आत्म स्वभाव की अनुभूति करना ही निर्ग्रन्थ साधक का लक्ष्य है आचार्य विमर्श सागर
चौबीस सन्तो के सानिध्य में हो रही जैन समाज कामां में धर्म प्रभावना,युवा वर्ग उत्साहित
कामां के शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में स्थित विजयमती स्वाध्याय भवन में भावलिंगी संत दिगम्बर जैन आचार्य विमर्श सागर महाराज ने कहा कि निर्ग्रन्थ वीतरागी मुद्रा को धारण बहिरंग के कारण नहीं करते हैं अपितु अंतरंग के कारण यह मुद्रा धारण की जाती है। आत्म स्वभाव की अनुभूति करने के लिए ही दिगंबर संत निर्ग्रन्थ वीतरागी मुद्रा को धारण करते हैं वह जानते हैं की आत्म स्वभाव की अनुमति में बाधक तत्व क्या है इसे भेद विज्ञानी साधक अच्छी तरह समझते हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय के परिणाम ही हमारे आत्म शुद्धि में बाधक है और इस अंतरंग तत्व की प्राप्ति हेतु अर्थात आत्म की शुद्धि हेतु वीतराग निर्ग्रन्थ मुद्रा को धारण किया जाता है व्यक्ति परिवार, रिश्ते, संबंध सबको अपना मानता रहता है और उनकी ही सार सभाल में ही लगा रहता है और यही उसकी आत्म शुद्धि के बाधक तत्व हैं जिसे निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधक अच्छी तरह समझता है और अपनी आत्मा में लीन हो जाता है यही भाव लिंगी होता है।
आचार्य ने एक प्रश्न की भावलिंगी क्या होता है? का उत्तर देते हुए कहा कि शारीरिक 28 मूलगुण द्रव्य लिंग होते हैं जैसे निग्रन्थ बनना,परिग्रह रहित होना केशलोंच होना आदि अर्थात द्रव्य लिंग के आश्रय से निर्ग्रन्थ वीतरागी सन्त आत्म स्वभाव की अनुभूति करते है और यही भावलिंगी कहलाता है। अपने आत्म स्वभाव से परिचित होना अर्थात स्वयं की आत्मा का कल्याण करने में लीन हो जाना ही भाव लिंगी कहलाता है।
आचार्य ने समाज को समझाते हुए कहा कि किसी भी कार्य को करने का प्रयोजन उचित होना चाहिए। प्रयोजन बदलने से परिणाम बदल जाता है अतः प्रयोजन की औचित्यता अति आवश्यक है जिसका ध्यान समाज के सभी वर्गों को रखना चाहिए संतो के आगमन पर समाज में संस्कृति का संरक्षण व जुड़ाव होता है और एक नई ऊर्जा का संचार भी होता है एक सच्चा संत ही समाज को सही दिशा दिखाने में कारगर होता है। सभी श्रावकों को केवल तीन बातों पर ध्यान रखना चाहिए सच्चे देव, सच्चे शास्त्र और सच्चे गुरु वही उसके जीवन का कल्याण कर सकते हैं।
धर्म नगरी कामा में आचार्य सुनील सागर महाराज के सानिध्य में भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन हुआ उसके सवा माह बाद ही इतने बड़े संघ का आगमन हुआ है जिससे महती धर्म प्रभावना हो रही है।
Unit of Shri Bharatvarshiya Digamber Jain Mahasabha