भिलाई। गुरुवार। मूलाचार या श्रावकाचार की बात तो तब समझ आये जब हम लोकाचार का तो पालन करें। हम बड़ी बातें करते हैं आचार्य की जय जय कार करते हैं परंतु जैनों के 3 चिन्हों से हम दूर होते जा रहे हैं। ये उद्गार मैनपुरी गौरव ’वर्णी क्षुल्लक श्री सहज सागर जी ’ ने प्रवचन करते हुये व्यक्त किये। उन्होंने आगे कहा कि हम हजारों मूर्तियों हेतु राशि तो दे देते हैं पर अभिषेक करने को तैयार नहीं। मोक्षमार्ग में थ्योरी व प्रैक्टिकल दोनों चाहिये। ज्ञान जरूरी है पर अकेला ज्ञान फल नहीं देता, चारित्र चाहिये। स्व पर भेद विज्ञान की बात करने वाले विद्वान् बातें करते करते चले गये, पर पिच्छी हाथ में नहीं आई तो मरण सफल नहीं हुआ व जिसका मरण अच्छा नहीं उसका जन्म भी अच्छा नहीं हो सकता। अतः अपने जीवन में चारित्र को धारण करो। आपका सौभाग्य है कि तपस्या में सर्वोत्तम संत अन्तर्मना आपके पुण्य से आपके सामने हैं। उनसे कुछ न कुछ नियम जरूर लो जिसपर आचार्य श्री की प्रेरणा पर सभी ने नियम लिया कि अष्टमी चतुर्दशी को न बाजार में खायेंगे न बाजार का खायेंगे।
अन्तर्मना ने क्षुल्लक श्री को ‘वर्णी’ पद से विभूषित किया
डॉ सौरभ जैन, मैनपुरी ने डाॅ. महेन्द्रकुमर जैन ‘मनुज’ को बताया कि सबसे पहले सुबह भिलाई में वैशाली नगर के श्री महावीर जिनालय में पहुँचने पर उपस्थित अपार जन समूह को संबोधित करते हुये अन्तर्मना तपाचार्य श्री प्रसन्नसागर मुनिराज ने अपने संघ के क्षुल्लक श्री को ‘वर्णी’ पद से विभूषित करने की घोषणा की। उन्होंने कहा आज से हमारे क्षुल्लक वर्णी श्री सहज सागर जी के नाम से जाने जाएंगे।
उन्होंने कहा कि एक बार दीक्षा के बाद मुझे भी उनमें वर्णी जैसी छवि दिखी थी। अमरकंटक आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास दर्शनार्थ जाने पर आचार्य श्री ने भी कहा था कि वर्णी जी जैसे लगते हो। आज गुरुपुष्प योग है स्थान भी अनुकूल है तो मैं भिलाई जैन समाज को यह सौभाग्य देना चाहता हूँ व गणेश प्रसाद जी वर्णी, सहजानंद जी जिनेन्द्र जी वर्णी की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहता हूं। पूरी समाज ने करतल ध्वनि, तालियों व जयकारों के साथ अनुमोदना की। अन्य दोनों क्षुल्लक श्री को भी उन्होंने वर्णी पद देने की घोषणा की। ज्ञातव्य है कि वर्णी क्षुल्लक श्री सहज सागर जिन दीक्षा से पूर्व भारत के जाने माने विद्वान् डाॅ. सुशील कुमार जैन मैनपुरी के नाम से जाने जाते थे। डाक्टरी पेशा के साथ साथ आप धार्मिक प्रवचनों हेतु विदेशों में भी जाते रहे हैं। आपने युवा विद्वानों के प्रोत्साहित करने हेतु आप लगभग 27 वर्षों से एक वासग्भारती नाम से प्रतिवर्ष पुरस्कार भी प्रदान करते रहे हैं। विद्वत् पषिद्, शस्त्रिपरिषद् आदि अनेक विद्वत्संस्थाओं में आप कई जिम्मेवारी के पद सम्हलते रहे हैं।