एक साड़ी के लिए ३३०० कीड़ों की हत्या

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मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पचमढ़ी में सिल्क पार्क की शुरुआत की हैं जहाँ चारों प्रकार के रेशम का उत्पादन एवं संवर्धन के साथ किसानों को रेशम के पौधे उपलब्ध कराये जायेंगे और सिल्क के अण्डों का कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की गई हैं .यह शासन के साथ किसानों को भी खुशखबरी होंगी पर इसके निर्माण में अनन्तानत जीवों की हिंसा होगी जो अहिंसक समाज के लिए पूर्णतः वर्जित हैं जैसे जैन समाज हिंसाजन्य सिल्क का उपयोग नहीं करते .और यदि इसके तैयार करने की प्रक्रिया को जानकर अहिंसा प्रेमी कोई भी नहीं पहन सकता हैं .
क्या हमें अपनी सुख सुविधा के लिए जीव हिंसा करना जरुरी हैं ?क्या हमारे पास अन्य विकल्प नहीं हैं .?जिस प्रकार हमें कष्ट होता हैं ,कोई जीव दुःख नहीं भोगना चाहता हैं ,यह कीड़ा भी द्विइंद्रिय जीव होता हैं .उनको गर्म पानी में डालकर उबाला जाता हैं .उसके पहनने से क्या आपको उनकी हत्या का पाप नहीं लगता हैं ?.जरूर लगता हैं .आप कह सकते हैं मैंने उनको नहीं मारा .पर आप नहीं पहनेंगे तब उनकी हत्या जरूर रुकेगी .
क्या अहिंसाजन्य आजीविका नहीं दिलाई जा सकती हैं ? इस व्यवसाय की शरू करने वाले ,कराने वाले और उनकी अनुमोदना करने वाले समान रूप से पाप के अधिकारी हैं .हिंसक क्रियाएं कभी भी शांतिकारक और सुखदायक नहीं होती .
रेशम उत्पादन-
औसतन 1000 कि. ग्रा. फ्रेश कोकून सुखाने पर 400 कि. ग्रा. के लगभग रह जाता है जिसमें से 385 कि. ग्रा. में प्यूपा 230 कि. ग्रा. रहता है और शेष 155 कि. ग्रा. शेल रहता है। इस 230 कि.ग्रा. प्यूपा में से लगभग 120 कि. ग्रा. कच्चा रेशम तथा 35 कि.ग्रा. सिल्क वेस्ट प्राप्त होता है।
एक मादा रेशम कीट 300-500 अंडे देती है। 600 ग्राम की एक साड़ी के लिए 3300 रेशम के कीड़ों की आवश्यकता हो सकती है, एक किलोग्राम की साड़ी के लिए लगभग 5500 रेशम के कीड़ों की आवश्यकता होगी।
रेशम एक सतत रेशा है जिसमें फ़ाइब्रोइन प्रोटीन होता है, जो प्रत्येक कीड़े के सिर में दो लार ग्रंथियों से स्रावित होता है, और सेरिसिन नामक एक गोंद होता है, जो रेशा को मजबूत करता है। कोकून को गर्म पानी में रखकर सेरिसिन को हटा दिया जाता है, जो रेशम के तंतुओं को मुक्त कर देता है और उन्हें रीलिंग के लिए तैयार कर देता है। इसे डीगमिंग प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। गर्म पानी में डुबाने से रेशमकीट प्यूपा भी मर जाता है ।
भूमिका
व्यक्ति रेशम उत्पादों के प्रति हमेशा जिज्ञासु रहा है । वस्त्रों की रानी के नाम से विख्यात रेशम विलासिता, मनोहरता, विशिष्टता एवं आराम का सूचक है ।
रेशम, रसायन की भाषा में रेशमकीट के रूप में विख्यात इल्ली द्वारा निकाले जाने वाले एक प्रोटीन से बना होता है । ये रेशमकीट कुछ विशेष खाद्य पौधों पर पलते हैं तथा अपने जीवन को बनाए रखने के लिए ‘सुरक्षा कवच’ के रूप में कोसों का निर्माण करते हैं । रेशमकीट का जीवन-चक्र 4 चरणों का होता है, अण्डा, इल्ली, प्यूपा तथा शलभ । व्यक्ति रेशम प्राप्त करने के लिए इसके जीवन-चक्र में कोसों के चरण पर अवरोध डालता है जिससे व्यावसायिक महत्व का अटूट तन्तु निकाला जाता है तथा इसका इस्तेमाल वस्त्र की बुनाई में किया जाता है ।
रेशम का उत्पादन क्यों ?
रेशम ऊंचे दाम किंतु कम मात्रा का एक उत्पाद हे जो विश्व के कुल वस्त्र उत्पादन का मात्र 0.2% है । चूंकि रेशम उत्पादन एक श्रम आधारित उच्च आय देने वाला उद्योग है तथा इसके उत्पाद के अधिक मूल्य मिलते हैं, अत: इसे देश के आर्थिक विकास में एक महत्वकपूर्ण साधन समझा जाता है । विकासशील देशों में रोजगार सृजन हेतु खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र में तथा विदेशी मुद्रा कमाने हेतु लोग इस उद्योग पर विश्वास करते हैं ।
रेशम उत्पादन में भारत
विश्व में भौगोलिक दृष्टि से एशिया में रेशम का सर्वाधिक उत्पादन होता है जो विश्व के कुल उत्पाद का 95% है । यद्यपि विश्व के रेशम मानचित्र में 40 देश आते हैं, किंतु अधिक मात्रा में उत्पादन चीन एवं भारत में होता है तथा इसके उपरांत जापान, ब्राजील एवं कोरिया में । चीन, विश्व को इसकी आपूर्ति करने में अग्रणी रहा है ।
रेशम के सर्वाधिक उत्पादन में भारत द्वितीय स्थान पर है, साथ ही विश्व में भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है । यहां घरेलू रेशम बाजार की अपनी सशक्त परम्परा एवं संस्कृति है । भारत में शहतूत रेशम का उत्पादन मुख्यतया कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू व कश्मीर तथा पश्चिम बंगाल में किया जाता है जबकि गैर-शहतूत रेशम का उत्पादन झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है ।
रेशम की किस्में
व्यावसायिक महत्व की कुल 5 रेशम किस्में होती हैं जो रेशमकीट की विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त होती हैं तथा जो विभिन्न खाद्य पौधों पर पलते हैं । किस्में निम्न प्रकार की हैं :
शहतूत, ओक तसर एवं उष्णकटिबंधीय तसर,मूंगा,एरी
शहतूत के अलावा रेशम के अन्य गैर-शहतूती किस्मों को सामान्य रूप में वन्या कहा जाता है । भारत को इन सभी प्रकार के वाणिज्यिक रेशम का उत्पादन करने का गौरव प्राप्त है ।
रेशम उत्पादन क्या है?
रेशम उत्पाददन एक कृषि आधारित उद्योग है । इसमें कच्चे रेशम के उत्पादन हेतु रेशमकीट पालन किया जाता है । कच्चा रेशम एक धागा होता है जिसे कुछ विशेष कीटों द्वारा कते कोसों से प्राप्त किया जाता है । रेशम उत्पादन के मुख्य कार्य-कलापों में रेशम कीटों के आहार के लिए खाद्य पौध कृषि तथा कीटों द्वारा बुने हुए कोसों से रेशम तंतु निकालने, इसे संसाधित करने तथा बुनाई आदि की प्रक्रिया सन्निहित है ।
स्व सुख हेतु पर पीड़ा देना कितना उचित हैं ?
क्या आप स्वयं या परिवार जनो को गर्म कढ़ाई में खौलना चाहेंगे ?
इतिहास हमेशा अपनी पुनरावृत्ति करता हैं
आज वे बेचारे ,कल आप के साथ भी होगा
जो मारते हैं उनका हृदय कितना कठोर और निर्दयी होता होगा .
क्या उन्होंने अपनी औलादों को उबाला ,उबाल कर देखो
हमारे पास आज विकल्प बहुत हैं
क्या जरुरी हैं रेशम /सिल्क का पहनना
सुंदरता के पीछे कितनी कुरूपता
अहिंसात्मक जीवन शैली अपनाओ
सुख शांति आनंद पाओ
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753

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