फागी कस्बे में विराजमान आर्यिका सुरम्यमति माताजी स संघ के पावन सानिध्य में अहिंसा धर्म के प्रणेता वर्तमान शासननायक विश्व वन्दनीय, जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का 2552 वां निर्वाणोत्सव मंगलवार 21 अक्टूबर को भक्ति भाव से मनाया गया,कार्यक्रम में जैन महासभा के प्रतिनिधि राजाबाबू गोधा ने बताया कि इस मौके पर कस्बे के आदिनाथ मंदिर,बीचला मंदिर, मुनि सुव्रतनाथ मंदिर, त्रिमूर्ति मंदिर, पार्श्वनाथ चैताल्य, चंद्रप्रभु नसियां, तथा चंद्रपुरी दिगंबर जैन मंदिर सहित परिक्षेत्र के चकवाड़ा, चौरु, नारेड़ा,मंडावरी, मेहंदवास ,नीमेडा, लसाडिया तथा लदाना सहित सभी जिनालयों में भगवान महावीर का 2552 वां निर्वाण लाडू चढ़ाया गया, कार्यक्रम में कस्बे के दिगम्बर जैन मंदिरों में पूजा अर्चना एवं निर्वाणोत्सव के विशेष आयोजन हुए, कार्यक्रम में फागी अग्रवाल समाज के अध्यक्ष महावीर झंडा, एवं सरावगी समाज के अध्यक्ष महावीर अजमेरा ने बताया कि कार्यक्रम में इस सामूहिक आयोजन में भगवान महावीर की अष्टद्वव्यों से संगीतमय पूजा अर्चना के बाद प्रातः 8.15 बजे विभिन्न मंत्रोच्चारों के साथ कार्तिक श्याम अमावस शिवतिय……का उच्चारण करते हुए निर्वाण कांड भाषा के सामूहिक उच्चारण पश्चात भगवान महावीर के मोक्षकल्याणक ” कार्तिक श्याम अमावस शिविर पावापुरी ते वरना…… “के उच्चारण के साथ सामूहिक रूप से जयकारों के बीच निर्वाण लाडू चढ़ाकर सुख समृद्धि और खुशहाली की कामना की गई तथा महाआरती के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ,कार्यक्रम में फागी पंचायत समिति के पूर्व प्रधान सुकुमार झंडा एवं मंदिर समिति के मंत्री कमलेश चौधरी ने बताया की उत्तर पुराण में आचार्य गुणभद्र (7- 8 वीं शताब्दी) ने लिखा है कि 15 अक्टूबर,527 बीसीई कार्तिक कृष्णा अमावस्या स्वाति नक्षत्र के उदय होने पर भगवान महावीर ने सुप्रभात की शुभ बेला में अघातिया कर्मों को नष्ट कर निर्वाण प्राप्त किया था।उस समय दिव्यात्माओं ने महावीर प्रभू की पूजा की और अत्यंत दीप्तिमान जलती प्रदीप-पंक्तियों के प्रकाश में आकाश तक को प्रकाशित करती हुई पावां नगरी सुशोभित हुई। सम्राट श्रेणिक आदि नरेन्द्रों ने अपनी प्रजा के साथ निर्वाण उत्सव मनाया।उसी समय से प्रति वर्ष महावीर जैनेन्द्र के निर्वाण को अत्यंत भाव एवं श्रद्धा पूर्वक मनाया जाकर नैवेद्य (लाडू) से पूजा की जाती है।
इसका उल्लेख प्रसिद्ध जैन ग्रंथ हरिवंश पुराण में भी हैं।जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के 256 वर्ष साढ़े तीन माह बाद महावीर का जन्म हुआ था।72 वर्ष की उम्र के अन्त में श्री शुभ मिती कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के अन्त समय (अमावस्या के अत्यंत प्रातः काल) स्वाति नक्षत्र में मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त किया।उसी समय भगवान महावीर के प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामी को केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी प्राप्त हुई और देवों ने रत्नमयी दीपकों का प्रकाश कर उत्सव मनाया,इस मौके पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष मोहनलाल झंडा एवं अनिल कठमाना ने बताया कस्बे के पार्श्वनाथ चैताल्य में विराजमान आर्यिका सुरम्यमति माताजी स संघ तथा चोरू कस्बे में विराजमान आर्यिका श्रुत मति माताजी, सुबोध मति माताजी स संघ के पावन सानिध्य में जिनालयों में विशेष आयोजन हुए तथा श्रीजी के समक्ष भगवान महावीर का 2552 वां
निर्वाण लाडू चढाया गया उन्होंने बताया कि इसी के साथ कस्बें में विराजमान आर्यिका सुरम्यमति माताजी स संघ के पावन चातुर्मास 2025 का विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करवाने के बाद भव्य निष्ठापन हुआ।
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