इंदौर
संस्कारधानी जबलपुर के मस्तक पटल पर गौरव का चंदन तो उसी दिन लग चुका था, जब 24 मई 1986 के दिन, पिता राजेश और माँ वीणा की कोख में जन्म हुआ था “सौभाग्य” का…
वैसे तो इस पुत्र का नाम सन्मति रखा गया था, पर कोई नहीं जानता था कि यही सन्मति एक दिन जिनशासन के यश आकाश को प्रकाशित करने वाला अद्वितीय आदित्य बन कर उदित होगा, एक दिन अपनी साधना और वात्सल्य के बल पर सहस्रों लोगों के जीवन में “सौभाग्य” बन कर प्रवेश कर जायेगा।
परंतु हम ने उनके चमत्कारों पर या लाखों लोगों द्वारा हो रहे उनके जय-जयकारों के सामने अपना मस्तक नहीं टेका, हम ने किसी भय या स्वार्थ से उन्हें अपना गुरु नहीं माना…
हम ने तो बहुत गहराई से समझा उस व्यक्ति को जिसने M.B.A. (Gold Medalist) और B.B.A. जैसी शैक्षिक योग्यता, संपन्न एवं समृद्ध परिवार, स्वर्ण-रजत आभूषणों के प्रतिष्ठित व्यापार और सुकुमारिता से भरे भविष्य की कामनाओं को एक पल में किसी तृण के समान छोड़ देने का साहस किया। जिसके पास विलासितापूर्ण जीवन जीने के अनेकों विकल्प मौजूद थे, जिसकी प्रखर दैहिक आभा, अप्रतिम सुंदरता, अद्वितीय बुद्धिलब्धि और पुण्य-शक्ति के आगे सभी सांसारिक सुख किसी चरण चंचरिक की तरह उसके सामने नतमस्तक होने को तैयार बैठे थे…
परंतु इन सब मोह और सुखों के आगे तो भोगी झुका करते हैं योगी नहीं, सन्मति भैया ने जो पथ चुना था वह इन सब से ऊपर था-श्रमण संस्कृति का निर्ग्रंथ पथ, और फिर सन्मति भैया ने 08 नवम्बर 2011 को गुरु के प्रति समर्पण के अध्यात्म योगी*“विशुद्ध-सागर” में ऐसी डुबकी लगाई कि सागर के अंदर जो गया वह थे “सन्मति”, पर जो बाहर आये वह थे “आदित्य”…*
जिन्होंने हम जैसे अनेकों को सत्पथ दिखाया, हम जब जब गिरने लगे उनके शब्दों ने हमें वापस उठाया, उन्होंने हमें कला सिखाई कि जीवन कैसे जिया जाता है, उन्होंने हमें बताया व्यक्ति को व्यक्तित्व कैसे बनाया जाता है। आज आपके दीक्षा दिवस पर हम सभी मंगल भावना भाते हैं कि आप निरंतर श्रमण संस्कृति को नित नये आयामों से गौरवान्वित करते हुए नमोस्तु शासन जयवंत हो का गुंजायमान करते हुए जैन धर्म संस्कृति की पताका को लहराते रहे इन्हीं शुभ भावों के साथ राजेश जैन दद्दू, पारसमणी जी, डॉ जैनेन्द्र जैन, आजाद जैन, हंसमुख गांधी टीके वेद अशोक खासगीवाला अतिशय जैन चिराग गोधा हनी जैन अमित जैन विकास जैन एवं श्रीमती मुक्ता जैन ममता खासगीवाला एवं सभी गुरु भक्त।