया है.
मक्का गए मदीना गए बनकर आए हाजी,
ना आदत गई न इल्लत गई रहे पाजी के पाजी .
चारों धाम सब तीर्थों की वंदना कर लो पर भावों में निर्मलता ना हो उसका कोई अर्थ नहीं है उपदेशों में दिन -रात सामाजिक समरसता की बात की जाती है सुनने के बाद तत्काल भूल जाते हैं .यह हमारी समाज के लिए अत्यंत ही संक्रमण काल है और हम क्षत्रिय हैं हमारे वंशज क्षत्रीय होते हुए भी हम लोगों ने वणिक धर्म अपनाकर बनिया बन गए और लाभ -हानि ,नफा नुकसान की गणित में पहले उलझती हैं और फिर निर्णय लेते हैं .
आज हम अन्य समाजों विशेषकर एक समुदाय जो दिन में 5 बार समूह में इबादत करते हैं और आंतरिक रुप से भले ही दुश्मन हो पर बाह्य रूप में एकता होने से उनके साथ कभी भी कोई घटना -दुर्घटना होती है तो समुदाय संगठित होकर सरकारों को रुला देती है ,हिला देती है, नाकों चने चबबा देती है .पर हमारे यहां संगठन के लिए ,समिति के लिए चुनाव में खून -खराबा की स्थिति बन जाती है और समिति बनने के पश्चात ना पदाधिकारियों का जनता से ,समाज से संबंध, संपर्क रहता है और ना ही जनता उनको उतनी प्रतिष्ठा देती है .इस समय हमारी तीर्थ क्षेत्रों और चलते फिरते तीर्थ -आचार्य उपाध्याय मुनि आर्यिका कोई भी सुरक्षित नहीं है और ना ही हमें शासन का संरक्षण प्राप्त है उसका मूल कारण हमारी समाज सुषुप्त अवस्था में शुतुरमुर्ग जैसे जी रही है ,बातें हैं बढ़-चढ़कर होती हैं और जब कोई काम आता है तो समाज शासकों की ओर देखती है. बड़े-बड़े नेता, मंत्री ,प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री किसी समाज की मुखिया के यहां खुद जाते हैं,समाज का मुखिया मिलने नहीं जाता कारण मुखिया के पास में संख्या है ,संख्या बल है और उसकी एक आवाज पर जिस पार्टी को बोलते हैं उस ओर वह समाज एक होकर चली जाती है इसलिए राजनीतिज्ञ उनके इशारों पर चलते है ,पर हमारी समाज आर्थिक रूप से संपन्न कही जा सकती है संपूर्ण समाज संपन्न नहीं है पर एकता ना होने से मतभेद होने से जैन समाज का अस्तित्व धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है. आज जैन समाज मैं लड़की लड़कियों की शादी ना होने से शादियां विजातीय हो रही है और कोई कोई तो लव जिहाद जैसे असाध्य रूप से संक्रमित हो चुके हैं इसका मूल कारण आर्थिक संपन्नता और अधिकतम शिक्षित होना, जिस कारण से प्रत्येक व्यक्ति अपने -अपने टापू में अपने -अपने महल में रहकर अपने आप को सुरक्षित मान रहा है क्षत्रिय धर्म कायरों का ,नपुंसकों का धर्म नहीं है .हम लोग क्षत्रीय धर्म को कलंकित कर रहे हैं हम लोगों को ऐसी अवस्था में जैन कहलाने का अधिकार नहीं है कर्तव्य के लिए हम लोग पीछे हैं और अधिकार के लिए अपेक्षा करते हैं .इसका मूल कारण स्थानीय स्तर पर होने वाली सामाजिक इकाइयां शून्य हो चुकी है ,किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है. पहले शादी- विवाह में समाज के पंच मुखिया उपस्थित होकर कार्य संपन्न कराते थे अब आज पंचायत सभाएं अर्थहीन हो गई हैं या कहा जाए बिना दांत के शेर हो चुके हैं.
कमियां, बुराइयां ,कमजोरियां बहुत है उनमे भी हैं और नहीं भी हैं, इस समय हमें आत्म -चिंतन की जरूरत है साथ ही साथ सामाजिक संगठन कैसे मजबूत हो उस आधार पर हम राजनीतिक चेतना- जागृत करें और जितना अधिक से अधिक संभव हो शासक के रूप में स्थापित हो ,इसके साथ सहयोग की भावना बढ़ाएं ,योग्यता के आधार पर अवसर दें और समाज को सुरक्षित रखने में संगठन का ही योगदान महत्वपूर्ण होगा .
वर्तमान घटना अनेकों –अनेक जैन मंदिरों पर हमारी समाज ना होने से अन्य समाज के द्वारा कब्जा किया जा रहा है .यह भी विचारणीय बिंदु है साथ ही साथ जब कभी भी कहीं पर भी कोई घटना हो ,सामूहिक रूप से उसका प्रतिवाद करें ,कलिकाल में संगठन ही शक्ति है और जब तक प्रेम भाईचारा आपस में स्थापित नहीं होगा हम आने वाली कोई भी विपत्ति को सुलझा न सकेंगे ,सामना नहीं कर सकेंगे
हमारे आचार्य भगवंत हम लोगों को हमेशा अहिंसा के साथ प्रभावना अंग का उपदेश देते हैं और उनकी तपस्या से जो भी उपदेश दिए जाते हैं वह स्व- परकल्याण हेतु होते हैं और जागृत करने का कार्य करते हैं परंतु जो व्यक्ति जानबूझकर सोने का नाटक कर रहा है उसका कोई इलाज नहीं है आगामी माहों में चुनावी सरगर्मी शुरू होने वाली है और चुनाव में वोट देने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को है इस समय हमको विचार के साथ उनको साथ देना है जो हमें साथ दे ,उसी को साथ दे .साथ ही साथ आगामी होने वाली जनगणना में जो दिशा निर्देश दिए गए हैं उसमें जाति में जैन लिखना है अन्य कोई उपजाति ,कुल गोत्र ,टाइटल का उपयोग नहीं करना है जनसंख्या के आधार पर ही हमारा अस्तित्व रहेगा .
यह बहुत विपत्ति का समय है जब हमारी समाज के तीर्थ स्थल धीमे धीमे राजनीति के शिकार होकर प्रभावशाली नेताओं के साथ स्थानीय प्रशासन के सहयोग से इस प्रकार का दुःसाहस किया जा रहा हैं जो निंदनीय हैं .इस समय जैन समाज को साम ,दाम, दंड ,भेद के साथ अपनी शक्ति प्रदर्शन कर क़ानूनी सलाह लेकर उचित सक्षम अधिकारी और न्यायलय में आवेदन करेंगे .और समूह में अपनी शक्ति बताये और आगामी चुनाव में अपनी महती भूमिका निभाए,
जागो
जैनियोंजागो
क्षत्रिय धर्म कायरता नहीं सिखाता
क्षत्रीय धर्म को कलंकित मत होने दो
हिंसा हारने में होती है
जीतना ही अहिंसा है
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753

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