अंग्रेजी वर्ष 2023 को अलविदा, 2024 का स्वागत। नया साल दुनिया में सबसे अधिक मनाया जाने वाले दिनों में से एक है। इस दिन को अलग-अलग रीति-रिवाजों और परंपराओं से आकार दिया जाता है। इस दिन पर नए साल के मंगलमय गुजरने की ख़ुशी में और आने वाले साल की अच्छी कामना के लिए संकल्प लिया जाता है। यूं तो पूरे विश्व में नया साल अलग-अलग दिन मनाया जाता है और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भी नए साल की शुरूआत अलग-अलग समय होती है। लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी से नए साल की शुरूआत मानी जाती है। चूंकि 31 दिसंबर को एक वर्ष का अंत होने के बाद 1 जनवरी से नए अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष की शुरूआत होती है। इसलिए इस दिन को पूरी दुनिया में नया साल शुरू होने के उपलक्ष्य में त्यौहार की तरह मनाया जाता है। चूंकि साल नया है, इसलिए नई उम्मीदें, नए सपने, नए लक्ष्य, नए आईडियाज के साथ इसका स्वागत किया जाता है। नया साल मनाने के पीछे मान्यता है कि साल का पहला दिन अगर उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाए, तो साल भर इसी उत्साह और खुशियों के साथ ही बीतेगा।
भारत में नववर्ष :
भारत कैलेंडरों के मामले में कम समृद्ध नहीं है। इस समय देश में विक्रमी संवत, शक संवत, हिजरी संवत, फसली संवत, बांग्ला संवत, बौद्ध संवत, जैन संवत, खालसा संवत, तमिल संवत, मलयालम संवत, तेलुगु संवत आदि अनेक प्रचलित हैं। इनमें से हर एक के अपने अलग-अलग नववर्ष होते हैं। देश में सर्वाधिक प्रचलित संवत विक्रमी और शक संवत हैं। माना जाता है कि विक्रमी संवत गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उज्जयनी में शकों को पराजित करने की याद में शुरू किया था। यह संवत 58 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। विक्रमी संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। इसी समय चैत्र नवरात्र प्रारंभ होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन उत्तर भारत के अलावा गुड़ी पड़वा और उगादी के रूप में भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष मनाया जाता है। सिंधी लोग इसी दिन चेटी चंद्र के रूप में नववर्ष मनाते हैं। शक सवंत को शालीवाहन शक संवत के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि इसे शक सम्राट कनिष्क ने 78 ईस्वी में शुरू किया था। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में अपना लिया। सबसे प्राचीन संवत की बात की जाय तो सबसे प्राचीन संवत जैन संवत- वीर निर्वाण संवत है, इसके पुख्ता प्रमाण भी हैं। जैन परंपरा में भगवान महावीर स्वामी के निर्वाणोत्सव के अगले दिन से नए वर्ष का शुभारंभ माना जाता है।
पश्चिम से आये अंग्रेजी वर्ष के पहले दिन का स्वागत हम भोग, विलास के आयोजनों से करते हैं। इस दिन खासतौर से हमारा युवा वर्ग न जाने कितने अनैतिक कार्यों में लिप्त होकर इसका स्वागत करता है। जबकि होना यह चाहिए कि हम नव वर्ष का स्वागत नए संकल्प और अच्छे कार्यों के साथ करें। इस दिन को पूजा, प्रार्थना और परोपकार के कार्यों लगाना चाहिए ताकि पूरा वर्ष हमें एक नई दिशा दिखाए, उन्नति के नई सूत्र हमें प्राप्त हों पर अफसोस हमारा युवा वर्ग पश्चिमी आवोहवा इतना बह गया है कि वह अपना विवेक खोता जा रहा है।
पश्चिमी संस्कृति हमारे संस्कारों का गला घोंट रही है।आज हम आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागे जा रहे है। अंग्रेजी सभ्यता में गुम होकर अपने गौरव व सांस्कृतिक मूल्यों को खोते जा रहे है।
नया वर्ष मनाने की सार्थकता तो तभी है जब हम इस दिन असहाय की मदद करें, अपने धन का सदुपयोग करें , जरूरतमंदों के सहारा बनें, प्रभु प्रार्थना करें कि यह वर्ष खुशियों से भरा हो, दुःखद अतीत वापस न आये, पर्यावरण के संरक्षण में योगदान , माता पिता के सम्मान , स्वच्छता की सपथ लेने के संकल्प लें।
हमारे पूज्य संत भी अब युवा पीढ़ी को जागरूक कर रहे हैं। 1 जनवरी को अब अनेक जगह विविध धार्मिक आयोजन होने से युवा पीढ़ी को अंग्रेजी नव वर्ष के प्रथम दिवस भोग-विलास की जगह धर्म से जोड़ रहे हैं, यह अच्छी पहल है।
नव वर्ष का दिन सभी लोगों को बताता है कि अब हमें बीते हुए साल को खुशी खुशी विदा कर देना चाहिए और खुशी-खुशी नए साल का स्वागत करना चाहिए। जीवन में हमेशा अतीत को भुलाकर वर्तमान के विषय में सोचना चाहिए जिससे हमारा आने वाला भविष्य उज्जवल बने। वर्तमान दौर में देश की आबोहवा बदल रही है।
मैं यह नही कहता कि हम दूसरों की संस्कृति और सभ्यता का अपमान करें। हम तो उस संस्कृति से आते है जहां बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का शोर गूँजता है। लेकिन, इसका ये मतलब कतई नहीं कि हम आधुनिकता के नाम पर अपनी ही संस्कृति को भूला दें।
2023 हमसे बिछड़ गया है, यादों के झुरमुट में कुछ पन्ने और जुड़ जाएंगे…खट्टी मिट्ठी यादों के साथ कैलेंडर बदल गया है।