जैन परम्परा में 24 तीर्थंकर हुए हैं। वर्तमान कालीन चैबीस तीर्थंकरों की श्रृखंला में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी हैं। भगवान महावीर के जन्म कल्याणक को देश-विदेश में बडे़ ही उत्साह के साथ पूरी आस्था के साथ मनाया जाता है। भगवान महावीर को वर्द्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर के नाम से भी जाना जाता है। ईसा से 599 पूर्व वैशाली गणराज्य के कुण्डलपुर में राजा सिद्धार्थ एवं माता त्रिशला की एक मात्र सन्तान के रूप में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को आपका जन्म हुआ था। 30 वर्ष तक राजप्रासाद में रहकर आप आत्म स्वरूप का चिंतन एवं अपने वैराग्य के भावों में वृद्धि करते रहे। 30 वर्ष की युवावस्था में आप महल छोड़कर जंगल की ओर प्रयाण कर गये एवं वहां मुनि दीक्षा लेकर 12 वर्षों तक घोर तपश्चरण किया। तदुपरान्त 30 वर्षों तक देश के विविध अंचलों में पदविहार कर आपने संत्रस्त मानवता के कल्याण हेतु धर्म का उपदेश दिया। ईसा से 527 वर्ष पूर्व कार्तिक अमावस्या को उषाकाल में पावापुरी में आपको निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हुआ।
महावीर स्वामी ने मानव जीवन के कल्याण के लिए 5 सिद्धांत बताए थे। महावीर स्वामी का मानना था कि इन 5 सिद्धांतों को जिसने समझ लिया वो जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझ जाएगा और उसका बेड़ा हर हाल में पार हो जाएगा। 5 सिद्धातों पर टिका था स्वामी महावीर का जीवन। भगवान महावीर ने लोगों को समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति पाने के लिए 5 सिद्धांत बताए। ये जीवन जीना सिखाते हैं और भीतर तक अनंत शांति, आनंद की अनुभूति देते हैं। भगवान महावीर ने अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के पांच महान सिद्धांतों की शिक्षा दी। पाश्चात्य संस्कृति और भागमभाग के इस के दौर में ये पांच सिद्धांत आपके बहुत काम आ सकते हैं। आपके आत्मबल को मजबूत करेंगे, तनाव को दूर करेंगे और दृढ़ संकल्प शक्ति जगायेंगे। शांति का अनुभव होगा।
वे पांच सिद्धांत इसप्रकार हैं –
1. अहिंसा : भगवान महावीर ने अहिंसा की जितनी सूक्ष्म व्याख्या की है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने मानव को मानव के प्रति ही प्रेम और मित्रता से रहने का संदेश नहीं दिया अपितु मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति से लेकर कीडे़-मकोडे़, पशु-पक्षी आदि के प्रति भी मित्रता और अहिंसक विचार के साथ रहने का उपदेश दिया है। उनकी इस शिक्षा में पर्यावरण के साथ बने रहने की सीख भी है।
महावीर अहिंसा के समर्थक थे। उनका कहना था कि इस लोक में जितने भी एक, दो, तीन, चार और पांच इंद्रियों वाले जीव हैं, उनकी हिंसा न करो, उनके पथ पर उन्हें जाने से न रोको, उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो और उनकी रक्षा करो।
द्वेष और शत्रुता, लड़ाई-झगडे़ और सिद्धांतहीन शोषण के संघर्षरत विश्व में जैनधर्म का अहिंसा का उपदेश न केवल मनुष्य के लिए बल्कि जीवन के सभी रूपों के लिए एक विशेष महत्व रखता है। इसमें करूणा, सहानूभूति, दान, विश्वबंधुत्व और सर्वक्षमा समाविष्ट हैं। अनेकांत और उसका मर्म अहिंसा प्रतिकूल चिंतन और विचार जागृत होने पर सहिष्णु बने रहने का उपदेश देता है।
भगवान महावीर के मुख्य सि़द्धांतों में अहिंसा उनका मूलमंत्र था यानी ‘अहिंसा परमो धर्म’ क्योंकि अहिंसा ही एकमात्र ऐसा शस्त्र है जिससे बडे़ से बड़ा शत्रु भी अस्त्र-शस्त्र का त्याग अपनी शत्रुता समाप्त कर आपसी भाईचारे के साथ पेश आ सकता है।
अहिंसा का सीधा-साधा अर्थ करें तो वह होगा कि व्यावहारिक जीवन में हम किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं, किसी प्राणी को अपने स्वार्थ के लिए दु:ख न दें। ‘आत्मान: प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत् इस भावना के अनुसार दूसरे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करें जैसा कि हम उनसे अपने लिए अपेक्षा करते हैं। इतना ही नहीं सभी जीव-जन्तुओं के प्रति अर्थात् पूरे प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या न तो करें और न ही करवाएं और हत्या से उत्पन्न वस्तुओं का भी उपभोग नहीं करें।
भगवान महावीर अहिंसा की अत्यंत सूक्ष्मता में गए हैं। आज तो विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि वनस्पति सजीव है , पर महावीर ने आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व ही कह दिया था कि वनस्पति भी सचेतन है , वह भी मनुष्य की भांति सुख – दुख का अनुभव करती है। उसे भी पीड़ा होती है। महावीर ने कहा , पूर्ण अहिंसा व्रतधारी व्यक्ति अकारण सजीव वनस्पति का भी स्पर्श नहीं करता। महावीर के अनुसार परम अहिंसक वह होता है , जो संसार के सब जीवों के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेता है , जो सब जीवों को अपने समान समझता है। ऐसा आचरण करने वाला ही महावीर की परिभाषा में अहिंसक है। उनकी अहिंसा की परिभाषा में सिर्फ जीव हत्या ही हिंसा नहीं है , किसी के प्रति बुरा सोचना भी हिंसा है। बाह्य हिंसा की अपेक्षा यदि मानसिक हिंसा दूर हो जाय तो अहिंसक क्रंाति का मार्ग आसानी से प्रशस्त हो सकता है। सभी धर्मों के प्रति सम्माान की भावना ही आधुनिक युग की सच्ची अहिंसा है।
2. सत्य :
महावीर स्वामी का कहना था कि सत्य ही सच्चा तत्व है। जो बुद्धिमान व्यक्ति जीवन में सत्य का पालन करता है, वो मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।किसी वस्तु विचार के सभी पक्षों को जानना एवं एक साथ उनको व्यक्त करना असंभव है। अतः हमें अपने विचार एवं पक्ष पर ही आग्रहशील न होकर दूसरे के विचार एवं पक्ष को भी धैर्यपूर्वक सुनना चाहिये संभव है कि किसी अन्य दृष्टि से दूसरे के विचार भी सत्य हो इससे सद्भाव स्थापित होता है एवं मतभेद कम होते हैं। भारतीय समाज को आज इस सद्भाव की विशेष आवश्यकता है यही अनेकान्तवादी दृष्टिकोण है।
भगवान महावीर का ये सिद्धांत हर स्थिति में सत्य पर कायम रहने की प्रेरणा देता है. किसी को भी इसे अपनाकर सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए. यानी अपने मन और बुद्धि को इस तरह अनुशासित और संयमित करना, ताकि हर स्थिति में सही का चुनाव (satya) कर सकें।
3. अचौर्य (अस्तेय) : अचौर्य सिद्धांत का अर्थ ये होता है कि केवल दूसरों की वस्तुओं को चुराना नहीं है, यानी कि इससे चोरी का अर्थ सिर्फ भौतिक वस्तुओं की चोरी ही नहीं है, बल्कि यहां इसका अर्थ खराब नीयत से भी है। अगर आप दूसरों की सफलताओं से विचलित होते हैं, तो भी ये इसके अंतर्गत आता है।किसी की बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण करना चोरी है ,समानान्तर बही खाते रखना, टैक्स चोरी करना, मिलावट करना, जमाखोरी करना, धोखेबाजी करना, कालाबाजारी करना, सभी चोरी के अन्तर्गत आते हैं। स्वस्थ, शान्तिप्रिय समाज व्यवस्था हेतु अचौर्य जरूरी है।
किसी के द्वारा न दी गई वस्तु को ग्रहण करना चोरी कहलाता है. महावीर का कहना था कि व्यक्ति को कभी चोरी नहीं करनी चाहिए.
4. ब्रह्मचर्य : महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठ तपस्या मानते थे। वे कहते थे कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। ब्रह्मचर्य विवाह संस्था भारतीय समाज का वैशिष्ट्य है। इस संस्था के कमजोर पड़ने पर पाश्चात्य समाज में आई विसंगतियाँ एवं छिन्न भिन्न होती समाज व्यवस्था सर्वविदित है। असंयमित, अतिभोगवादी जीवन शैली से जनित महामारी (AIDS) से आज सारा विश्व चिंतित है। महावीर ने साधुओं हेतु पूर्ण ब्रह्मचर्य तथा गृहस्थों हेतु पाणिग्रहीता पत्नी / पतिके साथ संतोषपूर्वक गृहस्थ धर्म के पालन का उपदेश दिया। जो ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करते हैं, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
5. अपरिग्रह : महावीर स्वामी का कहना था कि जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता. यदि जीवन का बेड़ा पार लगाना है तो सजीव या निर्जीव दोनों से आसक्ति नहीं रखनी होगी।
भगवान महावीर ने अपरिग्रह को विशेष महत्व दिया था।अपरिग्रह का अर्थ है- जीवन निर्वाह के लिए केवल अति आवश्यक वस्तुओं को ग्रहण करना। मानव-जाति अपनी निरन्तर बढ़ती जरूरतों के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रही है। प्रकृति के साथ सम्यक व्यवहार की सीख हमें जैन परम्परा से मिलती है।
भगवान महावीर ने तो अहिंसा और अपरिग्रह का संदेश दिया था, लेकिन आजकल आदमी हिंसा पर उतारू है। ज्यादा परिग्रह करने लगा है । हिंसा पर आदमी उतारू ही इसलिए हो रहा है, क्योंकि वह परिग्रह में जी रहा है। जहाँ परिग्रह होता है, वहाँ पाँचों पाप होते है। परिग्रह के लिए आदमी चोरी करता है, झूठ बोलता है, हत्या करता है, व्यसनों का सेवन करता है। सभी पापों की जड़ परिग्रह है। जब तक दुनिया भगवान महावीर के अपरिग्रह को नहीं जानेगी, किसी भी समस्या का समाधान नहीं होगा।
परम अहिंसक वह होता है जो अपरिग्रही बन जाता है। हिंसा का मूल है परिग्रह। परिग्रह के लिए हिंसा होती है। आज पूरे विश्व में परिग्रह ही समस्या की जड़ है। भगवान महावीर ने दुनिया को अपरिग्रह का संदेश दिया , वे स्वयं अकिंचन बने। उन्होंने घर , परिवार राज्य , वैभव सब कुछ छोड़ा , यहां तक कि वे निर्वस्त्र बने। अपरिग्रह न्यायपूर्वक उपार्जित धन से अपने परिवार की सीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के उपरान्त शेष राशि का राष्ट्र एवं समाज हित में उपयोग करना, उस धन का स्वयं को स्वामी नहीं अपितु संरक्षक मानना ही अपरिग्रह है।
भगवान महावीर ने ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का शंखनाद कर ‘आत्मवत् सर्व भूतेषु’ की भावना को देश और दुनिया में जाग्रत किया। ‘जियो और जीने दो’ अर्थात् सह-अस्तित्व, अहिंसा एवं अनेकांत का नारा देने वाले महावीर स्वामी के सिद्धांत विश्व की अशांति दूर कर शांति कायम करने में समर्थ है।
भगवान महावीर के विचार किसी एक वर्ग, जाति या सम्प्रदाय के लिए नहीं, बल्कि प्राणीमात्र के लिए हैं। भगवान महावीर की वाणी को गहराई से समझने का प्रयास करें तो इस युग का प्रत्येक प्राणी सुख एवं शांति से जी सकता है।
भगवान महावीर का मार्ग आज के युग की समस्त समस्याओं, मूल्यों की पुन: स्थापना, जीवन में नैतिकता का समावेश, भोगवादिता, संग्रह तथा हिंसा से बचने के लिए सही रास्ता है। महावीर का संदेश आज राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक सभी क्षेत्रों में उपयोगी है। भगवान महावीर आदर्श पुरूष थे। उन्होंने मानवता को एक नई दिशा दी है। उनके बताये हुये अहिंसा, सत्य आदि मार्गों पर चलकर विश्व में शांति हो सकती है।
महावीर के उपदेशों में एक संपूर्ण जीवन दर्शन है। एक जीवन पद्धति है। आज की समाज को इस जीवनपद्धति की कहीं ज्यादा जरूरत है। जरूरत है हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें तभी महावीर जयंती मनाना सार्थक होगा।
2550वे निर्वाणोत्सव वर्ष पर भगवान महावीर स्वामी के सिद्धान्तों को जन-जन तक पहुचाएं, स्वयं आगे आएं दूसरों को भी प्रेरित करें।