एक संत अरिहंत सा आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी गुरुदेव के समता पूर्वक समाधि पर भावपूर्ण विनयांजलि सभा के कार्यक्रम का आयोजन ऋषभ भवन में रखा गया आचार्य श्री 108 निर्भय सागर जी गुरुदेव ससंघ मुनि श्री 108 विनय सागर जी गुरुदेव ससंघ ने अपने भाव प्रकट कर पूज्य गुरुदेव विद्यासागर जी को अपनी अपनी विनयांजलि प्रकट की मुनि श्री विनय सागर जी गुरुदेव ने बताया कि आचार्य श्री 36 मूल गुणों के धारी ने छत्तीसगढ़ की धरा पर अपने सारगर्भित जीवन से मृत्यु को महोत्सव बनाने का उत्कृष्ट संदेश देते हुए, रत्नत्रय का पालन करते हुए, यम संलेखना समतापूर्वक धारण की और तीन दिनों के उपवास उपरांत अरिहंत भगवान का स्मरण करते हुए ओम शब्द के उच्चारण के साथ ब्रह्मलीन हुए। इसके बाद आचार्य श्री 108 निर्भय सागर जी गुरुदेव ने भी विद्यासागर जी के बारे में बताते हुए कहा कि आचार्य श्री ने समस्त मानव समाज के लिए धर्म प्रभावना की वहीं राष्ट्र हित में इंडिया नहीं भारत बोलो का नारा भी बुलंद किया जायेगा। उन्होंने भारत की शिक्षा के स्तर को उत्कृष्ट एवं संस्कारित करने के लिए प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ की स्थापना की तो देश को आत्मनिर्भर और अहिंसक रोजगार की दिशा में पहल करने के लिए चल चरखा के माध्यम से कई हथकरघा का आशीर्वाद भी दिया। सैकड़ो गौशाला आचार्य श्री के आशीर्वाद से संचालित हो रही है। उन्होंने समाज सुधार के लिए तिहाड़ जेल में भी जैन धर्म की अलख जगाते हुए ब्रह्मचारिणी दीदियों के माध्यम से हथकरघा संचालित कर अपना आशीष प्रदान किया। आचार्य श्री द्वारा रचित मुकमाटी जैसी अलौकिक पुस्तक लिखी जिसपर ढाई सौ लोगों से भी अधिक लोगों ने पीएचडी की और पूरे विश्व को अहिंसक और आत्मज्ञान के लिए प्रेरित होने का आशीष प्रदान किया। आज शारीरिक रूप से वह हमारे साथ नहीं है लेकिन उनके विचारों की उत्कृष्ट श्रृंखलाओं में से किसी एक का भी अनुसरण हमारे जीवन को मोक्ष मार्ग की ओर प्रशस्त करने के लिए प्रभावी होगा। आचार्य विद्यासागर महाराज को 25 फ़रवरी रविवार को पूरे भारत वर्ष में निवासरत जैन समाज एक साथ विनयांजलि देगा। आचार्य विद्यासागर महाराज को विनयांजलि देकर समाज के लोग गुरुवर के प्रति कृतज्ञ व्यक्त करेंगे। आचार्य विद्यासागर महाराज ने मुनि समय सागर महाराज को उत्तराधिकारी घोषित किया है। मुनि समय सागर महाराज चंद्रगिरी तीर्थ में विराजमान हैं। जैन समाज के रविसेन जैन ने बताया कि विद्यासागर महाराज 18 फरवरी को जैन आगम की श्रेष्ठ चर्या को अंगीकार करते हुए समाधिस्त होकर ब्रह्मलीन हो गए, जिनकी विनयांजलि सभा रविवार को सकल जैन दिगंबर जैन मंदिर द्वारा ऋषभ भवन में सुबह 10.30 बजे आयोजित की गई है।
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