- साधना काल मे गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए झलके अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर के आंसू
- भक्त भाव विभोर होकर बोले जय जय गुरुदेव
- 2600 वर्षो बाद ऐसी तपश्या करने वाले देश के प्रथमचार्य है अन्तर्मना गुरुदेव
- मेने बहुत पुण्य किये जो मेरी कोक से ऐसा लाल जन्मा – गुरुदेव की माता सोभा रानी जी
औरंगाबाद शिकरजी (नरेंद्र /पियुष /रोमिल जैन) – जब आत्मा मरती नही है तो डर किस बात का… ग्रन्थ में लिखे इस वाक्य ने मुझे इस साधना में बहुत सम्भल दिया। इतने बड़े पहाड़ पर कोई नही बस जहा हम हवा और हमारी परछाई थी। तो इस साधना के दौरन एक बात जानी की राजन धर्म ही अकेला है और कुछ नही । इस व्रत की साधना अभ्यास 7 वर्षो से कर रहा हु तब जाकर इस साधना को करने लायक बना हु। ये साधना में नही कर रहा हु ये साधना मेरे गुरु का आशीर्वाद है यह बात तपाश्वि सन्त अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज ने अपने सिंगनिस्क्रित 557 दिन के उपवास व अखंड मौन व्रत साधना के सफल समापन के बाद महापारणा महोउत्सव के दौरान जैन धर्म के सबसे बड़े तीर्थ सम्मेद शिखर जी में उपस्थित भक्तो से कही। उन्होंने कहा कि यह साधना मेने अपने को निहारने के लिए की है उन्होंने अपनी परंपरा के आचार्य संभव सागर जी महाराज के वात्सल्य भाव के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की जिनका बखान करते हुए आखों में करुणा के आंसू आ गये। जिसे देख भक्त भाव विभोर हो गए और जय जय गुरुदेव की जय घोष से पण्डाल गुंजायमान हो गया।
गौरतलब है कि 2600 वर्षो बाद देश के पहले दिगम्बर जैन सन्त ने उस स्वाश्वत तीर्थ राज सम्मेद शिखर जी स्वर्ण भद्र पारस नाथ टोक की गुफा में 557 दिन की साधना की जो वर्षो पहले तीर्थंकर किया करते थे। अपनी सफल साधना के बाद जब अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज स्वर्ण भद्र कूट से मधुवन पधारे तो गुरुदेव की एक झलक पाने को सम्पूर्ण मधुवन निवासी सहित देश विदेश की के भक्त पकल पावड़े बिछाए मार्ग में खड़े थे। बेंड बाजो ढोल नगाड़ों के साथ सांस्कृतिक नृत्य करते आदिवासी समुदाय के कलाकारों ने उपस्थित जनमानस का मन मोहलिया।
मधुवन वासियो पूज्य गुरुदेव का गरमझोशी से स्वागत किया गुरुदेव पंडाल पहुचे जहाँ 557 दिन के अखंड मोन के बाद गुरुदेव की दिव्य ध्वनि निखर कर भक्तो लिए आई। इस अवसर गुरुदेव ने अपनी साधना के अनुभव सभी से साझा किए। जानकारी आयोजन के मीडिया प्रभारी रोमिल जैन नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल ने दी ईस अवसर पर तरुन भैया रविद्र कीती स्वामी न्यायमूर्ती कैलासचंद चांदीवाल औरंगाबाद वृषब जैन अहमदाबाद आकाश जैन सौनकच डाँ संजय जैन इंदर बिटु जैन भोपाल मनोज चोधरी विपुल जैन सूरेद्र जैन कैलास जैन विवेक शिकरचंद पहाडियाँ गंगवाल कोलकाता ललित पाटणी संजय कासलीवाल महेंद्र ठोले विनोद लोहाडे औरंगाबाद नितेश पाटणी इचलकरजी महावीर बडजाते विलास पहाडे पैठन अशोक डोसी संजय पापडीवाल नरेंद्र अजमेरा पियूष कासलीवाल रोमिल जैन उपथित थे
साधना काल की रोचक बात –
:- सम्पूर्ण 557 दिन की साधना काल मे गुरुदेव 19 बार शौच व 42 बार लघु शंका को गए
:- चातुर्मास काल मे गुफा में इर्द गिर्द 7 बार बिजली गिरी लेकिन साधना के चलते गुरुदेव सकुशल रहे। जबकि एक बार बिजली गिरने से गुरुदेव की गुफा के दरबाजा क्षतिग्रस्त हो गया था।
:- अपने साधना काल मे गुरुजी गुफा के ऊपर छत लर हमेशा की तरह 2 घण्टे का सामायिक( ध्यान) करते थे अचानक बारिश आई ओर ओले गिरने लगे । जिसके बाद वे बेहोश हो गए पहाड़ पर बन्दना करने आये 2 बच्चो ने उन्हें सम्भाल जिसके बाद डॉ आये उन्होंने देखा गुरुदेव की तबियत ज्यादा खराब है इंजेक्शन लगाना पड़ेगा जब गुरुदेव बोले साधना काल मे मृत्यु स्वीकार है लेकिन व्रत का भेदन नही करूंगा।
:- धर्म को व्यापार नही बनने दूंगा इस हेतु महापारणा भी स्वर्ण भद्र कूट पारस नाथ टोक पर ही लिया।
:- विश्व मे चल रहे श्री सम्मेद शिखर जी मुद्दे पर आदिवासी समुदाय का मन जीत उन्हें सुख की राह दिखाई इस हेतु सम्पूर्ण मधुवन का आदिवासी समुदाय गुरुदेव के प्रति आत्मीय भाव से कार्य किया।
:- लगातार 18 महीनों तक अखण्ड मौन बिना बोले एकांत वास में रहकर जैन धर्म के सेकड़ो गर्न्थो का स्वाध्याय किया।
:- जैन धर्म मे भगवान महावीर स्वामी की बाद उग्रतम तपश्या करने वाले देश के पहले अन्तर्मना सन्त है।
:- साधना काल की सबसे महत्वपूर्ण बात तीन बात कही
- पहली मन पर भरोसा मत करो कब बदल जाये कहा नही जा सकता है
- दूसरी अपनी स्वास पर भरोसा मत करो कब छूट जाए पता नही
- तीसरी अपने पुण्य पर भरोसा मत करो इसे जितना बड़ा सको बढ़ाओ न जाने कब पाप का उदय आजाये पता नही।
सौम्य मुर्ति मुनि पीयूष सागर ने कहा –
अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी गुरूदेव ने 557 दिनों में 496 दिन निर्जल उपवास और (61 पारणा यानि आहार लिया)। अन्तर्मना आचार्य श्री ने पारसनाथ स्वर्ण भद्र कूट पर महा पारणा करके एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया ।कमेटी की सम्पूर्ण व्यवस्थाये धरी की धरी रह गई। उन्होने कहा -कि मेरी तप साधना भीड के लिये नही ,नाही सुन्दर पण्डाल के लिये थी वह तो स्वयं के निखारने और परमात्मतत्व को पाने के लिये थी ।
अन्तर्मना गुरूदेव ने सन्यास के 35 वर्षों की साधना काल में, भारत के तीस राज्यों में भ्रमण किया, एक लाख किलोमीटर से ज्यादा पग विहार किया। अहिंसा संस्कार पद यात्रा के माध्यम से लाखों लोगों को व्यसन मुक्त, जीवन जीने की प्रेरणा दी और लाखों लोगों ने अहिंसक, व्यसन मुक्त जीवन जीने का संकल्प लिया। जाती, धर्म, पन्थ, सम्प्रदाय की दीवारों से मुक्त होकर जीवन जीये।
आज मुझे लग रहा कि मैने साक्षात महावीर को जन्म दिया है। सौभाग्य वश अपने जीवन में मेने कोई अच्छा पुण्य किया है। जो भगवान ने मेरे कोक मे प्रसन्न सागर जैसा लाल दिया। यह बोलते हुए माँ की आँखे भर आईं……- अन्तर्मना गुरुदेव की माता शोभारानी जी।