देश को आजाद करवाना महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, लाला लाजपत राय का काम था, देश में अमन चैन लाना हमारा कर्म है

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जयपुर। मंगलवार को स्वतंत्रता दिवस महामहोत्सव देशभर में मनाया गया, इस दौरान देश के प्रधानमंत्री सहित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और राजनेता सहित समाजसेवियों ने हर्षोल्लास के साथ ” आजादी का 77 वां महोत्सव मनाया ” साथ ही आजादी दिलवाने में मुख्य योगदान देने वाले देश के वीर जवानों और अमर शहीदों को याद कर देश का राष्ट्रीय ध्वज ” तिरंगा फहराया “।

एक और जहां सरकार और सरकारी विभागों सहित स्कूलों, कॉलेज आदि में स्वतंत्रता दिवस समारोह के आयोजन चल रहे थे वही दूसरी तरफ प्रताप नगर सेक्टर 8 में चातुर्मास कर रहे जैनाचार्य सौरभ सागर महाराज के सानिध्य में अनूठे अंदाज में जैन श्रद्धालुओं ने भी आजादी के 77 वें महामहोत्सव में अपनी उपस्थिति हर्षोल्लास के साथ दर्ज करवाई। इस दौरान जैन श्रद्धालुओं ने शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर सेक्टर 8, प्रताप नगर से मुख्य पांडाल स्थल तक करीबन 1 किमी लम्बी तिरंगा यात्रा निकाली। इस यात्रा में शामिल बच्चों, बुजुर्गो, महिला और पुरुष अपने हाथों में ध्वजा लेकर देशभक्ति नारों और जयकारों की दिव्य गूंज और बैंड – बाजों की ध्वनि पर नृत्य करते हुए चल रहे थे वही दूसरी तरफ महिलाओं ने तिरंगा वस्त्र धारण कर यात्रा में शामिल होकर देशभक्ति का जज्बा दिखाया। प्रताप नगर में निकाली गई तिरंगा यात्रा में पूर्व जयपुर शहर भाजपा अध्यक्ष संजय जैन, गौरवाध्यक्ष राजीव जैन गाजियाबाद वाले, मुख्य समन्वयक गजेंद्र बड़जात्या, अध्यक्ष कमलेश जैन, मंत्री महेंद्र जैन, कोषाध्यक्ष धर्मचंद जैन, प्रचार संयोजक सुनील साखुनिया, चेतन जैन निमोडिया, महेश सेठी, बाबूलाल जैन इटुंदा, राजेंद्र सोगानी सहित श्री पुष्प वर्षायोग समिति, प्रताप नगर सेक्टर 8 मंदिर समिति, युवा मंडल, महिला मंडल और मुनि संघ व्यवस्था समिति के सभी पदाधिकारी सहपरिवार सम्मिलित हुए। यात्रा जब मुख्य पांडाल स्थल पर पहुंची तो सर्व प्रथम भाजपा नेता संजय जैन द्वारा आचार्य सौरभ सागर महाराज के सानिध्य में ध्वजारोहण किया गया। जिसके पश्चात चित्र अनावरण, दीप प्रवज्जलन, मंगलाचरण इत्यादि आयोजन होने के पश्चात अंत में आचार्य श्री का संबोधन हुआ।

आचार्य सौरभ सागर महाराज ने देश के नाम संदेश संबोधन में कहा की – भारत एक अध्यात्म प्रधान देश है। अध्यात्म की शिक्षा देने का पूर्ण अधिकार गुरु को व शिक्षक को है। वर्तमान में शिक्षकों का आचरण खो गया है। उनकी महिमा, गरिमा समाप्त हो गई है। वे विद्यार्थी को शिक्षा देने के पूर्व व्यसन सेवन जैसे तम्बाकू, पान, गुटका, बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि खाते-पीते है, फिर बालकों को शिक्षा देते है, इसलिए शिक्षा का असर नहीं होता है। नींव कमजोर है, तो मकान भी कमजोर होता है जिस प्रकार विद्यार्थियों की ड्रेस नियुक्त है, उसी प्रकार शिक्षकों की भी ड्रेस नियुक्त होनी चाहिये। शिक्षक अगर आचारहीन होगा, तो विद्यार्थी भी उददंड होगे। आज के ही विद्यार्थी कल के नागरिक है। वे अपने बड़ों का आचरण देखकर अपने भविष्य को बनाते है।

आचार्य श्री ने कहा की – भारतीय संस्कृति अहिंसा की संस्कृति है। अहिंसा की संस्कृति मुक्त तो हो गई, लेकिन हम सुखी नहीं हुए क्योंकि हमने अपने जीवन में अनैतिकता, अराजकता को स्वीकार कर लिया है। भारतीय संस्कृति धार्मिक क्षेत्र में जिस प्रकार ज्ञान, दर्शन, चरित्र का संदेश देती है, उसी प्रकार सामाजिक क्षेत्र में अहिंसा प्रेम व भक्ति की शिक्षा देती है। भारतीय संस्कृति हिंसा को निकृष्ट और अहिंसा को उत्कृष्ट मानती है। यहां राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, जीसस ग्रंथो में नही, दिल के विद्यमान है।

आचार्य सौरभ सागर ने अपने संबोधन में आगे कहा की – देश भक्त के चरण स्पर्श से मातृभूमि धन्य हो जाती है। देश भक्तों ने अपना सर्वस्व त्यागकर सैकड़ों वर्षों से परतंत्र भारत को स्वतंत्रता दिलाई। उन्होंने अपना खून बहाकर जन साधारण में चेतना जागृत कर नए इतिहास का निर्माण किया, लेकिन आज हम स्वतंत्र नही, स्वच्छन्द हो गए है। देह तो स्वतंत्र है, मन स्वच्छन्द है। देश को स्वतंत्र कराना महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, लाला लाजपत राय का काम था, पर देश में अमन चैन को लाना हमारा कर्म है। हम स्वतंत्रता का दुरुप्रयोग कर रहे है, यह हमारी स्वच्छन्दता का ही फल है कि आज हम स्कूल, कॉलेजों में आग लगाते है, नेताओ को गाली देते है, शिक्षकों को पीटते है, भारतीय ध्वज में आग लगाते है। हम अपनी अनैतिकता, अराजकता के कारण दुखी है। हमने स्वतंत्रता का सदुपयोग नही, दुरुप्रयोग किया है। भौतिक विकास हुआ है लेकिन आत्म का ह्रास हुआ है। राष्ट्र धर्म का निर्वाह संस्कृति को छोड़कर नहीं, संस्कृति की उपासना करके होना चाहिए। विज्ञान का अंधानुकरण करके संस्कृति का ह्रास नही करना चाहिए। विज्ञान सृजन को नहीं, विध्वंस को स्वीकार करता है।

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