बचपन में दे दिए होते सद संस्कार तो अंत समय में नही होता शायद ये हाल
कोटा
अभी हाल ही एक दुखद घटना भारत वर्ष में देखने को मिली। देश के सुप्रसिद्ध उद्योगपति सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रतराय सहारा का निधन हो गया। उनके दो सगे बेटे जो विदेश में थे इंडिया उनके निधन पर दो दिन इंतजार करने के बाद भी नहीं आए। अन्त में उनके पोत्रो द्वारा अंतिम क्रिया की गई। में पारस जैन पार्श्वमणि इस घटनाक्रम पर ये विचार अंतर्मन में आता है कि उन्होंने बचपन में दो नो बेटो को दे दिए होते सद संस्कार तो अंत समय में नही होता शायद ये हाल। हम अपने बच्चों को उच्च से उच्च शिक्षा देने का प्रबंध तो करते हैं परंतु धार्मिक सद संस्कारों का बीजारोपण नहीं करते हैं यदि पढ़ाई के साथ धार्मिक पाठ शालाओ में बच्चो को जरूर भेजना चाहिए। यदि हम बचपन में रोज बच्चों की उंगली पड़कर मंदिर में ले जाते हैं तो एक दिन वो बच्चे जब मां-बाप वृद्ध हो जाते हैं तो उनको चारों धाम की यात्रा तीर्थ की वंदना करने के लिए जरूर ले जायेगे। यह सत्य है इसे नकारा नहीं जा सकता। जब मानव धरती पर आता है तो उसका वजन तीन या चार किलो का होता है और जब मानव इस धरती से जाता है तो उसकी अस्थियां भी उतने ही वजन की विसर्जित की जाती है। यह प्रकृति का कड़वा सत्य है । कई जन्मों का पुण्य उदय जब झोली में आता है तब जाकर मानव जीवन मिल पाता है । अंत मुझको ये लाइन याद आ रही है*क्या लेकर के*
आया बंदे
क्या लेकर के जाएगा
खाली हाथ तू आया है जग में खाली हाथ ही जाएगा
*एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल
जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल
मतलबी है लोग यहां पर मतलबी जमाना
सोचा साया साथ देगा वह निकला बेगाना
छोटा सा तू कितने बड़े अरमान है तेरे मिट्टी का तू सोने के सब समान है तेरे
मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समाएगी
ना सोना काम आएगा ना चांदी आएगी
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी ना सोना काम आएगा ना चांदी आएगी
करोड़ों घरों का सहारा अंत समय में बे सहारा रह गया करोड़ों की दौलत धरी की धरी रह गई
देखो सुंदर काया मिट्टी में मिल गई
राष्ट्रीय मिडिया प्रभारी
पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार