यक्ष-यक्षिका के मध्य नवग्रहो के चित्रण दुर्लभ है।
बदनावर । जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ जी का 2801वां निर्वाण कल्याणक महोत्सव आगामी 11 अगस्त रविवार श्रावण शुक्ल सप्तमी को मनाया जाएगा। देश में भगवान पार्श्वनाथ की कई प्राचीन प्रतिमाएं भूगर्भ से प्राप्त हुई है और कई प्राचीन गुफा मंदिरों में भी भगवान पारसनाथ की अति प्राचीन एवं दुर्लभ प्रतिमाएं विराजमान है। भगवान पारसनाथ की प्रतिमाओं में अद्भुत शिल्प सौरभ भी देखने को मिलता है। सर्प फणावली से अच्छादित प्रतिमाएं और पार्श्वनाथ जी के साथ यक्ष-यक्षिका धरणेद्र पद्मावती का अंकन भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है।
उक्त जानकारी देते हुए वर्द्धमानपुर शोध संस्थान के ओम पाटोदी ने बताया कि इंदौर महानगर से 95 किलोमीटर रतलाम से 40 किलोमीटर एवं धार जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक नगर बदनावर जिसका प्राचीन नाम वर्द्धमानपुर रहा है के भूगर्भ से प्राप्त हुई अनेक तीर्थंकर प्रतिमाओं के साथ भगवान पारसनाथ की सात प्राचीन प्रतिमाएं भी लगभग 75 वर्ष पहले हुई थी। यें प्रतिमाएं 12-13वीं से लेकर 17-18 सदी की है, जो कि वर्तमान में उज्जैन के जयसिंहपुरा जैन संग्रहालय में संग्रहित हैं । यह प्रतिमाएं अलग-अलग और पाषाण प्रस्तर की बनाई हुई है।
पाटोदी ने बताया कि इसमें एक दुर्लभ प्राचीन प्रतिमा है जो हरे बेसाल्ट प्रस्तर से निर्मित है एवं लगभग 12-13 शताब्दी की है इसमें भगवान श्री पार्श्वनाथ जी के साथ चार तीर्थंकर प्रतिमाएं उत्किर्ण है। सप्त फणो के साथ शीर्ष पर त्रिछत्रावली और दोनों ओर अभिषेक करते हुए गज बनें है। इसी तरह निचे दायीं ओर यक्षिका पद्मावती एवं बायीं ओर यक्ष धरणेन्द्र और मध्य में नवग्रह बनये गये है। इस प्रतिमा में जो यक्ष-यक्षिका के मध्य नवग्रहो के चित्रण के साथ ही तीर्थंकर भगवान का भावाकंन प्रस्तुत किया गया है वह इस प्रतिमा की महत्वपूर्ण विशेषता है जो इसे दुर्लभ बनाता हैं।
इनके अलावा जो पांच प्रतिमाएं हैं उनमें एक-एक पंक्ति का लेख अंकित है जिसमें इनकी प्रतिष्ठा का समय विक्रम संवत 1548 (ई.सन् 1491) उत्किर्ण है। वही एक प्रतीमा 17-18 शताब्दी की है। ये सभी छह प्रतिमाएं थोड़े से रंग के हेरफेर के साथ सफेद संगमरम की हैं। सभी पर सर्प फणावली बनीं हुईं हैं।