भगवान के स्वर्ण कलशों से हुआ महामस्तकाभिषेक

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-मुनि 108 आदित्य सागर महाराज के सानिध्य में भगवान मुनि सुव्रतनाथ का जन्म कल्याणक मनाया
बूंदी, 3 मई। धार्मिक नगरी बून्दी के मधुबन कॉलोनी में स्थित मुनि सुव्रतनाथ बघेरवाल दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य विशद सागर महाराज के परम प्रभावी शिष्य परम पूज्य श्रुतसंवेगी श्रमण रत्न मुनि आदित्य सागर महाराज के सानिध्य में दो दिवसीय मुनि सुव्रतनाथ भगवान का जन्म कल्याणक मनाया गया। कार्यक्रम से जुडे़ नमन जैन ने बताया कि 2 मई को नित्य जिनाभेषक ध्वजारोहण, दोपहर में मुनि सुव्रतनाथ विधान व सायंकालीन भगवान की मंगल आरती के साथ हुआ।
इस कार्यक्रम की शुरुआत ध्वजारोहण महेन्द्र हरसौरा, सीमा हरसौरा परिवार ने किया। 3 मई को पंडित मनीष शास्त्री एवं प्रदीप शास्त्री के निर्देशन में एवं संगीतकार दुर्गेश एण्ड पार्टी की स्वरलहरियों से मुनि सुव्रतनाथ स्वामी का स्वर्ण कलश से महामस्तकाभिषेक कैलाशचंद, मनीष जैन ने किया। मुनि सुव्रतनाथ कलश का सौभाग्य पारसकुमार मोडिका को प्राप्त हुआ। मुख्य शांति धारा महेन्द्र कुमार हरसौरा परिवार, पारसचंद ठग ने की। आदिनाथ स्वामी की शांतिधारा मनोज कुमार, विश्वेश सेठिया एवं महावीर भगवान की शांति धारा कैलाशचंद धनोप्या तथा पाण्डुकशिला पर शांतिधारा नरेश कुमार रमेश कुमार गंगवाल परिवार ने की।
तदुपरांत मुनिश्री ने धर्मसभा में कहा कि जीवन में अशुभ कर्मों के दण्डों के भय से मनुष्य अनुशासित रहता है। अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति हमेशा आनंद की अनुभूति व प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है। इसी क्रम में उन्होंने बताया कि व्यक्ति को वहीं रहना चाहिए जहां धर्म का संचलन व पुण्यवर्धन हो। दूसरा आजिविका का साधन हो, तीसरा जहां भय दरिद्रता नहीं हो, चौथ जहां पर आप की इज्जत हो, पांचवां एक दूसरे के प्रति वात्सल्य प्रेम व स्नेह हो तथा जिस समाज में दान देने की भावना हो। उक्त बातें नहीं मिलने पर ज्ञानी व्यक्ति अपना क्षेत्र परिवर्तन कर लेता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में भौतिकवादी चमक दमक के चलते आधुनिकता की चमक की ओर दौड़ रहा है। इस कारण यह चंचल मन धर्म व आध्यात्म से दूर होता जा रहा है।

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