दुःखों से मुक्ति चाहते हो तो संयम धारण करो

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चाहे तन के दुःख हो, मन के दुःख हो, चाहे चेतन के दुःख हो। जीव मात्र मुक्ति चाहता । आपका पुरुषार्थ तन के दुखों को दूर करने के लिए विशेष रहा करता है। सुबह से शाम तक आपकी प्रत्येक क्रिया तन के दुःखों को दूर करने की ही रहा करती है। तन के दुखों मे प्रमुख रूप से प्रतिदिन भूख और प्यास का दुःख हमारे समक्ष उपस्थित होता है जिसका प्रतिदिन समाधान करना भी आवश्यक हैं। एक बार व्यक्ति भूख की वेदना कुछ समय के लिए सहन कर लेगा लेकिन प्यास की वेदना मिटाने को जल आवश्यक है।
वर्तमान जीवन शैली अत्यंत विलक्षण होती चली जा रही है। एक गृहस्थ को ब्रह्ममुहूर्त में जाग जाना चाहिए किन्तु आज ब्रह्ममुहूर्त में तो आज के गृहस्थ शयन करने की तैयारी करते हैं और जब घर के बड़े- बुजुर्ग लोग भोजन आदि क्रिया से निवृत्त हो जाते हैं तब आपके उठने का जागने का समय होता है। ध्यान रखना, जो प्रातः काल घर का बिस्तर नहीं छोड़ता, उसे अपने घर का बिस्तर भी नसीब नहीं होता, ऐसे लोगों के लिए तो अस्पताल – हॉस्पीटल का ही बिस्तर प्राप्त होता है जो सूर्योदय होने के बाद जागता है वह राक्षस कहलाता है, अब आप स्वयं अपने घर में देख लेना कि आपके घर में कितने राक्षस है। आप जीवन मे उपलब्धियाँ – प्रतिभायें प्रगट करना चाहते हैं तो आप ब्रह्ममुहूर्त में जागना प्रारंभ कर दीजिए, सफलतायें स्वयमेव आपके द्वार पर दस्तक देंगी।
 जैन धर्म में तीर्थकर भगवान के बाद गणधर परमेष्ठी को ही सर्व प्रथम याद किया जाता है। दीपावली पर्व भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण महोत्सव एवं गौतम गणधर स्वामी के केवलज्ञान प्राप्ति का पावन पवित्र पर्व है। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रातःकाल तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी को निर्वाण पद प्राप्त हुआ, उसी दिन संध्याबेला में गौतम गणधर स्वामी को केवलज्ञानलक्ष्मी की प्राप्ति हुई, तब इन्द्र ने आकाश में दीपों की आवलि अर्थात पंक्ति रचकर महोत्सव मनाया तभी से लोक मान्यता से यह पर्व “दीपावली” के नाम से प्रसिद्ध हो गया, जिसे हम सभी श्रद्धा-भक्तिपूर्वक मनाते हैं।
 *9 संयमी शिष्यों ने मनाया गुरु चरणों में बैठकर “गुरु उपकार दिवस”*
भारतीय जैन संगठन तहसील अध्यक्ष एवं जैन समाज उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि
भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने बड़ोत चातुर्मास -2014 में अपने 11 शिष्यों को भगवती जिनदीक्षा प्रदान की थी। जिनमें से 9 संयमी शिष्यों ने अपने दीक्षा प्रदाता आराध्य गुरुवर की पूजा-आराधना एवं विनयांजलि समर्पण द्वारा गुरु चरणों में बैठकर “गुरु उपकार दिवस” मनाया। उन 11 संयमी में से 2 शिष्य साधना के फल स्वरूप उत्तम समाधि प्राप्त कर चुके है। ज्ञातव्य हो पू. आचार्यश्री ने सर्वप्रथम 7 आर्यिका दीक्षायें 6 नवम्बर 2014 को बड़ोत शहर में ही प्रदान की थी। सभी शिष्य समुदाय के साथ भक्तों ने भी मनाया 10वां  गुरू उपकार दिवस।
धर्म सभा में हरिश्चंद्र जैन, पवन रानीपुर, राजीव मोदी, मुकेश जैन, राजेंद्र राज, जतारा के  श्रावको के साथ-साथ टीकमगढ़, आगरा, गाजियाबाद के भी भक्तगण मौजूद रहे । कार्यक्रम का संचालन पत्रकार अशोक कुमार जैन द्वारा किया गया ।

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