आध्यात्मिक संत श्री विनोबा भावे की 41वी पुण्य तिथि

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विनोबा भावे एक महान स्वतंत्रता सेनानी तो थे ही, लेकिन वे एक संत के रूप में बहुत ज्यादा जाने गए. गांधी जी के करीब रह कर भी राजनीति से दूर ही रहे. गांधीवादी होने के साथ समाज सेवा को उन्होंने सर्वोच्च प्राथमिकता दी. आजादी मिलने और गांधी जी के जाने के बाद उन्होंने गांधीवादी परंपरा को अक्षुण्ण रखा. भूदान आंदलोन, गौहत्या पर प्रतिबंध जैसे कई मुद्दों पर उनका संघर्ष उनकी आचार्य की उपाधि को चरितार्थ करता है. उन्होंने अपने अंतिम समय में समाधी मरण अपना कर १५ नवंबर को अपने प्राण त्याग दिए थे.
भारत की आजादी के लिए महात्मा गांधी ने खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया था, लेकिन इसके बाद भी वे समाज के उत्थान के लिए बहुत सोचा और किया करते थे. आजादी के बाद वे देश को समय नहीं दे सके. लेकिन उनकी विचारों और कार्यों को बढ़ाने का काम उनके ही साथी आचार्य विनोबा भावे ने किया. एक प्रसिद्ध गांधीवादी समाज सुधारक नेता रहे विनोबा ने महाराष्ट्र के भूदान आंदोलन जैसे कई समाज सुधार के लिए अपना योगदान दिया. १५ नवंबर को उनकी पुण्यतिथि पर देश उनके योगदान को याद कर रहा है. अपने अंतिम समय में उन्होंने समाधी मरण को स्वीकार किया था
ज्ञान का भंडार थे बिनोबा
विनायक नरहरि भावे का जन्म ११ सिंतबर १८९५ को महाराष्ट्र के कोंकण के गागोदा गांव में चितपाव ब्राह्मण परिवार में हुआ था. विनोबा पर उनकी मां रुकमणी बाई से उन्हें धार्मिक शिक्षा मिली. मां से उन्हें गुरू रामदास, संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव, और शंकराचार्य की कथाएं सुनने के अलावा के रामायण, महाभारत की कहानियां, उपनिषदों के तत्वज्ञान भी मिले. हाईस्कूल में फ्रेंच सीख कर उन्होंने साहित्य के साथ संस्कृत पढ़ वेद उपनिषद भी पढ़े
अपने लिए सही राह की तलाश
विनोबा का आधात्म की ओर बचपन से ही झुकाव रहा था. हाई स्कूल में इंटर की परीक्षा के लिए वे मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी छोड़ कर दूसरी गाड़ी में बैठ कर आधात्मिक यात्रा पर हिमालय के लिए निकल पड़े. अपने ज्ञान की तलाश में विनोबा बहुत समय तक काशी में ही रहे. वहीं समाचार पत्रों में गांधीजी के बारे में पढ़कर उन्हें लगा कि गांधी जी उनके लिए मार्गदर्शक हो सकते हैं. उन्होंने गांधी जी को पत्र लिखा और आमंत्रण मिलने पर वे तुरंत अहमदाबाद चल दिए.
७ जून १९१६ को विनोबा और गांधी जी की पहली मुलाकात हुई थी. इसी मुलाकात ने ही दोनों को अभिन्न मित्र बना दिया था. विनोबा उस समय हिमालय पर जाकर तप करना और की थी, बंगाल के क्रांतिकारियों से भी मिलना चाहते थे. गांधीजी से मिलने पर उन्हें सही राह मिलने का भान हो गया. वहीं गांधी जी ने कहा कि उन्हें विनोबा पहले ऐसे इंसान लगे जो कुछ देने आए थे.
वर्धा बनी उनकी कर्मभूमि
विनोबा ने हमेशा गांधी जी के कार्यों को आगे बढ़ाया लेकिन वे राजनैतिक रूप से कभी पटल पर दिखाई ही नहीं दिए. पूरे देश भर में अहिंसक सैनिक तैयार करने के लिए गांधी जी ने विनोबा को वर्धा भेजा. जहां उनकी महाराष्ट्र धर्म नाम से मराठी में प्रकाशित होने वाली पत्रिका बहुत लोकप्रिय हुई. और वर्धा ही उनकी कर्मभूमि हो गई और आजादी तक वे आचार्य और संत के रूप में पहचाने जाने लगे थे.
गांधी जी के बाद
गांधी जी के निधन के बाद विनोबा उनकी विरासत को आगे बढ़ाते रहे. १९५१ में महाराष्ट्र में भूदान आंदोलन उनके सबसे बड़े योगदान के रूप में जाना जाता है. इस स्वैच्छिक सुधार आंदोलन में सामाजिक स्तर पर बदलाव के प्रयास किए गए. इसके अलावा विनोबा ने सर्वोदय समाज की स्थापना की.
मृत्यु का वरण
आजादी के बाद का अपने जीवन का बाकी हिस्सा विनोबा ने वर्धा में पवनार के ब्रह्म विद्या मंदिर आश्रम में गुजारा. अंतिम दिनों में उन्होंने अन्न जल त्याग दिया था और समाधी मरण को अपनाया था जिसे जैन धर्म में संथारा भी कहा जाता है. १५ नवंबर १९८२ को उन्होंने अंतिम सांस ली थी. उनके अंतिम संस्कार समारोह में शामिल होने लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने मॉस्को यात्रा तक स्थगित कर दी थी.
विनोबा को १९५८ में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया था. उनकी मृत्यु के अगले साल ही उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. उन्होंने यूं तो बहुत सी किताबें लिखी, लेकिन श्रीमदभगवत गीता का मराठी भाषा में किया गया रूपांतरण बहुत प्रसिद्ध है जो उन्होंने अपनी मां के लिए विशेष तौर पर किया था.
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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