अंकलीकर परम्परा के सम्वेदन दर्शी

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अंकलीकर परम्परा के सम्वेदन दर्शी, भक्ति दर्शी, अनासक्त दर्शी, सूक्ष्म दर्शी, जिनधर्म के धुरिकीर्तनीय धाम, महाव्रतों के मूर्ति मान, आदर्श विग्रह, दया, करूणा, तप-त्याग-संयम के अगाध-अपार सागर, आर्ष परम्परा के कुशल संवाहक, सहज वात्सल्य की जीवन्त तप प्रतिमूर्ति — अंकलीकर आचार्य श्री आदि सागर जी, आचार्य श्री महावीर कीर्ति, आचार्य श्री विमल सागर की यशस्वी सन्त परम्परा के कुल वसन्त के श्रमण कुल तिलक, वीतराग पथ की कुशल पथिक, सिद्धान्त चक्रवर्ती, तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज के पाद पदमों में अन्तर्मन से अन्तर्मना के कोटिशः नमन वन्दन प्रणाम 👏

👉 हे पावन परमेष्ठी — आप अनुत्तर साम्ययोगी है, आप का मुख मण्डल समता, प्रशान्त चित्तता आपकी चेतना को, राग-द्वेष की उर्मियों से छू भी नहीं पाती। आपकी हर स्वांस-प्रश्वास में वीतराग वाणी अनुगुंजित होती रहती है।

👉 हे महातपस्वी — आप एक ऐसी दिव्य विभूति है, जिन्होंने आत्म कल्याण सहित जन जन को आत्म कल्याण के लिए प्रतिबोधित किया है।

👉 हे तप विभूति के श्रमण राज — आप सन्तों में अग्रणी, तपस्वियों में धुरिकीर्तनीय तथा शील-साधना प्रज्ञा की समन्वित युति के धारक है। आपका मन, इन्द्रियां-वृत्तियां, चित्त सब कुछ शान्त है, आप शान्त संकल्प के तप साधक है।

👉 हे रत्नत्रय महोदधि — आप ज्ञान-विज्ञान-आत्मज्ञान इन तीनों ज्ञान सरणियों से परिपूर्ण है।

👉 हे अखण्ड महाव्रतनिष्ठ — आपका व्यक्तित्व ऊर्जस्वी, वर्चस्व, तेजस्वी, दीप्ति मान, महाव्रतनिष्ठ एवं रत्नत्रय-साधना के गुण रत्नों से परिपूर्ण, नित्य सम्वर्धन धुरीकीर्तनीय गुण से लसित उदार लावण्य-ललित, एवं उत्साह से प्रेरित, संयम, शील के धर्म महीरूह, के रूम में, आविर्भूत हुये हैं।

👉 हे तपस्वी सम्राट — आपका सम्पूर्ण जीवन तपस्या निर्जरा के बोध से अनु प्राणित हो। आपने 10 हजार से ज्यादा उपवास सफलता के साथ निर्द्वन्द्व भाव से आत्मस्थ होते हुये सम्पन्न किये। समस्त रसों का परित्याग कर रसना इन्द्रिय का निग्रह कर नित्य आत्म विशुद्धि को संवर्धन शील परिणामों को वर्धमान किया।

👉 हे पूज्य प्रवर — मेरे सभी व्रत, तप उपवास की सुदीर्घ साधना में संबल रहा। मेरे तप की सुसंपन्नता हेतू आपका वात्सल्य हर क्षण हर पल उर्जित करता रहता है।

आपकी उत्तम समाधि की पावन बेला पर मेरे अनन्त प्रणाम स्वीकार करें 👏🙏

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