भगवान श्री विमलनाथ जी का जन्म /तप कल्याणक

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बारहवे तीर्थन्कर को मोक्ष पधारे हुए जब बहुत काल व्यतीत हो चुका था , तब माघ शुक्ल त्रि तीया के दिन तेरहवे तीर्थन्कर श्री विमलनाथ जी का जन्म हुआ | कम्पिलपुर के राजा क्रतवर्मा एवम उनकी महारानी श्यामादेवी को प्रभु के जनक -जननी होने का परम -सौभाग्य प्राप्त हुआ | विमलनाथ जी ने यौवन मे पदार्पण किया | माता-पिता ने अनेक सुन्दर राजकन्याओ से उनका पाणिग्रहण कराया | पिता के पश्चात उन्होने राजपद का दायित्व भी वहन किया | अपने विमल शासनकाल मे विमलनाथ का विमल सुयश चतुर्दिक प्रस्रत हुआ |

माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन महाराज विमलनाथ , मुनि विमलनाथ बने , अर्थात प्रव्रजित हुए | तप और ध्यान की साधना मे निमग्न रहते हुए दो वर्ष पश्चात पौष शुक्ल षष्ठी के दिन प्रभु केवली बने | तीर्थ की रचना कर तीर्थन्कर पद को उपलब्ध हुए |

मन्दर नामक मुनि प्रभु के ज्ये्ष्ठ शि्ष्य और प्रमुख गणधर थे | उनके अतिरिक्त चौपन गणधर और भी थे | धर्म-परिवार मे अड्सठ हजार साधु ,एक लाख आठ सौ साध्विया ,दो लाख आठ हजार श्रावक एवम चार लाख चौबीस हजार श्राविकाए थी | त्रतीय बलदेव भद्र एवम स्वयन्भु नामक वासुदेव प्रभु के अनन्य भक्त थे |

आषाढ क्रष्णा सप्तमी के दिन सम्मेदशिखर पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया |

भगवान के चिन्ह का महत्व

शूकर –

भगवान विमलनाथ के चरणों में शूकर का प्रतीक पाया जाता है | शूकर प्राय: मलिनता का प्रतीक है | ऐसे मलिन व्रत्ति वाला पशु विमलनाथ भगवान के चरणों में जाकर आश्रय लेता है तो वह शुकर ‘वराह ‘ कहलाने लगता है | एक समय ऐसा आता है जब भगवान विष्णु भी वराह का रूप धारण कर दुष्ट राक्षसों का संहार करने लगते हैं | यह प्रभु का रूप स्वयं विष्णु धारण करते हैं | शुकर के जीवन से हमें द्रढता एवं सहिष्णुता का गुण ग्रहण करना चाहिए |

शुकलमाघ तुरी तिथि जानिये, जनम मंगल तादिन मानिये |

हरि तबै गिरिराज विषै जजे, हम समर्चत आनन्द को सजे ||

ॐ ह्रीं माघशुक्लाचतुर्थ्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 .

तप धरे सित माघ तुरी भली, निज सुधातम ध्यावत हैं रली |

हरि फनेश नरेश जजें तहां, हम जजें नित आनन्द सों इहां ||

ॐ ह्रीं माघशुक्लाचतुर्थ्यां तपोमंगल प्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |

विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद्

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