राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर गुलाबी नगरी एक प्राचीन धरोहर है जिसमें सांगानेर की प्रसिद्ध प्रसिद्धि पूरे देश में फैली है यहां बड़े-बड़े 400-500 वर्ष प्राचीन अतिशय सुंदर मनोहर जिनालय विराजमान है कुल 7 जिनालय हैं (1) संघीजी जिनालय (2) गोदीकाजी जिनालय (3) भादीचंदजी जिनालय (4)चंद्रप्रभ जिनालय (5) ठोलियान जिनालय(6) अढ़ाई पेढ़ी का जिनालय(7) पटनियान जिनालय। ऐसे एक से बढ़कर एक सुंदर जलाले और उनमें सुंदर सुंदर मनोहरी जिन प्रतिमाएं सभी को आकर्षित करती है। और सम्यक दर्शन कराने में सहयोगी कारण बनती है।
अंकलिकर परंपरा के चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य भगवन श्री सुनीलसागरजी गुरुदेव का दिनांक 30 दिसंबर 2022 को सांगानेर में मंगल प्रवेश हुआ। आचार्य श्री के मुखारविंद से धवला जी पुस्तक 13 की वाचना हेतु पधारे। यहां सांगानेर विराजित सभी जिनमंदिर के दर्शन किए। पूज्य आचार्य भगवन ने जब ठोलियान जिनमंदीर के अंदर प्रवेश किया, तब चल रहे श्रावक श्री सुधीर जी अजमेरा ,प्रदीप जी ठोलिया आदि से कहां यह भूगर्भ मे जिनालय होंगे ऐसा भासित होता है। तब श्रावक को ने कहा हां गुरुदेव बड़े बुजुर्गों से सुना है ,कि आप भूगर्भ में जिनलय है। पर आज तक किसी ने उसके दर्शन नहीं किए।
ठोलीयान जिनालय के मंत्री श्री निर्मल कुमार चांदी काका (गोधा),अध्यक्ष श्री अरुण कुमार जी ठोलिया ,और श्री प्रदीप जी ठोलिया ने पूज्य आचार्य श्री से निवेदन किया कि आपकी बड़ी कृपा होगी ।अगर आप उन भूगर्भ स्थित जिन बिंबो को सभी के लिए दर्शनार्थ बाहर निकालोगे।
आचार्य श्री ने विचार किया और प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान की निर्वाण कल्याणक के अवसर पर भूगर्भ में स्थित जिन बिंदुओं को बाहर निकालने की तारीख सुनिश्चित की ।विशेष साधना और मंत्र साधना के साथ प्रतिमा जी को 3 दिन के लिए बाहर निकाला जाएगा। यह खबर सुनते ही को मैं exitment जागृत हुई। चारों तरफ प्रतिमा जी को देखने कि ललक और आनंद छाया ।मंदिर में रंग रंगोली की गई। पताका, ध्वजा द्वारा जिनालय को सजाया गया। संपूर्ण जयपुर तो क्या देश में और विदेशों में भी टीवी चैनल में मोबाइल फोन व्हाट्सएप आदि माध्यम से खबर पहुंची ।
Fainaly, जिस घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे वह घड़ी आई ।20 जनवरी को प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान का निर्माण कल्याणक महोत्सव का अवसर संघी जी मंदिर में मूलनायक भगवान का अभिषेक हुआ। तत्पश्चात मंदिर प्रांगण में कैलाश पर्वत की संरचना की गई। वहां निर्वाण लाडू चढ़ाकर श्रावको पुण्य संचय किया। और पूज्य आचार्य भगवन का उद्बोधन सुनकर सभी ने पुनः निवेदन किया।
तत्पश्चात आचार्य भगवन ससंघ ठोलीयान जिनालय ले गए। मंत्रोच्चारण के साथ आचार्य भगवन ने भूगर्भ में प्रवेश किया ।स्वयं दर्शन कर केवल 3 दिन के लिए प्रतिमा जी को बाहर ले आए। तीसरे दिन पुनः यथा स्थान विराजित की जाएगी। ऐसी प्रतिज्ञा कर अद्वितीय जिनबिंबो को श्रावकोके दर्शनार्थ बाहर निकाले गए।
चारों तरफ से श्रावकोकि जय जय कारा आदि शब्दों के जय घोष, घंटा नाद बैंड बाजे की ध्वनियां गूंज उठी, सर्वप्रथम कि भगवान की प्रतिमा जो पांच फनों सहित थी, सफेद पाषाण की धर्मनाथ भगवान की काले पाषाण की और पार्श्वनाथ और अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमा अपने आप में मनोहर थी। छोटे से पाषाण पर चौबीसी कुछ प्रतिमा धातु की, कुछ स्वर्ण की चांदी की तो कुछ अष्टधातु की ,नीलम की प्रतिमा भी थी ।प्रतिमाओं पर काफी प्राचीन होने के लक्षण दिख रहे थे ।लगभग 800 वर्ष प्राचीन है ,और 500 वर्ष में प्रथम बार आचार्य भगवन के कर कमलों से भूगर्भ से बाहर निकाली गई। प्रत्येक प्रतिमा को एक-एक करके निहारते हैं ,तो सब की बनावट भिन्न-भिन्न सुंदर आकर्षक है। मनोहारी मूर्तियों को निहारते रहो मन करता है वही बैठकर प्रतिमा जी के अंग अंग नि रखते रहो अद्भुत शांति की अनुभूति होती है। लगभग 100 से भी अधिक प्रतिमा के दर्शन प्राप्त हुए।
प्रतिमाजी को देखकर ज्ञात होता है, कि सांगानेर का इतिहास बहुत प्राचीन है। 816_17 साल प्राचीन जिन बिंब के दर्शन हो रहे हैं ,हो सकता है, चौथे काल की प्रतिमा हो जब प्रतिमा इतनी प्राचीन हो सकती है तो जैन धर्म कितना प्राचीन होगा। इसका अंदाजा लगा सकते हैं। अनादिकाल से वितरागी की जैन धर्म जयवंत होते आया है ।और आगे भी होगा। प्रतिमा जी के दर्शन अतिशय मंगलकारी है । बालक से लेकर वृद्धों तक पुरुष ,महिलाएं युवक युवतियां इन अद्भुत जिनबिंबो के दर्शन कर अपने नेत्र को धन्य कर रहे हैं । 20 ,21 ,22 जनवरी तक ही दर्शन हो पाए थे। फिर दिनांक 22 जनवरी को 4:00 बजे पुनः यथा स्थान विराजित की गई।
सौम्य सर्व विकार भाव रहित, शांत स्वरूप, ध्यान युक्त प्रशांत मुख वाली प्रतिमा के दर्शन पुनः पुनः होते रहे। ऐसी आचार्य भगवान के चरणों में प्रार्थना हमारा और सबका जीवन मंगल हो यही सम्पूर्ण भावना।
-आर्यिका सम्पूर्णमति माताजी