मानव की जन्म के साथ संग्रह करने की प्रवत्ति रहती हैं .यह जन्म के कुछ महीनों से शुरू होती हैं ,शिशु कुछ दिनों में कुछ सामग्री वह पकड़ कर रखता हैं ,वह जब धीरे धीरे बड़ा होता हैं तब वह पुरानी सामग्री की जगह नए सामान को चाहता हैं पर पुरानी चीज़ को भी अपने स्तर से इकठ्ठा करता हैं .यह आदत चाहे उसे उपयोगी लगे या न लगे वह संग्रहीत करता हैं .इस प्रकार अनावश्यक चीज़ों का संग्रह अधिक होने और अव्यवस्थित होने के वह उनकी सुरक्षा करने में मानसिक रूप से परेशां होता हैं और वह संचित चीज़ को अन्य को नहीं देता हैं .यह उसे दुखी करता हैं .इस प्रवत्ति को चालू भाषा में कबाड़ इकठ्ठा करना कहते हैं .
बाध्यकारी संचय या संचय विकार व्यवहार सम्बन्धी एक विकार है जिसमें व्यक्ति अत्यधिक वस्तुएँ प्राप्त करके अपने पास रखने की प्रवृत्ति रखता है तथा उन वस्तुओं को त्यागने में असमर्थ या अनिच्छुक होता है।बीसियों साल पुरानी साड़ी और जींस भी अगर आपको बहुत कीमती लगती है, चाहें उसे पहनने की आपकी इच्छा न हो, तो यह एक मानसिक विकार का संकेत हो सकता है। होर्डिंग डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है. इसमें लोगों को चीजों को जमा करने की आदत लग जाती है. फिर चाहे वो चीज किसी काम की हो या न हो .
आपका मन भी पुरानी चीजों को फेंकने का नहीं करता है, बल्कि आप उन्हें जमा करते रहते हैं, तो आप होर्डिंग डिसऑर्डर नाम की मानसिक बीमारी का शिकार हो सकते हैं. इसमें लोगों को चीजों को जमा करने की आदत लग जाती है. फिर चाहे वो चीज किसी काम की हो या कबाड़ हो. आमतौर पर इन सामानों में अखबार, घरेलू सामान, कपड़े शमिल होते हैं. कभी-कभी होर्डिंग डिसऑर्डर वाले लोग बड़ी संख्या में जानवरों को इकट्ठा करते हैं. शुरुआत में समस्या भले ही आम हो लगती हो, लेकिन यह आगे चल कर खतरनाक अवस्था में तब्दील हो सकता है अगर आपने अपनी इस आदत को नजरअंदाज किया, तो इसके आपकी मानसिक सेहत पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं. अटेंशन-डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों में चीजों को जमा करने के व्यवहार का प्रदर्शन करने की काफी अधिक संभावना होती है, जो उनके जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है.
एडीएचडी वाले पांच लोगों में से लगभग एक ने चीजों को जमा करने के क्लिनिकल रूप से महत्वपूर्ण स्तर का प्रदर्शन किया, ये दर्शाता है कि चीजों को जमा करना और इसके परिणामों से जूझ रहे वयस्कों की एक छिपी हुई आबादी हो सकती है.
‘होर्डिंग डिसऑर्डर केवल बहुत सारी चीजों को इकट्ठा करने से कहीं ज्यादा है. होर्डिंग डिसऑर्डर का इलाज करा रहे लोगों ने अपने रहने वाले क्षेत्रों को इतनी सारी चीजों और अव्यवस्था से भर दिया है कि ये उनके दैनिक कामकाज को तो प्रभावित करता ही है, साथ ही इससे उनके जीवन की गुणवत्ता खराब होती है और चिंता और अवसाद भी बढ़ता है.’
एक वयस्क एडीएचडी क्लिनिक से ८८ प्रतिभागियों के ग्रुप को शामिल किया, जिसके बाद ये बात निकलकर सामने आई कि ग्रुप के १९ % लोगों ने क्लिनिकल रूप से महत्वपूर्ण जमाखोरी के लक्षण दिखाएं. इनमें से ज्यादातर लोगों की उम्र ३० की थी. बाकी के बचे ८१ प्रतिशत मरीजों में, इस मानसिक विकार की गंभीरता को अधिक पाया, लेकिन इस हद तक नहीं कि स्टडी कंट्रोल ग्रुप की तुलना में उनके जीवन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सके.
होर्डिंग डिसऑर्डर एक मानसिक विकार है। इस समस्या में लोगों को वस्तुओं को जमा करने की आदत लग जाती है। फिर चाहे वह वस्तु काम की हो या कबाड़ हो। आमतौर पर इन सामानों में अख़बार, घरेलू सामान, कपड़े शमिल होते हैं। कभी-कभी जमाखोरी विकार वाले लोग बड़ी संख्या में जानवरों को इकट्ठा करते हैं। शुरुआत में समस्या भले ही आम हो लगती हो, लेकिन यह आगे चल कर खतरनाक अवस्था में तब्दील हो सकता है।
यह मानसिक विकार जीवन के कई पहलुओं पर असर डालता है, जिसमें लोगों के सामाजिक,परिवारिक और कार्य जीवन में तनाव उत्पन्न होने लगता है। बाद में शर्मिंदगी के कई कारण निकल कर सामने आ जाते हैं। यह अस्वास्थ्यकर और असुरक्षित रहने की स्थिति भी पैदा कर सकता है। वैसे साम्रगियां या चीज़े या वस्तुएं दुःख का कारण होता हैं कारण उनको पाना में कष्ट ,सुरक्षा में चिंता ,गुमने में दुःख ,टूट फूट में भी गम होता हैं और जो व्यक्ति कम वस्तुए रखता हैं उसे कम चिंता होती हैं .आध्यतमिक दृष्टि से अलप परिग्रही सुखी होता हैं ,और फ़िज़ूल सामग्री जिसका आगे कोई उपयोग नहीं होने पर भी अपेक्षा भाव से संचित करता हैं वह भी दुखी होता हैं .
कम सामान रखो पर उपयोगी सामान रखो .कारण लगाव होने से दुःख ही या भी होता हैं .
-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद्