पंचम काल में धर्म का ज्ञान सीखा जैन मुनियों से – गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी

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पंचम काल में धर्म का ज्ञान सीखा जैन मुनियों से - गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी

पंचम काल में हम मोक्ष से और मोक्ष मार्ग से अंधे हैं। हमें नहीं पता तीर्थंकर कैसे करुणा करते हैं। हमें नहीं पता तीर्थंकरों का निर्वाण होता है।
सम्यक दर्शन क्या होता है हमें पता नहीं। ये ग्रंथ सर्वज्ञ की आंखों की वसीयत है। आज सीमंधर स्वामी नहीं है, प्रभु आदिनाथ भी नहीं है, हमने जो भी सीखा है, गुरुओं से सीखा है।
उक्त विचार सोमवार को नेमि नगर भोपाल में विराजित गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने अपने प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अंधे होने के बाद भी आप दीप जला के रखो। दान का दीप, तीर्थ यात्रा का दीप, मंदिर जाने का दीप, प्रभु की पूजा करने का दीप, निर्वाण कल्याण का दीप यदि बुझ गया तो निश्चित ही तुम परेशानी में आओगे। अभिषेक, शांति धारा दीपक है , तुम्हारी जिंदगी के । तुमको तुम्हारे दान की कीमत नहीं पता
। जब आप पूजा की एक थाली से द्रव्य दूसरी थाली में डालते हो तो तुम निमित्त बनते हो किसी को भगवान बनाने में। जब कभी भी मंदिर के उपकरणों का उपयोग करते हो तो सोचना तुम किसी को मंदिर लाने में निमित्त बनोगे।
आगामी 10 जून 2025 को पूज्य माताजी ससंघ का मंगल विहार शंकराचार्य नगर की ओर होगा ।

– महावीर कुमार जैन सरावगी जैन गजट संवाददाता नैनवा जिला बूंदी राजस्थान

 

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