‘हैदराबाद/औरंगाबाद नरेंद्र / पियूष जैन धर्म के लिए मनोबल चाहिए, जब तक मनोबल नहीं है आप जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते और मनोबल है, तो आप समुद्र में पड़ी चट्टान में छेद कर पानी में आग लगा सकते हैं।’
उक्त उद्गार श्री 1008 चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में जनसमूह को संबोधित करते हुए अंतर्मना आचार्य 108 प्रसन्नसागरजी महाराज ने व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि हम क्यों सुनते हैं, सुनने के लिए या सुनाने के लिए या सुधरने के लिए। सुनने के लिए सुनना या मात्र सुनाने के लिए सुनना व्यर्थ की बात, लोगों में लक्ष्य की कमी, उत्साह की कमी, काम तो कर रहे हैं पर बिना किसी उत्साह के। माला तो फेर रहे हैं, परंतु किसकी फेर रहे हैं और क्यों फेर रहे हैं, यह पता ही नहीं है। सुनना चाहते हैं, पर क्या सुनना चाहते हैं, यह पता ही नहीं। पूज्यश्री ने कहा कि एक वृद्ध महिला के हाथ से सुई गिर गई, तो वह जमीन पर ढूँढ़ने लगी। वहाँ अंधेरा था, तो
वह हाथ से टटोलकर ढूँढ़ रही थी।
एक व्यक्ति उधर से निकले। उन्होंने पूछा कि माँ क्या ढूँढ़ रही हो, तो उन्होंने उत्तर दिया बेटा सुई गिर गई है। तो वह व्यक्ति बोला अंधेरे में क्यों ढूँढ़ रही हो, रोशनी में ढूँढ़। तो वह माता बाहर सड़क पर, जहाँ स्ट्रीट लाइट जल रही थी, वहाँ जाकर ढूँढ़ने लगी। जब बहुत देर तक नहीं मिली, तो दूसरे व्यक्ति ने पूछा, यह सुई गिरी
कहाँ थी। माता बोली कमरे में गिरी थी। कमरे में गिरी और ढूँढ़ रही हो सड़क पर, क्या मिलेगी। यही आदत हमारी हो रही है। है कहीं और हम ढूँढ़ कहीं और रहे हैं। आपको तो सुधरने के लिए सुनना चाहिए और वहीं नहीं हो पा रहा है। उनका इल्ज़ाम लगाने का अन्दाज़ ही कुछ गज़ब का था..
हमने खुद अपने ख़िलाफ गवाही दे दी..!
यदि तुम्हें यह मालूम पड़ जाए कि आज तुम्हारी जिंदगी का आखरी दिन है, तो उस दिन तुम क्या करोगे?
क्या उस दिन तुम किसी को गाली दे सकोगे?
क्या उस दिन तुम किसी के साथ छल कपट धोखाधड़ी कर सकोगे?
क्या उस दिन तुम शराब पी सकोगे, मांसाहार कर सकोगे?
क्या उस दिन तुम किसी के साथ दुर्व्यवहार, या किसी की हत्या कर सकोगे?
क्या उस दिन तुम बैर विरोध कर सकोगे?
क्या उस दिन तुम चंद चमकते दमकते कलदारो के लिए, अपने धर्म ईमान और न्याय को छोड़ सकोगे?
नहीं ना। यह कतई संभव नहीं है।
यदि तुम्हें यह मालूम पड़ जाए कि आज जिंदगी का आखरी दिन है, तो उस दिन तुम कोई पाप नहीं कर सकते, कोई अपराध और कोई खोटा कर्म नहीं कर सकते, क्योंकि तुम्हें मालूम पड़ गया है, कि यह तुम्हारा अंतिम आखरी दिन है। उस दिन तुम्हारी कोशिश होगी कि अब तक जो पाप हुए हैं, उनका प्रायश्चित कर लूँ, और जिनसे बैर विरोध है उनसे क्षमा याचना कर लूँ, जिन को ठेंस पहुंचाई है उनको माफीनामा दे दूं, अब आखरी दिन परमात्मा को धन्यवाद दे दूं, उनका पावन स्मरण कर लूं, अधिक से अधिक दान पुण्य कर लूं। मृत्यु का स्मरण आते ही धर्म का मूल्य बढ़ जाता है, और पाप कामना वासना की ओर भागता हुआ मन का, शैतान थम जाता है।इसलिए दुनिया में अगर श्रद्धान करना है तो मृत्यु पर ही करना, क्योंकि मृत्यु का सोपान ही मुक्ति का सोपान है।
बहुत दूर देखने की चाहत में..
बहुत कुछ पास से गुजर जाता है…!!!
उपाध्याय 108 पीयूषसागरजी महाराज ने बच्चों को विभिन्न प्रकार
उन्होंने स्नान, पूजन, नमोस्तु एवं मन की शुद्धि, वाणी की शुद्धि, काय की शुद्धि, अन्न जल की शुद्धि तथा नौ प्रकार की भक्ति की व्याख्या कर आहार-विहार की शिक्षा दी।
प्रवर्तक मुनि 108 डॉ. सहजसागरजी महाराज ने कहा कि भद्रबाहु संहिता में आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने भव्य कौन के प्रश्न के उत्तर में विस्तार से समझाया। जो व्यक्ति दिन में 18 बार कायोत्सर्ग 27 श्वासोच्छ्वास में करता है, वह नियम से भव्य होता है। उन्होंने शिविरार्थी को प्रेरणा दी कि आप लोगों को इस विधि का पालन करना चाहिए।
मंत्री राजेश पाटनी ने बताया शिविर शुक्रवार 5 जुलाई तक चलेगा। 6 जुलाई को को शिविरार्थियों को अभिषेक के बारे में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जाएगी। 7 जुलाई को जिनके विवाह को 25 वर्ष से अधिक हो गए हैं, उनके लिए विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।
के छोटे-छोटे नियम लेने के लिए प्रेरित किया। अनेक बच्चों ने नाना प्रकार के नियम लिए। आहार की चर्या के समय लोग दूर-दूर से आकर आहार प्रक्रिया में उदार हृदय से हिस्सा ले रहे हैं। अंतर्मना आचार्यजी ने नवधा भक्ति के बारे में शिविरार्थियों को विस्तार से समझाया। पड़गाहन, उच्चासन, पाद
अवसर पर सेठ हुकुमचंद साहब इंदौर निवासी के परिवार का स्वागत समाज की ओर से किया गया। आज संघ के क्षुल्लक 105 नैगमसागरजी का जन्म दिवस मनाया गया। ऐसी जानकारी नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद ने दी