“भेद-विज्ञान का सेतु है आकिंचन्य : ब्र. रितु दीदी”
गुवाहाटी 15 सितंबर। भगवान महावीर धर्म स्थल मे इन दिनों एक अद्भुत दृश्य देखने को मिल रहा है, जहां हजारों की संख्या में लोग ध्यान का लाभ ले रहे हैं। ग्वालियर ससंघ चातुर्मास रत सरस्वती स्वरुपा आर्यिका रत्न 105 पूर्णमति माताजी की आमंत्रित प्रियाग्र शिष्या बा.ब्र.रितु दीदी एवं पिंकी दीदी के नेतृत्व में आयोजित इस ध्यान कार्यक्रम से लोगों की जिंदगी मे काफी परिवर्तन आया है। तथा ध्यान की सच्ची शक्ति का अनुभव हो रहा है। रितु दीदी के मार्गदर्शन में लोग अपने मन को शांत करने, अपने विचारों को स्पष्ट करने और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाने का अवसर प्राप्त कर रहे है।इस ध्यान कार्यक्रम का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि लोगों की जिंदगी में बदलाव नजर आने लगा है। लोग अपने जीवन को सकारात्मक, शांत और संतुष्ट महसूस कर रहे हैं। दिगम्बर जैन पंचायत,गुवाहाटी के अध्यक्ष महावीर जैन एवं मंत्री बीरेंद्र कु. सरावगी ने सभी से निवेदन किया है कि अधिकष से अधिक संख्या में ध्यान कार्यक्रम में भाग लेकर अपने जीवन को बेहतर बनाने का अवसर प्राप्त करें। प्रचार- प्रसार के मुख्य संयोजक ओमप्रकाश सेठी व सह संयोजक सुनिल कुमार सेठी ने बताया कि पर्युषण पर्व के अवसर पर प्रतिदिन शांतिधारा, अभिषेक, नित्य-नियम की पूजन एवं दसलक्षण तथा सोलह कारण मडलं विधान पूजन ब्र. रितु दीदी एवं पिंकी दीदी के सानिध्य में संपादित की जा रही है। आज नौवे दिन आंकिचन्य धर्म की व्याख्या करते हुए दीदी ने कहा कि एकाकी होने का मतलब यह नहीं है कि परिवार , समाज और प्राणीमात्र से हटकर कहीं खड़े हो जाना, बल्कि उन्ही के बीच ऐसा जीवन जीना की जैसे हमें किसी के आलंबन की आवश्यकता ही नहीं है। उन्होंने कहा कि आंकिचन्य भेद- विज्ञान का सेतु है। परिग्रह सबसे बड़ा पाप है और आंकिचन्य सबसे बड़ा धर्म है।।