औरंगाबाद (नरेंद्र / पियूष)- जैसे जैसे – भौतिक सुख संसाधन बढ़ते जा रहे हैं, वैसे वैसे – ज़िन्दगी का सफर कठिन होते जा रहा है..! हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। वक्त-वक्त पर बदलता रहेगा। लोग भी बदलते रहेंगे। जैसे – अकेले शुरू किया था जीने का सफर, वैसे ही अकेले खत्म करना पड़ेगा जीने का सफर। इस सफर में कुछ यादें साथ रहेगी, छूटे हाथ और टूटे रिश्ते ही यादों के सफर के हमराही होंगे। क्योंकि आज कल के रिश्ते किराये के मकान जैसे हो गये हैं।उन्हें कितना ही सजा लो, वो कभी अपने नहीं होते। इसलिए *आज के आदमी को जितना मरने का भय नहीं, उससे ज्यादा अपनों के बदल जाने का भय है।क्योंकि हमारे ख्वाबों का घरौंदा दूसरे नहीं, अपने ही तोडते हैं। हम अपने मन और भावों को सदा स्थिर रखें।
सौ बात की एक बात –
अच्छे लोगों का साथ, सहयोग और समर्थन कभी कभी लड़खड़ाती ज़िन्दगी को भी दौड़ना सीखा देती है, और छोटे लोगों से भी बडे़-बडे़ काम करवा देती है..!। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद