डॉ. खूबचंद बघेल इस नाम से छत्तीसगढ़ का शायद ही कोई नागरिक परिचित नहीं होगा। डॉ. बघेल जी परिचय के मोहताज नहीं है। यही वो व्यक्ति है जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे पहले सपना देखा था, इन्ही के अनेकों प्रयास के बदौलत छत्तीसगढ़ ना सिर्फ हमारे देश में एक पहचान मिली बल्कि विदेशों में भी छत्तीसगढ़ का नाम हुआ।
नाम: डॉ. खूबचंद बघेल ,पिता: जुड़ावन प्रसाद ,माता: केकती बाई ,जन्म: 19 जुलाई 1900
स्थान: ग्राम पथरी, रायपुर,पत्नी: राजकुँवर ,निधन: 22 फरवरी 1969
डॉ. खूबचंद बघेल जी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल से हुआ। आगे की पढ़ाई उनकी रायपुर के गवर्नमेंट हाई स्कूल से पूर्ण हुई। अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने नागपुर के रॉबर्ट्सन मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।
वर्ष 1920-21 में देश भर में चलने वाले असहयोग आंदोलन के प्रभाव में आकर उन्होंने बीच में ही इसे छोड़ दिया और आंदोलन में शामिल हो गए। घर वालों के बार बार बोलने और समझने से उन्होंने पुनः एल.एम.पी. (लेजिस्लेटिव मेडिकल प्रक्टिसनर) नागपुर में दाखिला लिया और साल 1923 में एल.एम.पी. की परीक्षा पास की जिसे बाद में एल.एम.पी. को सरकार द्वारा एम.बी.बी.एस. का दर्जा दिया गया।
डॉ. खूबचंद बघेल का विवाह बहुत की कम उम्र में करा दिया गया था, जब वे अपनी प्राथमिक की पढ़ाई कर रहे थे तो सिर्फ 10 वर्ष के उम्र में उनका विवाह उनसे साल में 3 वर्ष छोटी कन्या राजकुँवर से करा दिया गया था। उनकी पत्नी राजकुँवर से 3 पुत्रियाँ पार्वती, राधा और सरस्वती का जन्म हुआ। बाद में उन्होंने पुत्र मोह के कारण डॉ. भारत भूषण बघेल को गोद लिया।
डॉ. खूबचंद बघेल का हमेशा से सामाजिक कुरीतियों को देखकर खून खौल उठता था वे हमेशा इन बुराइयों को समाज से दूर करने के लिए बहुत सारे प्रयास किये जिसके फलस्वरूप उन्हें अनेकों बार समाज के गुस्से का सामना करना पड़ा है।
पुरे देश की तरह छत्तीसगढ़ में छुआछूत, ऊँच- नीच की भावना व्याप्त थी उसी की कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किये गए हैं। बात तब की है जब गांवों के नाई, सतनामी समाज के लोगों के बाल काटने को राजी नहीं होते थे इस व्यथा को देखकर सेठ स्व. अनंत राम बर्छिहा जी ने उनके बाल काटे और दाढ़ी भी बनाई इसी से क्षुब्ध होकर कुर्मी समाज ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया, जिसे डॉ. साहब ने देखकर “ऊँच-नीच” नामक नाटक की रचना कर प्रदर्शन किया, जिसके प्रभाव से ही बर्छिहा जी का सामाजिक बहिष्कार को रद्द किया गया।
डॉ. खूबचंद बघेल ने जब से अपना होश सम्हाला था तब से उन्हें जातिगत भेद भाव से चिढ़ थी, उन्होंने जातिगत भेद भाव के साथ साथ उपजातिगत भेद भाव को भी दूर करने का काम किया जिसके फलस्वरूप आज के समय में कुर्मी समाज में व्याप्त उपजाति भेदभाव को दूर किया जा सका है।
इस भेदभाव को मिटाने के लिए डॉ. बघेल जी स्वयं मनवा कुर्मी के थे परन्तु उन्होंने अपनी एक पुत्री का विवाह दिल्लीवार कुर्मी समाज में तथा सबसे छोटी बेटी का विवाह पटना के राजेश्वर पटेल जी से करवाया फलस्वरूप उन्हें समाज के क्रोध के कारण कुर्मी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। परन्तु वे हमेशा से इस उपजाति बंधन को तोड़ने में लगे रहे।
पंक्ति तोड़ो आंदोलन:
छत्तीसगढ़ में व्याप्त एक कुप्रथा थी की शादी में समाज के आधार पर पंक्ति निर्धारित होती थी उसी पंक्ति में बैठकर भोजन करना होता था, जैसे मैं अगर कुर्मी समाज का हूँ तो सिर्फ कुर्मी समाज के पंक्ति में बैठकर भोजन कर सकता हूँ अगर अन्य किसी पंक्ति में बैठना मेरे लिए अपराध था। इसी कुरीति को तोड़ने के लिए डॉ. खूबचंद बघेल जी ने पंक्ति तोड़ो आंदोलन शुरू किया जिसका परिणाम आज आप लोगों के सामने है की सब अब मिल जुलकर किसी भी पंक्ति में भोजन कर पा रहे हैं।
किसबिन नाच हेतु “भारतवंशी, जातीय सम्मलेन” : किसबिन नाच किसबा जाति द्वारा किया जाने वाला एकपुश्तैनी धंधा था जिसमें किसबा जाति के पुरुष अपने बहन-बेटियों को विभिन्न त्यौहारों में तवायफों जैसे नचवाने और गँवाने का काम किया करते थे। इस चलन को बंद करने के लिए डॉ. बघेल जी द्वारा समाज सुधार की दृस्टि से “भारतवंशी जातीय सम्मलेन” का आयोजन मुंगेली में कराया गया जिसका असर किसबा जाति पर पड़ा और वे सब सामाजिक मुख्य धारा में लौट आये।
डॉ. रामलाल कश्यप जी (पूर्व कुलपति पं.र.वि.वि. रायपुर) ने जब डॉ. बघेल से पूछा- आप छत्तीसगढ़ी आंदोलन के प्रेणता माने जाते हैं, तो आपके अनुसार छत्तीसगढि़या की परिभाषा क्या है ? डॉ. बघेल ने उत्तर दिया “जो छत्तीसगढ़ के हित में अपना हित समझता है। छत्तीसगढ़ के मान- सम्मान को अपना मान-सम्मान समझता है और छत्तीसगढ़ के अपमान को अपना अपमान समझता है, वह छत्तीसगढि़या है। चाहे वह किसी भी धर्म, भाषा, प्रांत जाति का क्यों न हो।”
उन्होंने छत्तीसगढ़ का अपमान करने वालों को कुछ पंक्तियों द्वारा जवाब दिया था:
बासी के गुण कहुँ कहाँ तक, इसे ना टालो हाँसी में।
गजब बिटामिन भरे हुये हैं, छत्तीसगढ़ के बासी में ।।
नादानी से फूल उठा मैं, ओछो की शाबासी में,
फसल उन्हारी बोई मैंने, असमय हाय मटासी में।
अंतिम बासी को सांधा, निज यौवन पूरन मासी में,
बुद्ध-कबीर मिले मुझको, बस छत्तीसगढ़ के बासी में।
बासी के गुण कहुँ कहाँ तक…
विद्वतजन को हरि दर्शन मिले, जो राजाज्ञा की फाँसी में,
राजनीति भर देती है यह, बुढ़े में सन्यासी में,
विदुषी भी प्रख्यात यहाँ थी, जो लक्ष्मी थी झाँसी में,
स्वर्गीय नेता की लंबी मुंछे भी बढ़ी हुई थी बासी में ।।
गजब विटामिन भरे हुए हे ….
डॉ. खूबचंद बघेल की रचना:
नाटक :
ऊँच-नींच: छुआछूत और जातिप्रथा को कम करने के लिए इस नाटक को लिखकर मंचन किया गया।
करम-छंडहा: यह नाटक आम आदमी की गाथा और बेबसी को दर्शाता है।
जनरैल सिंह: छत्तीसगढ़ के दब्बूपन को दूर करने का रास्ता बताया गया है।
भारतमाता: 1962 में भारत चीन युद्ध में इसे लिखकर मंचन कराया गया तथा चंदा इकठ्ठा कर भारत सरकार के पास भिजवाया गया।
राजनितिक सफर:
सन 1931 तक सरकारी पद त्याग कर उन्होंने कांग्रेस में प्रवेश किया। इसके पूर्व इसके पूर्व प्रवेश किया। इसके पूर्व इसके पूर्व अप्रैल 1930 में रायपुर महाकौशल राजनीतिक परिषद के अधिवेशन में डॉक्टर बघेल ने भी हिस्सा लिया था, सन 1931 में डॉक्टर बघेल रायपुर जिला के डिक्टेटर और बाद में राज्य के आठवें डिक्टेटर नियुक्त हुए। जिला डिक्टेटर के पद पर रहते हुए डॉक्टर बघेल सामाजिक सुधार के प्रति भी जागरूक रहें। सन 1939 के त्रिपुरी के ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवकों के कमांडर के रूप में कार्य किया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के तहत इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। डॉक्टर बघेल के साथ उनकी धर्मपत्नी राजकुँवर देवी भी 6 माह के लिए जेल गई। रायपुर तहसील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में डॉक्टर बघेल निर्विरोध चुने गए। इस तरह सन 1946 में डॉक्टर बघेल को तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्हें प्रांतीय शासन ने संसदीय सचिव नियुक्त किया। 1950 में आचार्य कृपलानी के आह्वान पर वे कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हुए। 1951 के बाद आम चुनाव में वे विधानसभा के लिए पार्टी से निर्वाचित हुए। 1965 तक विधानसभा के सदस्य रहे। 1965 में राज्यसभा के लिए चुने गए राजनीति से 1968 तक जुड़े
निधन:
छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वप्न दृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल हमेशा से छत्तीसगढ़ के विकास और छत्तीसगढ़ को एक अलग पहचान दिलाने के लिए कार्य किया, वे हमेशा छत्तीसगढ़ के दब्बूपन को दूर करने के लिए अनेक प्रयास किये,वे हमेशा यही चाहते थे की छत्तीसगढ़ को लोग क्यों ऐसे हीन भावना से देखते है हमेशा इससे सौतेला व्यावहार क्यों करते हैं बस इन्ही बातों की चिंता उन्हें सताते रहती थी। जातिगत भेदभाव, कुरीतियों को मिटाने वाले इस महान व्यक्ति का निधन संसद के शीतकालीन सत्र के लिए भाग लेने दिल्ली गए हुए थे वहाँ दिल का दौरा पड़ने से उनकी आकस्मिक निधन 22 फरवरी 1969 को हो गया।
धन्य हैं ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को शत शत नमन
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू, नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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