2550 वर्ष बाद भी प्रासंगिक है भगवान महावीर के उपदेश

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रायपुर, दिनांक 14 जनवरी। आज स्थानीय सिविल लाइन स्थित वृंदावन हॉल, रायपुर में भगवान महावीर के 2550 वें निर्वाण वर्ष के उपलक्ष में “भगवान महावीर और उनके लोक कल्याणकारी उपदेश” विषयक संगोष्ठी आयोजित की गई।
कार्यक्रम संयोजक कैलाश रारा के अनुसार श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा एवं निर्ग्रन्थ सेंटर ऑफ आर्कियोलॉजी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति गौतम चौरडिया, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति बलदेव भाई शर्मा, मानवाधिकार आयोग के सदस्य नीलम सांखला, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज एवं दैनिक विश्व के संपादक प्रदीप जैन ने भाग लिया।
मुख्य वक्ता गौतम चौरडिया ने अपने संबोधन में कहा कि भगवान महावीर ने विश्व व्यवस्था को जड़ एवं चेतन दो शब्दों में परिभाषित कर दिया। प्रभु महावीर के सर्वकालिक उपदेश आज 2550 वर्ष बाद भी उतने ही प्रासंगिक है जितने उनके काल में हुआ करते थे। कुलपति बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि महापुरुषों के उपदेश किसी एक धर्म विशेष के लिए नहीं बल्कि जन-जन के लिए हुआ करते हैं। मानवाधिकार आयोग के सदस्य नीलम सांखला ने बतलाया कि प्रभु श्री महावीर ने कहा है कि जो चीज़ अपनी नहीं उसका मोह कैसा इसलिए पदार्थ में आसक्ति छोड़ निर्लिप्त भाव से जियें। वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज ने एक मुक्तक के माध्यम से जैन धर्म को समझाते हुए बतलाए कि- “सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय। इनको जिसने जाना वह बना जैन अजेय।।” सभा के प्रांतीय अध्यक्ष एवं दैनिक विश्व के संपादक प्रदीप जैन ने कहा कि जैन धर्म का ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम’ का विचार कालजयी सिद्धांत है। तीर्थ संरक्षिणी महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ज्ञानचंद पाटनी ने कहा कि हमारे लिए यह गौरव की बात है कि आज विश्व के विद्वान चिंतक जैन धर्म की उपवास परंपरा पर शोध कार्य कर रहे है। महिला महासभा की प्रांतीय अध्यक्षा उषा गंगवाल जो कि एक ज्योतिषाचार्य है ने कहा कि नव ग्रहों का तो उपाय है किंतु परिग्रह का कोई उपाय नहीं है, एकमात्र संयम ही रास्ता है। ऋषभदेव जैन मंदिर के पूर्व ट्रस्टी प्रकाश सुराणा ने कहा कि हमारे माध्यम से विश्व के सम्मुख जैन धर्म का सशक्त संदेश तभी जाएगा जब हम एक बने और अपने आचरण से नेक बने। पाटनी फाउंडेशन के अध्यक्ष सुरेंद्र पाटनी ने कहा कि जिन्होंने इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली वो जिन है और वह ही पूज्य है तथा उन्ही का मार्ग अनुशरणीय है। फिल्म निर्माता संतोष जैन ने कहा कि सभी मुख्य वक्ताओं के विचार सुनने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यदि हम धर्म को चर्चाओ से ऊपर उठकर चर्या का विषय बनाएंगे तो निश्चय ही सार्थक परिणाम प्राप्त हो सकेंगे। स्वाध्यायी शरद जैन ने कहा कि जहां शांति है, वहां संलेखना है और जहां सम्यक संलेखना है वहां मुक्ति है। कवि राजेश जैन राही ने अपनी कविताओं के माध्यम से कार्यक्रम में शमा बांध दिया। कार्यक्रम संयोजक कैलाश रारा ने अहिंसा को विश्व शांति का मूल मंत्र बतलाया। कार्यक्रम का समापन विदिशा के पत्रकार अविनाश जैन के मंगल पाठ से किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से संस्कृति विभाग अभिलेखागार के उपनिदेशक प्रताप पारख, राजेंद्र उमाठे, छबिलाल सोनी, भरत जैन, शिरीन जैन, मनीष जैन, अशोक वैश्य, अनिल कला, महेंद्र सेठी, प्रदीप पाटनी, संगीता साहू, प्रेम सोनी, राजेंद्र स्वस्तिक, शीला प्रजापति एवं शुभांगी आप्टे आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
मंच का सफल संचालन श्रीमती ममता जैन के द्वारा किया गया।

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