हर रविवार की शाम को दिया जायेगा जरुरतमंदों को भोजन- प्रियंकल अग्रवाल
यमुनानगर, 27 जुलाई (डा. आर. के. जैन):
श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर के तत्वधान में जैन चेरिटेबल ग्रुप के द्वारा अदित्य उप्पल व एस. के. गर्ग परिवार के सौजन्य से जगाधरी कुष्ठ आश्रम में पांचवा भोजन वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रियंकल अग्रवाल ने की तथा संचालन राजीव सूध ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ णमोकार महामंत्र का उच्चारण कर किया गया। प्रियंकल अग्रवाल ने जानकारी देते हुये बताया कि जैन चेरिटेबल ग्रुप द्वारा प्रभु की कृपा से अनेक प्रकार धार्मिक व समाजिक कार्य किये जा रहे है, इसी श्रंखला में ग्रुप द्वारा हर रविवार को असहाय व जरुरतमंद लोगों को भोजन वितरित करने का निर्णय लिया है और इसी कड़ी में यह पांचवा भोजन वितरण कार्यक्रम अदित्य उप्पल व एस. के. परिवार के सहयोग से आयोजित किया गया। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के समाज सेवा कार्य किया जाना हर प्रकार से शुभ सिद्ध होता है, क्योंकि इस प्रकार से जरुरतमंद व्यक्ति तक अन्न का दाना पहुँचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हर धर्म में निस्वार्थ भाव से मानव सेवा को ही सबसे उच्च सेवा कहा गया है और समाज में बहुत से ऐसे लोग है जिन्हें दो वक्त रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है, ऐसे में भोजन वितरण कार्यक्रम का महत्व और भी बढ़ जाता है। पुनीत गोल्डी ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान जरुरतमंदों के लिये भोजन के रूप में सब्जी व रोटी की व्यवस्था की गई, जिसकों लगभग 60 लोगों ने ग्रहण किया। उन्होंने समाज से अग्रह करते हुये कहा कि यह बहुत ही पुण्य का कार्य है और सभी समाजों के लोगों को इसमें सहयोग देना चाहिये तथा अपने जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ, बच्चों के जन्मदिन व अपनों की पुण्यतिथि आदि अवसरों पर सहयोग दें ताकि यह कार्य निरंतर चलाया जा सके। इस अवसर पर अंकुर जैन, पुनीत गोल्डी जैल, नीजर जैन, आर्जव जैन, अमन सोई, सौरव सैनी आदि ने सहयोग दिया।
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जरुतमंदों को भोजन वितरित करते पदाधिकारी……………(डा. आर. के. जैन)
चातुर्मास के 25 वें दिन मुनि श्री ने बताया शुद्ध मन व भलाई करने के लाभ
दूसरों को भला सोचने के साथ कभी नहीं होता कुछ बुरा- जैन मुनि
यमुनानगर, 27 जुलाई (डा. आर. के. जैन):
एस. एस. जैन सभा स्थानक में चातुर्मास के 25 वें दिन मधुर कंठी श्री तेजस मुनि जी मण्ने प्रवचन देते हुए कहा कि जिस प्रकार फूल से निकलने वाले सुगंधित पुद्गल नाक में जाकर उसे सुगंध का अनुभव कराते हैं, उसी प्रकार मानसिक सोच से भी मनोवर्गणा के पुद्गल तैयार होते हैं, और वह संबंधित मन के पास जाकर उसे प्रभावित किए बिना नहीं रहते। यदि हमारे विचार सामने वाले के प्रति बुरे होंगे तो उसके मन में भी हमारे प्रति वैचारिक वैमनस्य आए बिना नहीं रह सकेगा। अत: मन की शुद्धि रखना भी आवश्यक है। मन के शुद्ध होने पर वचन और काय की शुद्धि भी सही रूप में रह सकेगी। मन वचन और काया की शुद्धि पर भी आत्मसिद्धि अवलंबित है। इसके अतिरिक्त धर्म सभा को संबोधित करते हुए हिमाचल रत्न श्री जितेंद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि कर भला हो भला यह सोच हमारे को अच्छा बनाती है, परमात्मा और धर्म के नजदीक लेकर जाती है। यदि आप दूसरों की मदद करेंगे तो परमात्मा आपकी मदद जरूर करेंगे इसी का एक उदाहरण पेश करते हुए महाराज श्री ने बताया कि गांव में एक गरीब औरत थी उसका बेटा था उनकी रोजी-रोटी का कोई ज़रिया नहीं था उस औरत को पता लगा गांव में एक सिद्ध महाराज आए हुए हैं जो मनोकामना पूरी करते हैं। उसने अपने बेटे को महाराज जी के पास भेजा। बेटा जब जा रहा था तो रास्ते में उसे एक सेठ परिवार की ग्रहणी ने बताया कि उसकी बेटी है सर्वगुण कला संपन्न है परंतु उसे दिखता नहीं है यदि आप जा ही रहे हो तो उनसे पूछना कि मेरी बेटी को देखना कैसे शुरू हो सकता है। थोड़ी आगे चलने पर उस व्यक्ति को एक किसान मिला उसके कहा कि अब जा ही रहे हो तो यह पूछना कि मैं जब फसल उगाता हूं वह उसकी जड़ गहरी क्यों नहीं हो पाती थोड़ी सी आगे चलने पर उस आदमी को एक सन्यासी मिला जिसने कहा कि यदि आप अपनी क्षुधा शांत करने जा रहे हैं तो उनसे यह भी पूछना कि मेरा तपस्या में मन क्यों नहीं लगता इस प्रकार से वह आदमी इन समस्याओं को लेकर सिद्ध पुरुष के पास पहुंच गया सिद्ध पुरुष ने फरमाया कि मैं एक समय में 3 प्रश्नों का उत्तर दे सकता हूं तो उस आदमी ने सोचा कि मैं तो फिर आ सकता हूं लेकिन वह तीनों लोग आश्रित हैं यहां नहीं आ सकते मैं उन तीनों का हाल पूछता हूं तो बारी-बारी से उसे पता लगा सन्यासी की तपस्या ना होने का कारण उसके बालों में छुपी मणि था सन्यासी का सारा ध्यान उसकी तरफ था, किसान की फसल ना होने का कारण उसके खेत में दबे हुए 5 स्वर्ण कलश थे जो जड़ें गहरी नहीं होने दे रहे थे और सेठानी की बेटी की आंखों की रोशनी वापस लाने का उपाय स्वामी जी ने बताया कि उसको बोलना कि मेरी आंखों में देखे और उसको दिखना शुरू हो जाएगा। इस प्रकार जब उसने यह तीनों काम किए तो उसका नतीजा यह हुआ कि सन्यासी ने वह मणि उसी व्यक्ति को दे दी कि मेरे किसी काम की नहीं। खेत खोदने पर जो स्वर्ण कलश मिले वह किसान ने उस आदमी को यह कहते हुए दे दिए कि यह मेरे नहीं हैं। आपने पता किया है तो यह आप ले जाओ और उसी प्रकार सेठानी की बेटी की आंखें भी यह बोलने पर वापस आ गई और इस प्रकार वह अपने घर धन और पत्नी के साथ पहुंचा तो मां ने उसे आशीर्वाद भी दिया और समझाया कि बेटा मैं कहती थी ना परोपकार का फल हमेशा मीठा होता है। भला करने वाले, ऐसी भली सोच रखने वाले यहां भी सुख पाते हैं और आगे भी सुख पाते हैं।
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प्रवचन करते मुनि श्री व उपस्थ्ति श्रद्धालु………………(डा. आर. के. जैन)