देश में आज भाई तो जीवित है, भाईचारा मर रहा है आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागरजी महाराज ने ‘संवाददाता के साथ बातचीत में कहा औरंगाबाद पियुष /नरेद जैन। आज देश में भाई तो जीवित बचा है, लेकिन भाईचारा मर रहा है. एक समय देश में दोनों जीवित महसूस होते थे. यह मत सुविख्यात जैन मुनि तथा अहिंसा- संस्कार यात्रा के प्रणेता अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागरजी महाराज ने व्यक्त किया. उन्होंने मंगलवार को’ विशेष बातचीत के दौरान धर्मनीति, राजनीति और भक्ति भावना पर अपनी बात रखी.
अहिंसा-संस्कार पदयात्रा के माध्यम से संस्कारों का शंखनाद
मुनिश्री ने बताया कि देश में महात्मा
गांधी ने दांडी यात्रा निकाली. विनोबा भावे ने पदयात्रा निकाली. आचार्य तुलसी ने अहिंसा यात्रा निकाली. मैं अहिंसा-संस्कार पदयात्रा के माध्यम से संस्कारों का शंखनाद कर रहा हूं. इस यात्रा का शुभारंभ वर्ष 2004 में गांधी जयंती के अवसर पर असम की राजधानी गुवाहाटी से किया गया था. वहां के तत्कालीन राज्यपाल अजय सिन्हा और तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने हरी झंडी दिखाते हुए पूछा था कि नैतिकता कैसे गुम होती, आदर्श कैसे विलुप्त होते, मानव सेवा कैसे लुप्त होती, आगम-पुराण कैसे बंद होते. इसका जवाब था कि जब देश में जूते-चप्पल कांच के शो-रूम में बिकने लगे और वेद, पुराण, गीता, रामायण, बाइबल सहित
नांदेड में मंगलवार को विसावा नगर स्थित जैन मंदिर की छत पर दोपहर में 40.5 डिग्री तापमान में सामायिक करते हुए आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागरजी महाराज.
अन्य धार्मिक ग्रंथ सड़क पर बिकने लगें, तो समझ जाना कि देश को ज्ञान की नहीं, अपितु जूते-चप्पल की आवश्यकता है.
आज देश को हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर चल रही चर्चाओं के बारे में मुनिश्री ने कहा- दूसरे मजहब और तीर्थ को अपना
पैंतीस वर्षों से सिर्फ धूप स्नान…..
मुनिश्री 496 दिनों तक बिना एक भी घूंट पानी पिए उपवास किए हैं. 35 साल से पानी से स्नान नहीं किया, धूप स्नान खूब करते हैं. सादा जीवन उच्च विचार को जीवन में उतारने वाले मुनिश्री प्रसन्न सागरजी महाराज की साधना काफी कठोर मानी जाती है.
कर हिंदूवादी बन सकते हैं, लेकिन देश की प्राचीन संस्कृति यहहै कि जो व्यक्ति जिस धर्म-पंथ या मजहब का है, उसको उसके अनुसार निर्वहन करने का अधिकार है.
क्या धर्मनीति और राजनीति के बीच फंस गया है धर्म?
धर्मनीति और राजनीति के बीच धर्म के फंसे होने के बारे में मुनिश्री ने कहा- आज के परिदृश्य में धर्म शक्कर की तरह है. गंदे पानी में मिलाने पर उसे भी मीठा कर देती है. शुद्ध जल का तो क्या कहना. यह धर्म के ठेकेदारों, धर्माचार्यों, कथा वाचकों पर निर्भर है कि वह धर्म को आस्थावानों के
समक्ष किस तरह परोसते हैं. प्रत्येक मनुष्य को महीने में एक बार श्मशानघाट जाकर जलती चिता जरूर देखनी चाहिए. इससे मन में परिवर्तन आएगा, आसक्ति कम होगी और बुरे कार्यों से विरक्ति होगी. यह परिवर्तन ग्रंथों और पुराणों को पढ़ने से नहीं आएगा. तमाम शास्त्र पढ़ने, धार्मिक ग्रंथ पढ़ने के बाद भी जीवन का सत्य समझ में आए, इसकी गारंटी नहीं. गीता, कुरान, वेद, बाइबल, जिन सूत्र पढ़ने से जीवन का सत्य समझ में आए, ये भी जरूरी नहीं है, लेकिन श्मशान घाट में सात, 15 दिन या 30 दिन में एक बार जाकर देखने से कमाने व जोड़ने का अर्थ समझ में आ जाएगा.नरैद्र अजमेरा पियूष कासलीवाल