प० जवाहर लाल नेहरू अदभुत विशारद विद्वान व विश्व महान लेखकों में शुमार थे,उन्होंने अनेक महान ग्रंथ लिखे उनमे “The Discovery of India” विश्व के महानतम ग्रंथों में शुमार हैं,जिसमें उन्होंने तीन बात साहस के साथ बड़ी निडरता से वो बातें लिखी ज़ो शायद कोई भारत का प्रधान मंत्री नही लिख पाएगा, कि भारत का सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म हैं और भारत का मूल धर्म जैन धर्म ही था,ऋषभ सारी संस्कृतियों के आद्य प्रवर्तक थे और भारत का नाम ऋषभपुत्र भरत से ही पड़ा था,उन्हें जैन धर्म से बहुत ज़्यादा लगाव था और वे हमेशा जैन आचार्यों के दर्शन के लिए जाते रहते थे.भारतीय संविधान के लेखन के समय उसके कलेवर,आत्मा तथा मूल व मौलिक नीति निर्देशक पर महावीर वांगमय को अधिक महत्व देने का सबसे अधिक दबाव नेहरूजी का ही था.
संविधान की मूलप्रति में दाँड़ी यात्रा को दर्शाने के लिए जिस चित्र का नेहरूजी के विशेष आग्रह पर संविधान के लिए बड़ी चाहत से चयन किया जो संविधान के पृष्ठ 151 पर अंकित हैं इसमें गाँधीजी को तिलक लगाती जिस महिला क़ो दर्शाया गया हैं वो विश्व विख्यात वैज्ञानिक विक्रमसारा भाई जैन की दादी व दाँड़ी यात्रा की संयोजक सरला देवी साराभाई जैन थी. संविधान पर जैन दर्शन की छाया पहले ही पृष्ठ से ही शुरू होती हैं जहाँ प्रथम पृष्ठ पर मोहन जोदड़ों से प्राप्त उस सील को दर्शया गया जिस पर एक बैल अंकित हैं जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभ दैव से जुड़ी हैं.इसे भी नेहरूजी के विशेष आग्रह पर रखा गया था क्योंकि नेहरूजी जी मानते थे कि नागरिकता याने सामाजिक सभ्यता का उदय ऋषभ की देन हैं तथा भारतीय संविधान की प्रारम्भिक प्रस्तावना में पहले जिस एक शब्द इण्डिया के साथ “भारत देट इज़ इण्डिया” जो किया गया.उस समय इस पर हुई बहस में नेहरू जी द्वारा रखे अकाट्य प्रमाणों के बाद विद्वानों ने माना कि इस देश का नाम भारत ऋषभपुत्र भरत की देन हैं.
उनके नाम पर ही पड़ा हैं. संविधान की मूल प्रति के पृष्ठ 63 पर भगवान महावीर का चित्र हैं. संविधान के निर्माण हेतु संविधान सभा में नेहरू द्वारा प्रस्तावित छ जैन विद्वानों का चयन हुआ जिनमें सर्वश्री अजित प्रसाद जैन,श्री कुसुम कान्त जैन,श्री बलवंत सिंह मेहता,श्री रतनलाल मालवीय, श्री भवानी अर्जुन खीमजी,श्री चिमनभाई चाकू भाई शाह थे. पण्डित जवाहर लाल नेहरू के विशेष दबाव व आग्रह के बावजूद निजी व्यस्तता के चलते संविधान सभा में गिरिलाल जैन ने आने से मना कर दिया मग़र गिरिलाल जैन की ओर से जैन जगत की बेहद अति महत्वपूर्ण माँग को मानते हुए नेहरूजी के विशेष प्रयास से ही अम्बेडकर जी ने जैनो को संविधान में विशेष धारा 25 से लेकर 30 के अंतर्गत रखते अल्पसंख्यक धर्म की सूची मे जोड़ा गया. नेहरूजी ने जैन जगत को राजनीति और संसद ही नही कार्यपालिका में भी बहुत प्रमुखता दी. जैन धर्म व जैन जगत के प्रति नेहरू जी का लगाव अदभुत व अकल्पनीय था.
# लेखक:सोहन मेहता,जोधपुर, राज०