आज सबसे बड़ी दौलत सन्तान है- प्रसन्न सागर जी महामुनिराज

0
180

औरंगाबाद नरेंद्र /पियूष जैन परमपूज्य परम तपस्वी अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज सम्मेदशिखर जी के स्वर्णभद्र कूट में विराजमान अपनी मौन साधना में रत होकर अपनी मौन वाणी से सभी भक्तों को प्रतिदिन एक संदेश में बताया कि जीने और जीतने की इच्छा किसके भीतर नहीं है-? सबके भीतर है लेकिन सब हारे हैं, ना जी पा रहे हैं, ना जीत पा रहे हैं..!

एक शब्द पढ़ने में आया सर्वहारा — जो अपने दुर्गुणों को नहीं जीत पाया, वह सर्वहारा है। जो अपने आप से हार गया, वो सर्वहारा है।जो अपनी इच्छाओं को नहीं जीत पा रहा है, वह जीते जी मरा है। सम्राट कहो या धनपति – वही है जिसने अपनी इच्छाओं को जीत लिया है। जिसने इच्छाओं को समाप्त करके संयम रूपी रत्न प्राप्त कर लिया है, वही असली धनपति, धर्मात्मा है, और जो इससे रहित है, वो धनवान होने के बावजूद भी दरिद्री है।

एक दुर्गुण हमारे हजारों-हजार सद्गुणों का सत्यनाश कर देता है।रावण के पास लाखों-लाख सद्गुण थे, लेकिन एक दुर्गुण ने सब गुणों का खात्मा कर दिया। आज सबसे बड़ी दौलत सन्तान है।यदि सन्तान योग्य और सद्गुणों से सम्पन्न है, तो माता पिता की इससे बड़ी पूंजी दूसरी कुछ नहीं और यदि सन्तान अयोग्य, दुर्गुणी, व्यसनी, व्यभिचारी है, तो इससे बड़ी निर्धनता और दरिद्रता दूसरी कुछ हो ही नहीं सकती।

– सौ बात की एक बात –

सन्तान योग्य-सद्गुणी है तो वह धनवान है और अयोग्य दुर्गुणी है तो इससे बड़ी निर्धनता दूसरी कुछ नहीं…!!!नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here