परम पूज्य जन-जन के आराध्य आस्था के केंद्र चतुर्थ पट्टा धीश आचार्य भगवन श्री सुनील सागर जी गुरुदेव के सानिध्य में वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमल सागर जी गुरुदेव का 28वा समाधि दिवस दुर्गापुरा जयपुर में मनाया गया।
इस अवसर पर समाज ने 64 रिद्धि विधान कर पुण्य अर्जन किया। प्रातः कालीन सभा में मंगल क्रिया के पश्चात जन समुदाय को उद्बोधन करते हुए आचार्य श्री कहते हैं। विमल ही तन मन विमल ही जीवन विमल ही जिनका नाम है ।
वात्सल्य मूर्ति विमल सिंधु को बारंबार प्रणाम है ।। वाणी के जादूगर, तपस्या की शिखर ,खंड विद्या धुरंधर, वात्सल्य के भंडार थे। आचार्य श्री महावीर कीर्ति महाराज जी से दीक्षा लेकर अनेक शिक्षाएं ग्रहण की उन्होंने अटक से कटक कहो या कश्मीर से कन्याकुमारी तक पदविहार किया। पिता बिहारीलाल और माता कटोरी बाई थी।
उन्होंने शिक्षा के लिए कई स्कूल खोले। गुरु की स्मृति में विमल सागर जी में विद्या के साथ वात्सल्य भी था। बाल ब्रह्मचारी व्रत को कठोरता से पालन किया ।किसी ने पूछा आपको अकेलापन नहीं महसूस होता उन्होंने जवाब दिया कि अकेला आया था अकेला जाउगा फिर भी मानता हूं कि धर्म पिता है, क्षमा माता ,है दया भार्या है ।गुण मित्र ,पुत्र है । यही मेरा कुटुंब है किसी और की कल्पना करने से शांति भंग होती है। इस कुटुंब में रहोगे तो शांति आनंद बना रहेगा ।आत्मा को पहचान कर आत्मा की शुद्धि के राह पर चलने के प्रयास करें यही मंगल भावना।